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सोशल मीडिया का इस्तेमाल ऐसा भी, ज़रूरतमंदों तक वक्त पर पहुंचाया जा रहा है खून

भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रति वर्ष 120 लाख यानि 1.20 करोड़ यूनिट खून की ज़रूरत पड़ती है, जबकि महज़ 90 लाख लोग ही हर साल रक्तदान करते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से रक्तदान की मुहिम चलाकर कुछ लोग इसके उपयोग की सार्थकता को सिद्ध कर रहे हैं। आज सोशल मीडिया का उपयोग जहां ज़्यादातर फोटोज़ या वीडियोज़ शेयर करने या फिर मन की भड़ास निकालने में किया जा रहा है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लोगों को सामाजिक सरोकार की अपनी मुहिम से जोड़ने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।

ऐसे ही एक शक्स हैं पटना निवासी मुकेश हिसारिया जो गोविंद मित्रा रोड पर एक मेडिकल दुकान के मालिक हैं। वर्ष 1991 में जब उनकी मां की तबियत खराब हुई तो लोकल डॉक्टर ने कैंसर की आशंका जताते हुए उन्हें वेल्लोर ले जाने की सलाह दी। वहां जाने पर मां के इलाज के दौरान मुकेश ने यह महसूस किया कि वहां हर दिन सैकड़ों-हज़ारों लोग बिहार, झारखंड सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से बेहतर इलाज की उम्मीद से आते हैं। उनमें से कईयों की मौत समय पर सही ग्रुप का ब्लड न मिलने की वजह से हो जाती है। मुकेश इस बात से बेहद परेशान हुए और उन्होनें तय किया कि वह खून की कमी की वजह से किसी को मरने नहीं देंगे। पर किस तरह, यह बात उनकी समझ में नहीं आ रही थी।

फिर जब सोशल मीडिया में ऑरकुट लोगों के बीच काफी पॉपुलर था, तो उन्होंने उसी के ज़रिए लोगों को जोड़ना शुरु किया। कुछ समय बाद फेसबुक आया और उसके बाद अब whatsapp। जैसे-जैसे ये नये-नये सोशल मीडिया के माध्यम विकसित होते गये, वैसे ही मुकेश की पहुंच भी अधिक से अधिक लोगों तक होती गयी। आज वो अपने ‘मां वैष्णो देवी सेवा समिति’ से पूरे भारत में करीब साढ़े छह लाख लोगों को ब्लड डोनेशन कैंपेन से जोड़ चुके हैं। मुकेश का मानना है कि – ”हम सभी को एक ही जीवन मिला है, यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका किस तरीके से सदुपयोग करते हैं। मैंने दूसरों की मदद करने का यह रास्ता अपनाया है, क्योंकि दूसरों की जान बचाने से जो आत्मिक संतुष्टि मिलती है, वह मेरे ख़याल से दुनिया के और किसी भी काम से नहीं मिल सकती।”

इसी तरह रांची के रहने वाले अतुल गेरा ने पहली बार 19 वर्ष की आयु में परिवार में किसी को ब्लड डोनेट किया था। उसके बाद एक-दो बार आस-पड़ोस और दोस्तों के लिए भी रक्तदान किया। धीरे-धीरे अतुल ने इसे अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। करीब 10 साल पहले फेसबुक के माध्यम से लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करना शुरू किया। आज उनके ‘Life Saver’ ग्रुप से ना केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के लाखों लोग जुड़े हुए हैं। अतुल का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक संख्या में ब्लड डोनेशन कैंप ऑर्गेनाइज करना है। उनके अनुसार- ”हम सभी को साल में चार बार तो ब्लड डोनेट करना चाहिए। साथ में लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित करने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए, ताकि ज़रूरतमंदों को फ्रेश ब्लड मिल सकें, जो कि  ब्लड की तुलना में कहीं ज़्यादा कारगर और असरदार है।” अब तो कई अस्पताल और रेडक्रॉस जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी ज़रूरत पड़ने पर रक्तदान के लिए उनसे संपर्क करती हैं।

आज देश के हज़ारों लाखों ब्लड डोनर मुकेश और अतुल के माध्यम से जुडें हैं और जब जहां जिस किसी को भी रक्त की ज़रूरत हो, उसे निस्वार्थ भाव से ब्लड डोनेट कर रहें हैं। इसी तरह कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर ऑर्गन डोनेशन के अलग-अलग ग्रुप बना रखे हैं, वहीं कुछ अन्य किसी अन्य सामाजिक उद्देश्य के निहितार्थ सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि भी तकनीक में भले ही लाख खामियां हो, लेकिन यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसका किस तरह से और किस दिशा में बेहतर सदुपयोग कर पाते हैं।

इंसानियत की इससे बेहतर मिसाल और क्या होगी कि आज जहां देश में क्रिकेट के नाम पर भी लोगों का धर्म बंट जाता हो, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बगैर एक-दूसरे को जाने सिर्फ और सिर्फ इंसानियत का रिश्ता निभा रहें हैं।

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