आज पर्यावरण दिवस है। 2 जून के बाद आज और बीते हुए कल की गर्मी महसूस कर लें तो वास्तव में चूक गए कि जिंदा मानव शरीर जल उठेगा।
हमारी आंखो के सामने ही आसमानी कहर से हमारी देह “अग्निदाह” में तब्दील हो जायेगी। उस वक्त सर्वोच्च शक्ति प्रकृति तनिक भी नहीं चिंतन करेगी कि तुम मुसलमान हो या ईसाई हो और तुम्हे तो दफनाया जाता है।
वास्तविकता यही है कि अब नहीं चेत सके तो उपभोगवादी संस्कृति ही मनुष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। मुझे पता है कि मेरा जीवन अभी बहुत बड़ा है। एक जिंदगी में अनेक चक्रवात आ जाते हैं।
जैसे मौसमी चक्रवात, सुनामी, तूफान जाने कितनी जिंदगी निगल जाता है। जिंदगी मे संतुलन की तरह पर्यावरण संतुलन की भी आवश्यकता है।
मैं नही जानता भविष्य मे क्या होगा ? मै नही जानता मेरे पास क्या है और क्या नहीं है ? लेकिन इतना जानता हूं कि जब तक जीवन रहेगा।जन जन को पर्यावरण संतुलन के लिए जागरूक करता रहूंगा। वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करता रहूंगा। मैं कछुए की गति से तो चल सकता हूं फिर रास्ते में कुछ और कछुए प्रेरित हो जायेगें। मेरा अपना कोई संरक्षक भी आ जायेगा।
जैसे कछुए की पीठ उसकी संरक्षक होती है। वैसे ही मेरा कोई कछुए की पीठ की तरह मजबूत देव तुल्य इंसान मेरा संरक्षक बन जायेगा। हम शनैः शनैः चलेगें किंतु सफल होगें।
स्वयं प्रकृति दूत बनेगें और बनायेगें। आज मैं संकल्प लेता हूं कि मृत्युपर्यंत पर्यावरण संतुलन के लिए तन मन से कार्य करता रहूंगा। धन इसलिये नही कहा क्यूंकि अभी उतना धन मेरे पास है नही किंतु मानव जाति, वन्य जीव संपदा के रक्षण संरक्षण हेतु कार्य करते हुए चलता चलूंगा।
मैंने संकल्प ले लिया है या यूं कहिए जीवन दान कर दिया है। बस आप भी संकल्प ले लीजिए।