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प्रधानमंत्री जी, झारखंड के झरिया की मौत का ज़िम्मेदार कौन है?

Coal miners of jharia dhanbad

सेवा में,

माननीय प्रधानमंत्री महोदय,
नई दिल्ली

विषय: झारखण्ड राज्य के झरिया शहर की मौत के लिए आखिर ज़िम्मेदार कौन है?

श्रीमान्,

सरकार के मास्टर प्लान के अनुसार झरिया शहर के चारों तरफ का इलाका अग्नि और भूधसान प्रभावित क्षेत्र है। इस कीर्तिमानधारी शहर का न्यूनतम 60 प्रतिशत इलाका असुरक्षित घोषित किया जा चुका है। सम्पूर्ण प्रशासन का ध्यान प्रभावित निवासियों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने पर केंन्द्रित है। इस उथल-पुथल में सिक्के के दूसरे पहलू को जानबूझकर नजरअंदाज़ किया जा रहा है कि आखिर इस शहर की असामयिक मौत के ज़िम्मेदार कौन हैं और उन्हें चिन्हित कर कितनी कड़ी सजा दी जा सकती है?

एक आम दिन के दौरान कोयला खदान मज़दूर; फोटो आभार: flickr

भूमिगत आग, भुधसान और खदानों में बाढ़ की खतरनाक समस्यायों से निपटने के लिए सन 1919 से ही झरिया कोलफील्ड की खदानों में हाइड्रोलिक बालू भराई (Hydraulic fill) की अनिवार्य शुरुआत की गई थी। सन 1971 में खदानों का राष्ट्रीयकरण शुरू किया गया तथा 1972 से भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (भा.को.को.लि.), झरिया में खनन का कार्य कर रही है और आज़ादी के पहले से ही खदानों की सुरक्षा हेतु खान सुरक्षा महानिदेशालय विभिन्न सूरतों में कार्यरत है। फलस्वरुप इन दोनों संगठनों द्वारा नियमों की अवहेलना की वजह से ही इस शहर की स्थिति इतनी भयावह बन गई है। अगर सभी भूमिगत खदानों में कोयला खनन के बाद हाइड्रोलिक बालू भराई की गई होती तो आज यह शहर सुरक्षित होता।

इन परिस्थितियों के लिए जब भी सरकार, भा.को.को.लि. या खान सुरक्षा निदेशालय को जिम्मेदार ठहराया जाता है तो जवाब यह मिलता है कि इसके लिए राष्ट्रीयकरण से पहले कोयला खनन करने वाले निजी ठेकेदार जिम्मेदार हैं। उन्होनें हाइड्रोलिक बालू भराई नहीं कराई, जिसकी वजह से आग व भुधसान बढ़ा है। अगर यह तर्क मान भी लिया जाए तब भी इसकी सारी ज़िम्मेदारी केवल सरकार, भा.को.को.लि. और खान सुरक्षा महानिदेशालय की ही बनती है। केन्द्र सरकार द्वारा पारित कोयला खान (संरक्षण तथा विकास) अधिनियम 1974 ने, पुर्व गठित कोल बोर्ड का विघटन किया था तथा उक्त बोर्ड की तमाम संपत्ती, अधिकार आदि का मालिकाना हक केन्द्र सरकार तथा सरकारी कंपनी को प्रदान किया था।

झरिया में कोयला खदानों के अन्दर धधकती आग; फोटो आभार: getty images

इस अधिनियम के अनुभाग 12 (d) के अनुसार:

“all borrowings, liabilities and obligations of the Coal Board, of whatever kind and subsisting immediately before the appointed day, shall be deemed, on and from the appointed day, to be the borrowings, liabilities or obligations, as the case may be, of the Central Government.”

“अर्थात पूर्व के कोल बोर्ड के सारे उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को निभाने की जवाबदेही केन्द्र सरकार की होगी। पूर्व में किए गए खनन कार्य के उपरांत अगर हाइड्रोलिक बालू भराई नहीं कि गई है तो इसकी जवाबदेही तथा इसके परिणामस्वरुप उत्पन्न हुए परिस्थित की पूर्ण ज़िम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी। उपरोक्त अनुभाग का झरिया की परिस्थिति में तात्पर्य यह है की यहां फैली भूमिगत आग व भुधसान की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी केन्द्र सरकार की है।”

इसी अधिनियम के अनुभाग 13 के अनुसार:

“the liability or obligation, as the case may be, of the Coal Board in relation to such property shall, instead of continuing to be the liability or obligation of the Central Government, become the liability or obligation, as the case may be, of the government company.”

अर्थात पूर्व के कोल बोर्ड के सारे उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को निभाने की जवाबदेही अंतत: भा.को.को.लि. की हुई। यहां फैली भूमिगत आग व भुधसान की पुर्ण एवं अंतिम जिम्मेवारी प्रत्यक्ष तौर पर भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की तथा अप्रत्यक्ष तौर पर खान सुरक्षा महानिदेशालय की बनती है। अपने उत्तरदायित्वों की लंबे समय तक की गई अनदेखी के परिणामस्वरुप यह स्थिति पैदा हुई है।

वहीं दूसरी ओर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता की सन 1972 के बाद से आवश्यकतानुसार बालू की भराई नहीं की गई है और अगर आवश्यकतानुसार भराई नहीं की गई है तो खदानों के संरक्षण एवं विकास के लिए आवंटित अरबों की राशि का क्या हुआ? कहते हैं कि काले कोयले की कमाई भी काली होती है। थोड़ी सी परत खरोंचने से ही कालिख दिख जाएगी। सन 1972 के बाद से भा.को.को.लि में नियुक्त हुए प्रत्येक जिम्मेदार पदाधिकारी की आय व संपत्ति की उच्चस्तरीय जांच अगर की जाए तो सच सामने आ जाएगा।

महाशय, प्रभावित निवासियों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करना तो आखिरी विकल्प है। परन्तु आज तक इस आग और भुधसान को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाए गए हैं तथा उनके परिणामों की समीक्षा भी की जानी चाहिए। अगर करोड़ों-करोड़ रुपए इन बचाव कार्यों में भी खर्च किय गए हैं तो परिणाम नज़र क्यों नहीं आ रहें हैं? आखिर यह पैसे गए तो गए कहां?

झरिया शहर के निवासियों ने प्रदूषित हवा में सांस लेकर, अपने बच्चों को विषैला पानी पिलाकर और अनगिनत बीमारियों का शिकार बनकर देश को बहुमूल्य कोयला दिया है। अरबों रुपयों की सौगात के बदले में हम लोगों को कभी कुछ नहीं मिला। अब हमारी ज़मीन खोखली भी हो गई है और अग्नि से तपकर लाल भी। अनगिनत लोग की जान, अब तक इन भुधसानों के कारण जा चुकी है तथा सैंकड़ों लोग इस अकाल मौत के लिए कतारबद्ध हैं। अत: महाशय से अनुरोध है कि आप कुछ तो पहल करें ताकि हमलोगों को इस अरबों की सौगात का उचित मुआवजा मिले, ज़िम्मेदार पदाधिकारियों व विभागों को दंड मिले तथा संवैधानिक तरीके से हमें जीवन जीने का अधिकार मिले।

भवदीय

अभिषेक सिंह

वेबसाइट थम्बनेल और सोशल मीडिया फोटो आभार: getty images   

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