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मेरी दीदी को ब्रेस्ट कैंसर ने नहीं उनके घर वालों ने मारा

ब्रेस्ट कैंसर का नाम आते ही एक ही शख़्स का चेहरा सामने आता है वो हैं हमारी स्नेह दी। स्नेह दी जिनका हल्का चेहरा और कुछ यादें हैं ज़हन में । गोल चेहरा, बीच से निकली हुई मांग और लंबी चोटी, माथे पर बड़ी सी बिंदी । स्नेह दी का ये चेहरा मुझे हमेशा से सांवन भादौं वाली रेखा का लगा।

बहुत कुछ याद नहीं लेकिन बचपन की कुछ धुंधली यादें बहुत गहरे से दिमाग में छपी हैं। हमारा परिवार जब गांव में था तब स्नेह दी ही मां के सबसे करीब थीं। मां उन्हें अपनी बेटी की तरह मानती थी। स्नेह दी दिन भर मां के पास रहतीं उनसे बातें करती और अपनी हर बात कह जातीं थीं ।

स्नेह दी हमारे पड़ोस में रहती थीं और उनके पिताजी अच्छे ख़ासे पैसेवाले थे। लेकिन स्नेह दी की शादी नहीं हुई थी ठीक-ठाक उम्र हो गई थी । एक भाई था जो शराबी था उसकी शादी हो गई थी शायद दो या तीन बच्चे भी थे।

जब छोटी थी तो शाम को स्नेह दीदी के घर जाती, वो शाम को तैयार होती थीं। और मुझे उन्हें देखना बहुत अच्छा लगता था। वो छोटे से आइने के सामने पानी, कंघा, तौलिया, पाउडर, बिंदी, काजल और बालचोटी लेकर बैठती थीं। मैं बैठे-बैठे उन्हें देखती रहती थी कि वो कैसे तैयार होती थीं।

स्नेह दीदी का जैसा नाम वैसा ही उनका मिजाज़ था बेहद प्यारा और सबको स्नेह करने वाला। सबसे हंसी मज़ाक करना, बच्चों को बहुत प्यार करना। मुझे याद है वो मां के पास आती थीं तो कुछ परेशान रहती थीं।

बाद में मालूम चला कि उन्हें कोई बीमारी है जिसे दिखाने के लिए वो छतरपुर जाती हैं। हमें पता नहीं था कि उन्हें क्या बीमारी हुई थी।। धीरे-धीरे स्नेह दीदी बीमार बहुत बीमार दिखने लगीं। लेकिन तब भी हमें नहीं मालूम था उन्हें क्या हुआ है। शायद बच्चे थे इसलिए नहीं बताया होगा। अम्मा को पता होगा ।

अम्मा स्नेह दीदी को देखकर बहुत परेशान होती थीं लेकिन उनके घरवालों को शायद बहुत कुछ फिक्र नहीं थी वो होम्योपैथी का इलाज कराते रहे और नजीता ये निकला कि एक छोटी की गिठान(गांठ) से होते हुए स्नेह दीदी का एक ब्रेस्ट गल गया ।

अम्मा और बाजी लोग उनसे मिलने जाती थीं, वो एक तौलिया लेकर बैठी रहती थीं ताकि अपने जिस्म से बहने वाले मवाद को पौछ सकें। उसके बाद हम सब छतरपुर आ गए। अम्मा और बाजी उन्हें देखने गांव जाती थीं।

अम्मा और बाजी लौटकर आईं तो अम्मा का चेहरा एकदम फ़क्क था, बाजी एक दम रुआसी। हमसे कहा कि स्नेह दीदी को ऐसी हालत में देखा नहीं जाता है। वो धीरे-धीरे मौत की तरफ जा रही थी। उनका जिस्म गल रहा था, वो एक कमरे में बंद थी जहां हर किसी के जाने की हिम्मत नहीं होती थी, क्योंकि वहां से बहुत बदबू आती थी।

और एक दिन स्नेह दी हार गईं वो, चली गईं हम सबको छोड़कर। उन्हें ब्रेस्ट कैंसर ने भले मारा हो लेकिन उससे ज्यादा गलती परिवार की लगती है। काश परिवार ने उनका ऑपरेशन करा दिया होता तो शायद स्नेह दी आज हमारे साथ होती। लेकिन परिवार के लिए शादी और इज्ज़त ज़्यादा ज़रूरी थी जो कि एक ब्रेस्ट वाली लड़की की शायद होती नहीं।

एक ब्रेस्ट वाली लड़की से कौन शादी करता शायद यही सोच रही होगी परिवार की जिसकी वजह से स्नेह दी का ऑपरेशन नहीं कराया गया। वो चली गईं लेकिन अम्मा को अब भी वो ख्बाव में आती हैं, अम्मा अब भी बेचैन हो उठती है।

मुझे पता है अम्मा और बाजी अब भी रो रही होंगी क्योंकि स्नेह दी का जिस्म भले चला गया हो लेकिन वो ज़िंदा हैं हमारे साथ ।

मालूम है दिल बनाने से कुछ नहीं होगा लेकिन ये दिल बहुत कुछ कह गया है। अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए अपने ब्रेस्ट का रूटीन चेकअप करिए और अगर कहीं कोई गाठ महसूस हो तो बिना झिझक के डॉक्टर के पास जाइए। ज़िंदगी बहुत कीमती है और आप भी।

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