भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रति वर्ष 120 लाख यानि 1.20 करोड़ यूनिट खून की ज़रूरत पड़ती है, जबकि महज़ 90 लाख लोग ही हर साल रक्तदान करते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से रक्तदान की मुहिम चलाकर कुछ लोग इसके उपयोग की सार्थकता को सिद्ध कर रहे हैं। आज सोशल मीडिया का उपयोग जहां ज़्यादातर फोटोज़ या वीडियोज़ शेयर करने या फिर मन की भड़ास निकालने में किया जा रहा है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लोगों को सामाजिक सरोकार की अपनी मुहिम से जोड़ने में सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।
फिर जब सोशल मीडिया में ऑरकुट लोगों के बीच काफी पॉपुलर था, तो उन्होंने उसी के ज़रिए लोगों को जोड़ना शुरु किया। कुछ समय बाद फेसबुक आया और उसके बाद अब whatsapp। जैसे-जैसे ये नये-नये सोशल मीडिया के माध्यम विकसित होते गये, वैसे ही मुकेश की पहुंच भी अधिक से अधिक लोगों तक होती गयी। आज वो अपने ‘मां वैष्णो देवी सेवा समिति’ से पूरे भारत में करीब साढ़े छह लाख लोगों को ब्लड डोनेशन कैंपेन से जोड़ चुके हैं। मुकेश का मानना है कि – ”हम सभी को एक ही जीवन मिला है, यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका किस तरीके से सदुपयोग करते हैं। मैंने दूसरों की मदद करने का यह रास्ता अपनाया है, क्योंकि दूसरों की जान बचाने से जो आत्मिक संतुष्टि मिलती है, वह मेरे ख़याल से दुनिया के और किसी भी काम से नहीं मिल सकती।”
आज देश के हज़ारों लाखों ब्लड डोनर मुकेश और अतुल के माध्यम से जुडें हैं और जब जहां जिस किसी को भी रक्त की ज़रूरत हो, उसे निस्वार्थ भाव से ब्लड डोनेट कर रहें हैं। इसी तरह कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर ऑर्गन डोनेशन के अलग-अलग ग्रुप बना रखे हैं, वहीं कुछ अन्य किसी अन्य सामाजिक उद्देश्य के निहितार्थ सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि भी तकनीक में भले ही लाख खामियां हो, लेकिन यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसका किस तरह से और किस दिशा में बेहतर सदुपयोग कर पाते हैं।
इंसानियत की इससे बेहतर मिसाल और क्या होगी कि आज जहां देश में क्रिकेट के नाम पर भी लोगों का धर्म बंट जाता हो, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बगैर एक-दूसरे को जाने सिर्फ और सिर्फ इंसानियत का रिश्ता निभा रहें हैं।