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बड़ा दिलचस्प है मेरा मुल्क, एक खेल से मेरी वतनपरस्ती तौलता है

कल रात तरावीह की नमाज़ पढ़ने के बाद मस्जिद से घर की ओर लौट रहा था। रास्ते में कई जगहों पर युवा लड़कों की नुक्कड़ सभाएं मिली। पाकिस्तान भारत को बड़े रन अंतराल से हरा चुका था। चर्चा ज़ोरों पर थी, कुछ चेहरे उदास थे, कुछ मुस्कुरा रहे थे और कुछ उदासीन भाव से सिर्फ़ चर्चा सुन रहे थे। गालियां चरम पर थी। विरोध और समर्थन को आधार बनाकर एक-दूसरे पर फब्तियों के बाउंसर फेंके जा रहे थे। अंतर्मन मैच शुरू होने से पहले भी उदास था और मैच के ख़त्म हो जाने के बाद भी।

भारत और पाकिस्तान के बीच चैम्पियंस ट्राफी के फाइनल की एक तस्वीर; फोटो आभार: आइ.सी.सी.

पहली बात तो यह कि क्या एक क्रिकेट मैच को देशप्रेम का मानक बना लेना सही है? क्रिकेट, एक ऐसा खेल जो पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली और देश के करोड़ों युवाओं को सट्टेबाज़ी में लिप्त करने का आधार बन चुका है। इन परिस्थितियों में सिर्फ एक खेल के आधार पर देशप्रेम के मानक तय कर देना कहां तक सही है? आप कौन-सा खेल, कौन-से खिलाड़ी और कौन-सी टीम को पसंद करते हैं, यह आपका व्यक्तिगत मामला है। इसमें बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए। यह प्रत्येक व्यक्ति का लोकतांत्रिक अधिकार है कि वह अपने विवेक के आधार पर जिस खेल, खिलाड़ी अथवा टीम को चाहे पसंद करे। इस समर्थन और विरोध के आधार पर देशप्रेम तय नहीं हो सकता।

दूसरी बात, भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कितनी ही राजनीतिक कटुता रही हो, लेकिन मानवता के प्रति संवेदना रखने वाले लोग हमेशा से ही पाकिस्तान को दुश्मन की नहीं बल्कि एक दोस्त और भाई की दृष्टि से देखते आए हैं। आज एक छोटा-सा क्रिकेट मैच होने पर दोनों देशों का मीडिया जो युद्ध जैसी स्थिति बना देता है, वह अत्यंत घातक है। टीवी चैनलों से परोसी जा रही यह नफरत जब ज़मीनी स्तर पर पहुंचती है तो सिवाय क़त्ल ओ ग़ारत के कुछ हासिल नहीं होता, यह बात दोनों देश जानते हैं।

जो लोग इस ज़मीनी हकीकत से वाकिफ़ नहीं हैं और कभी ऐसी घटनाओं के साक्षी नहीं बने, वे ही ट्वीटबाज़ी करके दोनों देशों में रिश्ते तय कर रहे हैं। वास्तव में वे भारतीय संस्कृति के मुंह पर तमाचा मार रहे हैं। भारतीय संस्कृति, जो हमेशा से मैत्री की बात करती आई है, शत्रु जैसा शब्द जिसके शब्दकोश से कोसों दूर है, वे उस भारतीय संस्कृति के विरुद्ध हैं। वे दोनों देशों के बीच नफरत घोलने का काम कर रहे हैं। वे ही मानवता विरोधी हैं। वास्तव में, वे ही देशद्रोही हैं। कितना ख़तरनाक है कि टीवी एंकर कहता है – रमज़ान का महीना है, देखते हैं उनकी दुआएँ कुबूल होती हैं या हमारे हवन असर दिखाते हैं। यही स्थिति रही तो खेलों को इस तरह से सांप्रदायिक रंग देना एक दिन दोनों देशों को ख़त्म कर देगा।

आख़िरी बात, अहंकार का परिणाम सिर्फ़ पतन है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब कोई अहंकार के मद में डूबा है, उसका निश्चित ही पतन हुआ है। सिकंदर जब भारत की ओर बढ़ रहा था, उस समय यहां के शासक आपसी लड़ाइयों में व्यस्त थे। चाणक्य एक-एक करके सभी के द्वार पर गया और एकजुट होने का आह्वान किया परंतु किसी ने उसकी एक न सुनी। अंत में जब वह घनानंद के पास पहुंचा तो उस अहंकारी शासक ने चाणक्य को अपमानित करके बाहर निकल दिया। उस समय चाणक्य ने नंद वंश को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की। एक साधारण बालक चंद्रगुप्त को शिक्षित कर गद्दी पर बैठाया और नंद वंश को उखाड़ फेंका।

इसी तरह जब कांग्रेस को अपनी राजशाही का अहंकार हो गया और वे स्वयं को हिंदुस्तान के आका समझने लगे, इस देश की जनता ने उन्हें सत्ता से शून्य तक पहुंचा दिया। इसके विपरीत जब भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद अहंकार हुआ और वे अपने प्रतिद्वंद्वियों को नक्सली और जंगली कहने लगे, दिल्ली की जनता ने उन्हें उनकी जगह दिखा दी। इसीलिए कप्तान साहब! आपका अहंकार ही आपके पतन का कारण बना। जीतने के बाद, शतक लगाने के बाद, आउट हो जाने के बाद भी, मैदान पर आपके मुंह से निकलने वाली गालियों में, प्रतिद्वंदियों के प्रति आपके रवैये में आपका अहंकार साफ झलकता है। इसीलिए इस अहंकार को कम कीजिए और खेल भावना को बाउंड्री के पार मत जाने दीजिए, उसे बाउंड्री के भीतर रखिए। मैदान पर भारत की संस्कृति का प्रदर्शन कीजिए।

अंत में रवीश कुमार जी को यथावत काॅपी कर रहा हूं – “मैं क्रिकेट नहीं देखता फिर भी भारतीय टीम के साथ हूं। वो लोग कमज़ोर होते हैं जो हार के वक्त साथ छोड़ देते हैं और हॉकी की जीत का जश्न मनाने लगते हैं। दरअसल, ऐसा करके हॉकी का मज़ाक उड़ा रहे हैं। अगर भारत जीत जाता तो तब भी क्या वे हॉकी की जीत को प्रमुखता देते? आज हॉकी का अपमान किया जा रहा है जो संयोग से राष्ट्रीय खेल है! कई एंकर हॉकी की जीत का ट्वीट कर रहे हैं जैसे उनके चैनल पर हॉकी ही कवर हो रहा था। ठाकुर ने चिरकुटों की फौज बनाई है। भीड़ में रहते-रहते ऐसे लोग बुज़दिल होते जा रहे हैं। अकेले चलिये, ताकत का अंदाज़ा होगा। भारतीय क्रिकेट टीम उम्दा टीम है। हारते रहना चाहिए ताकि जीत का स्वाद बना रहे। दाल भात की तरह तो मैच होते रहते हैं। कल फिर जीत जाएंगे।”

फोटो आभार: आइ.सी.सी.

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