19-20 साल की उम्र का युवा काॅलेज में दाखिले के साथ अपनी ज़िदंगी के शायद सबसे अच्छे दिनों को जी रहा होता है। अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना, बाइक की सैर, काॅलेज और बाहर दोस्तों के साथ मौज-मस्ती, हंसी ठिठोली और तरह-तरह की शरारतें क्योंकि ज़िदंगी में अभी इतने बोझ नहीं होते हैं।
हम बात कर रहे हैं, ऐसे ही 19 साल के युवा विवेक सिंह राजावत उर्फ मिंकू की जो कूल ड्यूड् होने के साथ बाॅक्सिंग प्लेयर भी है। विवेक जिला स्तर के साथ ऊपरी स्तर तक के टूर्नामेंट में खेल चुका है और आर्मी में जाने की हसरत भी रखता है। उसके पिता भी भारतीय फौज में लगभग 15 साल सेवाऐं दे चुके हैं, लेकिन ग्वालियर का ये लड़का आज एक संकट में है। कुछ दिन पहले पार्क में जब विवेक अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बैठा ही हुआ था, तभी पुलिस की निर्भया सेल ने विवेक और उसकी गर्लफ्रैंड को उठाकर थाने के साथ कोर्ट तक पहुंचा दिया। (थोड़े दिन पहले ही नेशनल मीडिया में भी ये न्यूज़ आयी थी।)
विवेक का इल्ज़ाम है कि पहले पुलिस वालों ने मामला वहीं निपटाने के लिए पैसों की मांग की। लेकिन कोई मामला न होकर भी जब विवेक ने पैसे देने से मना कर दिया तो इन्हें सेल की प्रभारी मैडम के सामने पेश किया गया। इसी बीच विवेक ने अपनी बहन को भी बुलवा लिया तो पता चला उसकी बहन और प्रभारी मैडम की आपस में कोई पुरानी दुश्मनी है। फिर क्या था, बदला लेने की मंशा से इन एसआई मैडम ने लड़का-लड़की समेत विवेक की बहन को भी थाने पहुंचवा दिया। बदसलूकी करने और शासकीय कार्य में बाधा डालने समेत धारा 341, 253, 186, 294 और 34 के तहत तीनों पर केस ठोकते हुए इन्हें कोर्ट में पेश किया गया जहां आठ मिनट में ही तीनों लड़के-लड़कियों को ज़मानत मिल गई। जहां एसआइ मैडम का इल्ज़ाम है कि इस जोड़े (विवेक और उसकी गर्लफ्रेंड) को पहले हमने सार्वजनिक स्थल से आपत्तिजनक हालत में पकड़ा, फिर इन्होंने हमसें बद्तमीज़ी करते हुए अपशब्द बोले।
खैर! मैडम के इल्ज़ाम में तो कोई दम नहीं दिखा, कोई क्यों ऐसे पुलिस वालों से उलझेगा। लेकिन मुद्दा तो यह है कि आज उस लड़के को ज़बरदस्ती अपराधी बनाकर रख दिया गया है, क्या यही है सरकार का युवाओं के प्रति नया रवैय्या?
वो लड़का बड़ी मासूमियत से मुझसे पूछता है कि “इस केस की वजह से भैया क्या मैं आर्मी मैं भर्ती भी हो पाऊंगा? मैं अब भी तैयारी जारी रखूं कि नहीं?” फिर कोर्ट की तारीख लगने की तिथी नज़दीक आते-आते उसने पूछा, “भईया बहुत डर लग रहा है क्या होता है कोर्ट में?”
उसके इन मासूम सवालों से मेरे मन को भी ठेस पहुंची कि कैसे अब खुद सिस्टम ज़बरदस्ती मासूमों को अपराधी बनाने पर तुला हुआ है। निर्भया सेल और एंटी रोमियों सेल की आड़ में कोई भी पुलिस वाला अपनी निजी दुश्मनी निकालने या पैसे ठगने के लिए किसी नौजवान को अपराधी बना सकता है। यूपी में अभी हाल ही में एक बड़े न्यूज चैनल के स्टिंग में ऐसा ही खुलासा हुआ जिसने इस तरह के अभियानों की दुनिया के सामने पोल खोल दी। वैसे तो इन अभियानों का मूल उद्देश्य मनचलों और लड़कियों से होने वाली छेड़छाड़ को रोकना है, जिससे लड़कियां खुलके जी सकें। लेकिन ये अभियान तो पार्को में बैठने वाले लड़के-लड़कियों के विरुद्ध ही चल पड़े हैं और इनका ऐसा मिसयूज़ हो रहा है कि दो बालिग अपनी मर्जी से कहीं बैठ भी नहीं सकते।
हां पब्लिग प्लेस का ख्याल रखना भी कपल्स की ज़िम्मेदारी है जिससे आस-पास अन्य लोग असहज ना हों। अगर लोग असहज होते हैं और वो पुलिस में शिकायत करते हैं तो पुलिस की कार्रवाही समझ में आती है। लेकिन ज़बरदस्ती पुलिस अपराधी बनाने पर तुल जाए तो फिर इसे कानून का नाजायज़ इस्तेमाल ही कहा जाएगा। अगर ऐसे ही चलता रहा तो जगह-2 अब ये नये-नये अपराधी समाज में जन्म लेंगे जिनको पार्क से उठाकर कोर्ट भेज दिया जायेगा और फिर वो अपराधी बनकर ही वापस आएंगे। अगर ये कहीं नौकरी भी नहीं कर पायेंगे तो फिर वो आगे जाकर अपराध का ही रास्ता चुनेंगे।
लेकिन क्या सरकार भी इन अभियानों का हिस्सा है जिसमें कपल्स का सार्वजनिक स्थल पर बैठना या कपल होना ही गुनाह है? क्या सरकार द्वारा खासकर कि बीजेपी शासित राज्यों, जिसमें वो इस संस्कृति के खिलाफ हैं पुलिस को बिन ब्याहें कपल्स को दबोचने के निर्देश दिये गए हैं? ये सच हो या ना हो लेकिन इन तरीकों से असली अपराधी तो पकड़ में नहीं आएंगे और मासूमों को अपराधी बना दिया जाएगा। ऐसे में इसकी ज़िम्मेदार केवल सरकार ही होगी।
फिलहाल विवेक अपने कुछ साथियों के साथ इंसाफ पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है और सोशल मीडिया (फेसबुक) पर अभियान चलाकर सच्चाई सामने रखकर भविष्य की असमंजस की स्थिति के साथ इंसाफ के लिए लड़ रहा है।