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सबसे युवा देश क्यूं चुनता है बूढ़े राजनेता?

राजनीतिक पार्टियां युवाशक्ति की बात तो अक्सर किया करती हैं, लेकिन युवाओं के हाथों में नेतृत्व सौंपने का सवाल उठता है, तो वे कन्नी काट जाती हैं। खासकर चुनाव के वक्त तो युवा वोटरों के बारे में बहुत-सी बातें कही जाती हैं। लेकिन, चुनाव में टिकट पाने वालों में युवाओं की संख्या गिनती की होती है। अलबत्ता चुनाव के समय युवा वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियां तरह-तरह के नारे ज़रूर देती हैं।

शायद ही कोई राजनीतिक पार्टी हो, जिसमें शीर्ष नेतृत्व किसी युवा को मिला हुआ हो। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक के चुनाव में युवाओं की जगह वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में पहुंच चुके नेताओं को ही मौका दिया जाता है। इसका ताज़ा उदाहरण राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा की ओर से उतारे गये उम्मीदवार रामनाथ कोविंद हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर युवा शक्ति की बात करते हैं, लेकिन रााष्ट्रपति के चुनाव में उन्होंने भी घिसे-पिटे ढर्रे पर ही चलना मुनासिब समझा। बिहार के गवर्नर रहे रामनाथ कोविंद की उम्र 72 वर्ष है। अगर वह जीत जाते हैं, तो कम उम्र के राष्ट्रपतियों की सूची में सातवें पायदान पर रहेंगे।

देश को सबसे युवा राष्ट्रपति वर्ष 1977 में नीलम संजीव रेड्डी के रूप में मिला था। जिस वक्त वह राष्ट्रपति चुने गये थे, उनकी उम्र महज़ 64 साल थी। उनके बाद देश में सात बार राष्ट्रपति का चुनाव हुआ, लेकिन उनसे कम उम्र के किसी भी राजनीतिक या गैर-राजनीतिक व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने की हिम्मत किसी भी राजनीतिक पार्टी ने नहीं दिखायी।

उल्लेखनीय है कि अब तक बने 13 राष्ट्रपतियों में से महज़ 4 राष्ट्रपति ऐसे हुए, जिनकी उम्र 70 के नीचे थी। देश के छठवें राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी कम उम्र के थे, तो उनके काम करने का तरीका भी अलग था। वह राष्ट्रपति की बनी बनायी लीक पर नहीं चले। वह बेहद संजीदा व्यक्ति व गरीबों के हितैषी रहे। देश के 30वें स्वाधीनता दिवस पर अपने संबोधन में उन्होंने देश की गरीबी को देखते हुए 340 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन की जगह छोटे कमरे में रहने की घोषणा की थी और साथ ही कहा था कि वह अपनी तनख्वाह का महज़ 30 प्रतिशत हिस्सा ही लेंगे। नीलम संजीव रेड्डी पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने ट्रेन से यात्रा की थी। उनके बाद डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी ट्रेन से सफर किया था।

यह भी एक तथ्य है कि नीलम संजीव रेड्डी ने राष्ट्रपति बनने की पहली कोशिश 1969 में की थी, लेकिन चुनाव हार गये थे। उस वक्त उनकी उम्र 56 साल थी। सन् 1969 में इंदिरा गांधी के विरोधी खेमे ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़ा कर दिया था। इंदिरा गांधी इस उम्मीदवारी के खिलाफ थीं। उन्हें डर था कि अगर वह प्रेसिडेंट बन जाएंगे, तो उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटाया जा सकता है। कांग्रेस के ही वी.वी. गिरि निर्दलीय उम्मीदवार थे। इंदिरा गांधी ने कांग्रेसियों से अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर वोट डालने को कहा था। इंदिरा गांधी के प्रभाव के कारण वीवी गिरि ने जीत हासिल की थी।

यही वो वक्त था जब कांग्रेस में पहला ऐतिहासिक बिखराव हुआ था। इंदिरा गांधी को पार्टी का अनुशासन भंग करने के आरोप में पार्टी से एक्सपेल कर दिया गया था। तब उन्होंने अपनी पृथक पार्टी कांग्रेस (आर) का गठन किया था। दूसरे धड़े ने कांग्रेस (आर्गनाइजेशन) बना लिया था। इसी दौर में इंदिरा गांधी एक बड़ी राजनेता के रूप में राजनीतिक फलक पर उभरी थीं।

रेड्डी इस चुनाव में हार के बाद सक्रिय राजनीति से अलग हो गये व पुश्तैनी खेतीबाड़ी संभालने अपने गांव चले गए। उन्होंने जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के वक्त राजनीति में वापसी की और 1977 में दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में उतरे। इस बार वह निर्विरोध चुने गये। नीलम संजीव रेड्डी इकलौते राष्ट्रपति हुए जिन्हें निर्विरोध चुना गया था।

बहरहाल, रेड्डी के बाद दूसरे युवा राष्ट्रपतियों में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद व ज्ञानी जैल सिंह गिने जाते हैं। दोनों ने ही 66 साल की उम्र में राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली थी। फखरुद्दीन अली अहमद 69 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति बने थे। देश में आपातकाल लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर उन्होंने ही किए थे।

डॉ राजेंद्र प्रसाद, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जैल सिंह व फखरुद्दीन अली अहमद के अलावा जितने भी राष्ट्रपति हुए उनकी उम्र 70 व उसके पार रही। देश के तीसरे राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन जब राष्ट्रपति बने उनकी उम्र 70 साल थी।

सबसे उम्रदराज राष्ट्रपतियों में आर. वेंकटरमण, आर.के. नारायणन व प्रणव मुखर्जी शुमार हैं। तीनों ही 77 वर्ष की उम्र में महामहिम के पद पर पहुंचे। तीनों ही कांग्रेस में लंबे समय तक रहे और माना जाता है कि कांग्रेस के प्रति उनकी वफादारी के इनाम के तौर पर उन्हें राष्ट्रपति पद मिले थे।

उधर, रामनाथ कोविंद के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है। मीरा कुमार की उम्र 72 साल है। भारत के उप प्रधानमंत्री व स्वाधीनता सेनानी जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार लोकसभा स्पीकर बनने से पहले मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं।

अगर देश को युवा नेृतत्व नहीं मिल रहा है, तो इसके लिए राजनीतिक पार्टियों के साथ ही आम जनता भी ज़िम्मेदार है। देश की जनता हमेशा से ही अनुभवी व उम्रदराज़ लोगों को तरजीह देती रही है। जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर निसार उल हक मानते हैं कि युवाओं के हाथ में नेतृत्व मिले इसके लिए देश की जनता को ही पहल करनी होगी।

39 वर्ष के इमैन्युएल मैकरॉन के फ्रांस का प्रेसिडेंट बनने का उदाहरण देते हुए निसार उल हक कहते हैं, “अगर फ्रांस का राष्ट्रपति कम उम्र का हो सकता है, तो भारत में भी हो सकता है, लेकिन इसके लिए जनता को ही सोचना होगा। हमारे देश की जनता भी ऐसे नेताओं को ही चुनना पसंद करती है, जिनके पास ज़्यादा अनुभव हो व उम्र भी अधिक हो। जब तक देश के आम लोगों का नज़रिया नहीं बदलेगा तब तक ऐसा संभव नहीं है। जनता को खुद कहना होगा कि उन्हें बुजुर्ग की जगह युवा नेता चाहिए, तो ही यह हो पायेगा।”

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