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इस आर्मी के 8770 सैनिक भारत में लड़ रहे हैं भूख के खिलाफ जंग

हर रविवार हरे रंग की टीशर्ट पहने कुछ लोग दिल्ली और बेंगलुरू जैसे शहरों की सबसे पेचीदा और दुर्लभ गलियों में दिखते हैं। छात्रों और नए नौकरीपेशा लोगों का ये समूह हाथ में कबाब एक्सप्रेस या ऑ बॉन पेन(Au Bon Pain, Kebab Express) जैसे रेस्टोरेंट्स से मंगवाए खाने के पैकेट लिए घूमते हुए मिल जाता है। खुद को रॉबिन बताने वाले इन लोगों का मकसद तय है- शहर के भूखों और बेघरों को खाना खिलाना।

ये सभी रॉबिनहुड आर्मी के सदस्य हैं। ये आर्मी एक स्वयंसेवी संस्था है जो अलग-अलग रेस्टोरेन्ट्स से उनका अतिरिक्त खाना लेकर ज़रूरतमंदों का पेट भरने का काम करती है। नील घोष और आनंद सिन्हा के द्वारा मिलकर शुरू की गई ये संस्था अब दुनिया के अलग-अलग शहरों में फैल चुकी है। ये संस्था दो बेहद ही महत्वपूर्ण मुद्दों को एकसाथ सुलझाने की कोशिश करती है। पहला- गरीब तबके के लोगों के भोजन संकट को सुलझाना और दूसरा, पूरे विश्व में हो रहे खाने की बर्बादी को रोकना। रॉबिनहुड आर्मी की वेबसाइट की माने तो ये संस्था अपनी 8770 रॉबिन्स की आर्मी की मदद से 18 लाख 48 हज़ार 210 लोगों की मदद करने का दावा करता है।

भूख के खिलाफ इस जंग में रॉबिन हुड आर्मी को रेस्टोरेंट्स के मालिक से लेकर छात्रों तक का समर्थन प्राप्त है। ये सारे लोग अपने-अपने शहर में अपने-अपने स्तर से भोजन संकट की समस्या को सुलझाना चाहते हैं। रेस्टोरेंट्स के साथ पार्टनरशिप कर ये संस्था फुटकर स्तर पर खाने की बर्बादी को रोकने का भी एक बड़ा काम कर रहे हैं। खाने के फुटकर स्तर पर बर्बादी को रोकना एक बड़ी चुनौती है।

2015 में इस संस्था से जुड़े राहुल छाबड़ा जो अब उत्तरी दिल्ली में संस्था का काम देखते हैं बताते हैं, ‘हमारा मकसद था कि हम वीकेंड पर कुछ मीनिंगफुल करें, और यहीं से शुरुआत हो गई। जब मैंने संस्था से जुड़कर काम करना शुरू किया तो मुझे लगा कि मैं कितनी बेहतर स्थिति में हूं, और छोटी-छोटी कोशिशें कितना रंग लाती हैं, और हमारे प्रयास किसी और की ज़िंदगी में कितना बड़ा अंतर ला सकते हैं।’

बच्चों के साथ एक रॉबिन

हर हफ्ते राहुल अपनी वॉलेंटियर्स की टीम के साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी के आर्ट फैकल्टी में मीटिंग करते हैं और उसके बाद वहां अलग-अलग टीम बनाई जाती है। ये टीम अलग-अलग जगहों से खाना इकट्ठा करती है और फिर वो यमुना पुश्ता होमलेस शेल्टर, मजनू का टीला, जहांगीरपुरी और पुलबंगश की झुग्गियों जैसे इलाकों में खाना पहुंचाने जाते हैं।

नॉर्थ दिल्ली की ही तरह रॉबिनहुड आर्मी शहर के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय है। और ये सभी शाखाएं भूख और खाने की बर्बादी को रोकने की इच्छा रखने वाले लोगों के द्वारा ही चलाई जाती है।

राहुल बताते हैं कि ‘हर हफ्ते हम लगभग 2 हज़ार लोगों को खाना खिलाते हैं। इस आंकड़े में वो लोग शामिल नहीं हैं जिन्हें हम रात में और अलग-अलग मेट्रो स्टेशन पर हर हफ्ते भोजन उपलब्ध करवाते हैं।’

रॉबिनहुड आर्मी के काम करने का तरीका तय है। फूड मैनेजमेंट(रेस्टोरेंट से खाना लेना, और फिर उसे आगे बांटना) से लेकर सोशल मीडिया पर लोगों के साथ संपर्क करने या प्रचार करना सबकुछ ऑनलाइन होता है। और ये सब संस्था से जुड़े वॉलेंटियर्स करते हैं जो अपने समय के हिसाब से काम करते हैं। रॉबिनहुड आर्मी आर्थिक मदद नहीं लेती है, ये बस लोगों से उनका समय मांगती है ताकि आप संस्था का काम कर सकें। और एक सख्त नियम ये है कि आप वही खाना आगे बांटते हैं जो आप खुद खा सकते हैं- प्लेट में छूटा या खराब खाना नहीं।

खाने का पैकेट मिलने के बाद एक बच्ची

महज़ 3 साल में अपने काम करने के तरीके से संस्था ने काफी प्रभावित किया है और लाखों लोगों को बिरयानी से लेकर ब्राउनी तक खिलाया है। लेकिन संस्था से जुड़े किसी भी इसांन से जब आप बात करेंगे तो वो आपको बताएगा कि उनका काम अभी महज़ 1 प्रतिशत हुआ है।

रॉबिनहुड आर्मी के संस्थापक नील घोष ने एक इंटरव्यू में कहा, ”इस देश में 2 सौ मिलियन लोगों को 2 वक्त का खाना नसीब नहीं होता है, हम अभी समस्या के सतह पर ही काम कर पा रहे हैं। इस काम से ये ज़रूर हुआ है कि हमें एक दिशा और अनुमान मिला है कि हमें अभी और कितना और कैसे काम करना है।”

आंकड़ो की बात करें तो वो काफी डराने वाले हैं। हम पूरे देश में हर साल 67 मिलियन टन खाना बर्बाद करते हैं। रिसर्च की मानें तो साल भर में बर्बाद किये हुए खाने की कीमत लगभग 92 हज़ार करोड़ रुपये है और इससे बिहार जितने बड़े राज्य को एक साल तक खाना खिलाया जा सकता है। यकीन करना मुश्किल होगा लेकिन हम उतना खाना बर्बाद करते हैं जितना यूनाईटेड किंगडम खाता है। लेकिन साथ ही साथ ये भी जान लीजिए की भारत वही देश है जहां 194 मिलियन लोग भूखे रहते हैं और विश्व की एक चौथाई कुपोषित जनसंख्या भी हमारे देश में ही है।

अगर UNICEF की माने तो भारत में 5 साल से कम के 43 फीसदी बच्चे अंडरवेट हैं और 48 फीसदी( यानी कि 61 मिलियन बच्चें) बच्चे कुपोषणा की वजह से अविकसित हैं। विश्व के हर 10 में से तीसरा अविकसित बच्चा भारत का है। ये परिस्थितियां और आंकड़े बेहद निराश करने वाले हैं।

रॉबिन्स का मानना है कि बेहतर भविष्य के लिए निजी स्तर पर प्रयास और ज़मीनी स्तर पर जागरूकता फैलानी ही होगी।

”सरकार भी अपने स्तर से लोगों को पोषक खाना खिलाने का प्रयास कर रही है जैसे जन आहार योजना। लेकिन ये काफी नहीं है। अब वक्त आ चुका है कि इस समस्या की ओर हम निजी स्तर पर भी सोचना शुरू करें कि हम क्या कर सकते हैं। हम एक दिन में इतना खाना बर्बाद करते हैं लेकिन वो सब कूड़े के पहाड़ों में चला जाता है। हम शादियों पर इतना खर्च करते हैं, खाने से ज़्यादा भोजन बर्बाद करते हैं। हम अपने प्लेट पर खाना छोड़ने से पहले दुबारा सोचते तक नहीं हैं। हम अगर ऐसी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें तो बहुत बड़ा अंतर आ सकता है।” छाबड़ा ने बताया।

बच्चों के साथ सेल्फी लेता एक रॉबिन

ये बात तय है कि हमें अभी लंबा सफर तय करना है। जैसे सही पोषण लोगों तक पहुंचाने का मसला, ये निश्चित करना कि लोगों तक जो खाना पहुंचाया जा रहा है वो एक संतुलित आहार है। सही वक्त का भी मसला है। जैसे खाना कब बांटा जाता है तब जब वो उपलब्ध होता है या जब इसे बांटने वालों के पास समय होता है? रविवार को चलने वाले ऐसे प्रोग्राम इस बड़े सवाल के जवाब का एक हिस्सा हो सकते हैं।

UN Sustainable Development Goals तहत 2030 तक भारत को खाध सुरक्षित देश बनाने के प्रयासों के बावजूद भी हकीकत ये है कि हमारे देश में लाखों लोगों के लिए 2 वक्त की रोटी जुटाना भी एक बड़ी चुनौती है। और ये तब है जब स्कूल में मिड डे मील, गर्भवती महिलाओं को संतुलित आहार देने के लिए आंगनवाड़ी, गरीबी रेखा से नीचे जीने वाली जनसंख्या के लिए सब्सिडी जैसी योजनाएं कार्यरत हैं।

इन निराश करने वाले आंकड़ों को बदलने के लिए ये ज़रूरी है कि मौजूदा योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। और उचित कदम उठाने ही होंगे जिससे 2030 तक सबके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। तब तक ये रॉबिन्स की आर्मी वो सबकुछ कर रही है जो ये कर सकती है- एक वक्त पर खाने का एक पैकेट।

नोट- ये रिपोर्ट इंग्लिश में प्रकाशित हुए लेख का अनुवाद है

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