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महज़ दो शब्द नहीं है “बिहार बोर्ड”

बहुत दिनों के इंतजार के बाद आखिर आ ही गया बिहार बोर्ड का रिज़ल्ट। लेकिन ये क्या? ये देखने के लिए तो पांच-पांच किलोमीटर दूर से नहीं आये थे साइबर कैफ़े। आखिर क्या हुआ? शायद कंप्यूटर में गड़बड़ी है अन्यथा गांव के मुखिया की बेटी का फ़ेल हो जाना वो भी हिंदी जैसे आसान विषय में संभव नहीं है। लेकिन जो सत्य है उसे नकारा नहीं जा सकता। स्कूल के सबसे होनहार छात्र भी गणित में फ़ेल है, पटना में रहकर IIT जैसे परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र फ़ेल हैं। एक बार तो विश्वास नहीं होता है फिर ज़हन में शब्द आता है ‘बिहार बोर्ड’ और सब कुछ साफ हो जाता है।

देखिये “बिहार बोर्ड” मात्र दो शब्द नहीं है और इस बार तो कतई नहीं। जिन्होंने बिहार बोर्ड में पढ़ा है एवं परीक्षाएं दी है वे जानते हैं किये कैसे खतरनाक शब्द हैं और इन शब्दों का उनके जीवन में क्या स्थान है? वैसे तो बिहार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पूरे राज्य में दसवीं एवं बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करवाती है। हर साल लगभग दस लाख से अधिक विद्यार्थी केवल बारहवीं की परीक्षाएं इस बोर्ड से देते हैं इनमे पटना जैसे शहर के नामी गिरामी स्कूलों के बच्चे भी होते हैं तो दूर किसी अज्ञात गांव के स्कूल के छात्र भी।

‘प्राइवेट’ से फॉर्म भरने वाले छात्रों की तादाद भी कम नहीं होती है। जो पढ़ने वाले बच्चे होते हैं(जिन्होंने सालभर खूब मेहनत कर बिना चोरी के परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर दिए) वे डरकर इस बोर्ड के रिज़ल्ट का इंतज़ार करते हैं और जिन्होंने चीटिंग का सहारा लिया होता है वे भी कम टेंशन में नहीं रहते हैंबाबूजी इसलिए चिंता करते हैं कि अगर कहीं उलट फेर हो गया तो चार हज़ार रुपया गया सो गया, गांव समाज में  लोग क्या कहेंगे (ये जानते हुए भी कि इसमें उनका कोई दोष नहीं है) एवं शादी-ब्याह कैसे होगा?

अधिकतर अख़बारों/टीवी चैनलों में बिहार बोर्ड के रिजल्ट की चर्चा है। मीडिया इसलिए भी उत्साहित है क्योंकि पिछले साल की तरह उन्हें इस बार भी कुछ मिल गया है जो उनके लिए एक गरमागरम खबर है। पिछली बार जो घटना हुई उसे शायद ‘टॉपर घोटाला’ कहा गया मिडिया में पर इस बार जो हुआ उसे मिडिया एवं लोग क्या कहेंगे?
अब बताता हूँ कि आखिर हुआ क्या।

देखिये जनाब तीस तारीख को भारत के पांच राज्यों के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने छात्रों के रिजल्ट जारी किये। ये तो ठीक था, बच्चे एवं परिवारवाले खुश थे पर गड़बड़ी तो हुई बिहार में। जिसने भी सुना मुँह खुला का खुला रह गया। बारह लाख से अधिक छात्रों ने परीक्षा दी थी पर कुल मिलाकर लगभग चार लाख ही पास हो पाए हैं यानि लगभग आठ लाख विद्यार्थी अनुतीर्ण घोषित किये गए है, जरा ध्यान से अनुतीर्ण मतलब फ़ेल। (न द्वितीय श्रेणी और न तृतीय श्रेणी फ़ैल मतलब फ़ेल)

शिक्षा मंत्री जी कह रहे हैं इस बार सख्ती से परीक्षा लिया गया इसलिए केवल पढ़ने वाले पास हुए हैं पर इसका क्या अर्थ निकाला जाये कि पिछले कई सालों से उन्होंने न पढ़ने वालों पर मेहरबानी की थी या इस बार पढ़ने वाले जरा कम गए हैं। क्या बच्चे इतना भी नहीं पढ़े थे कि द्वितीय श्रेणी तक भी पहुच पाए ? अगर ऐसा था तो कॉमर्स में पास प्रतिशत विज्ञानं एवं कला संकाय के मुकाबले लगभग दुगने क्यों है जबकि बिहार के बच्चे केवल हाथ में मैथ(गणित) एवं अंग्रेजी की पुस्तके लेकर दिन भर इधर उधर होते दिखते हैं,(कॉमर्स में तो शायद इसलिए नाम लिखवाते हैं क्योंकि उनको साइंस विषय नहीं मिल पाता है।) क्या बिहार के बच्चे इतने कमज़ोर इसलिए हैं क्योंकि हर साल अधिकतर आईएएस यहीं से बनते हैं या इसलिए क्योंकि पटना में लाखो छात्र आईआईटी की परीक्षा की तैयारी में लगे रहते हैं?

खैर छोड़िये मंत्री जी की बातों को। बात यह है कि बिहार में शिक्षा के नाम पर केवल हर प्रखंड में स्कूल मिलेंगे एवं मिड डे मील की बातें, अटेंडेंस बनवाने के लिए छात्रों को स्कूल जाना पड़ता है और शिक्षकों को भी क्योंकि ये मज़बूरी है अन्यथा कौन जाये ऐसे जगहों पर।

परीक्षा तो पहले ऐसे होती थी जैसे मछलीबाज़ार में लोग मुफ्त  मछलियां लूटने में लगे हो पर पिछले दो साल में ये बात जब राष्ट्रिय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को पता चला तो शायद इस बार बिहार सरकार ने परीक्षा को कदाचारमुक्त करवाने के लिए बिहार पुलिस को लगवा दिया (मानो बच्चे परीक्षा न देने जा रहे हो बल्कि डकैती करने निकले हो) पर वे भूल गए कि जब बच्चों की पढ़ाई ही नहीं हुई तो परीक्षा का उनके लिए क्या मतलब। स्कूल में क्लर्क मास्टरसाहब एवं इतना कठिन विषय आखिर अकेले कैसे समझे ? इसलिए थक हारकर ट्यूशन एवं कोचिंग जाते है पर वहां तो सैकड़ो की भीड़, कुछ समझ में नहीं आये तो किससे पूछे बेचारे। यही है बिहार की शिक्षा नीति, मतलब चलता है वाला सिद्धांत।

एक तरफ सीबीएसई एवं आईसीएससी जैसे बोर्ड हैं, उनकी भी परीक्षाएं होती हैं उनके भी रिजल्ट निकलते हैं वहीं दूसरी तरफ बिहार बोर्ड जिसे कुछ साल पहले तक लोग बहार बोर्ड के नाम से भी पुकारा करते थे। आखिर क्यों इस बोर्ड के अधिकारी ये नहीं समझ पा रहे कि ये नौकरी केवल उनका पेट नहीं पाल रहा है बल्कि लाखों विद्यार्थियों की आशाएं जुडी हैं इससे। मुख्यमंत्री एवं शिक्षा विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि जुलाई में कंपार्टमेंटल इग्ज़ाम होगा पर क्या भरोसा है कि वह भी सही तरीके से होगा एवं उसमे सब ठीक हो जायेगा ? अगर इसी उहापोह में कोई छात्र कोई गलत कदम उठा ले तो कौन जिम्मेदार होगा ?

और अंत में कुछ सवाल :
1. स्कूलों में 20 लाख से अधिक पद खाली क्यों है ?

2. शिक्षकों का काम पढ़ाना है या मिड डे मील बनवाना,पोशाक एवं साइकिल वितरण करना,चुनाव प्रचार करना या जनगणना करना ?

3. जिस छात्र ने जेईई मेंस निकाल लिया हो वो भौतिकी में इतना कमजोर की पास होने भर अंक न ला सके ?

4. फ़ेल हुए 8 लाख छात्रों में अगर 10 % का भी पढाई से मोहभंग हुआ तो उनका भविष्य गड़बड़ हो जायेगा, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?

5. 79 लाख से अधिक कॉपियों को जांचने के लिए इतने कम शिक्षक क्यों लगाए गए और वो भी जहाँ तहाँ के ?

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