क्लास शुरू होने में थोड़ा ही समय बाकी था और मैं जल्दबाज़ी में तैयार होकर जल्दी से अपने कमरे से निकल गयी।
कल राहुल क्लास में ना होते हुए भी क्लास में था, क्योंकि सब उसी की बातें कर रहे थे, सबसे पीछे की बेंच पर बैठे अनुराग की सीट के पास सबने जमावड़ा लगाया हुआ था। दरअसल अनुराग राहुल का रूममेट है और उसके रहन-सहन के तरीके से बहुत परेशान है।
(यूं तो कोई भी दूध का धुला नहीं है लेकिन अक्सर पीठ पीछे बात करते समय लोग खुद को उस विषय में संत मान लेते हैं)
अनुपस्थित राहुल उस दिन सभी की बातों का शिकार हो ही रहा था कि तभी क्लास में प्रोफेसर का प्रवेश हुआ और सारी भीड़ छंटकर अपनी अपनी जगह पहुंच गई कि प्रोफेसर ने पूछा, “किस मुद्दे पर इतनी गहन चिंतन हो रही थी?” तभी अनुराग बोला, “सर हम लोग राहुल के बारे में बात कर रहे थे।”
सर ने चारों तरफ नज़र दौड़ाकर कहा, “वह तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा, उसके बारे में पीठ पीछे क्या बात कर रहे हो?” अब क्योंकि अनुराग के ही हालात थे तो उसी ने आगे बताया कि वह बहुत ज़्यादा परेशान है और कमरा बदलना चाहता है।
उसने कहा, “सर, राहुल के कर्म भंगियों वाले हैं, मैं उसके साथ नहीं रहना चाहता।”
सर ने पूछा, “अगर ऐसा है तो उसके साथ रहने में क्या दिक्कत है?”
अनुराग बोला, “सर वो कचरा करके रखता है और मैं सफाई ही करता रहता हूं।”
फिर सर ने कहा, “इस तर्क से फिर भंगी वो कहां से हुआ, भंगी तो तुम हुए”
अनुराग झेंपते हुए बोला, “सर मैं गंदगी नहीं फैलाता।”
सर ने कहा, ‘‘लेकिन कोई भी भंगी गंदगी नहीं फैलाता, बल्कि सफाई ही करता है।”
अनुराग सर की बात का मतलब समझ चुका था लेकिन फिर बोला, “सर राहुल बहुत गंदे तरीके से रहता है, उसको देखकर कोई भी उसे यही कहेगा”।
सर ने फिर कहा,
तो भी वो भंगी नहीं है क्योंकि कोई भंगी दूसरों की गंदगी साफ करते करते गंदा होता है, राहुल अपनी खुद की वजह से ऐसा है और सही मायनों में तो भंगी एक जाति है किसी का कर्म नहीं।
क्लास के सब लोग सर की बातों के पीछे छुपे हुए अर्थ को समझ चुके थे इसलिए सभी तर्क वहीं खत्म हो गए।
क्लास खत्म होने के बाद मैं अपने मन में यूं ही सोचती हुई जा रही थी, “जब भी हमें कोई बिखरे बाल बड़े नाखून वाला व्यक्ति दिख जाता है तो सहज रूप से उस पर भंगी होने का व्यंग्य कस दिया जाता है, बिना यह सोचे कि क्या वाकई किसी जाति का नाम लेकर मज़ाक उड़ाकर हम उपहास की सीमा के साथ न्याय कर रहे हैं? क्यों भंगी शब्द दिमाग में एक ही छवि बनाता है, समाज के इस तबके को सिर्फ कचरा वाला ही क्यों समझा जाता है?”
मन में इन्हीं सब हलचल और बातों के साथ चल रही थी कि फोन की घंटी बजी और मेरी रूम मेट चिल्लाई, ”ओए भंगन, कितना गंदा कमरा हो रहा है।”
और मैंने हंसते हुए कहा, “कौन सी भंगन को तूने कमरा गंदा करते हुए कभी देखा है।” हम दोस्तों में से तो विवेक ही है, जो भंगी जाति का तो है लेकिन ना ही गंदगी करता है ना कहीं कचरा उठाता है।
कल हमने अपने टीचर से आउट ऑफ सिलेबस एक ऐसी बात सीखी जो ज़िन्दगी के पाठ्यक्रम के लिए बहुत ज़रूरी थी |