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लंदन में आग: तो सुरक्षा में खामियां वहां भी होती हैं!

पश्चिमी लंदन की 27 मंजिला रिहाइशी इमारत ग्रेनफेल टावर में भीषण आग ने भारी तबाही मचाई है। आग में कितने लोगों की मौत हुई है, इसका आंकड़ा तो सामने नहीं आया है, लेकिन वहां के अफसरान इसे ‘बड़ा अग्निकांड’ बता रहे हैं।

पश्चिमी लंदन की 27 मंजिला ईमारत में लगी भीषण आग; फोटो आभार: getty images

खबर है कि लोगों ने आग से बचने के लिए बिल्डिंग से छलांग भी लगाई है। लंदन फायर ब्रिगेड की कमिश्नर डैनी कॉटन ने इसे बड़ा अग्निकांड करार देते हुए कहा कि उन्होंने अपने 29 वर्षों के करियर में इतना बड़ा हादसा नहीं देखा है। गनीमत रही कि आग लगने के 6 मिनट के भीतर ही दमकल की गाड़ियां वहां पहुंच गईं व बचाव कार्य तेज़ कर दिया।

इस भीषण अग्निकांड ने भारत में पिछले 2 दशकों में हुए एक दर्जन से अधिक अग्निकांडों की याद दिला दी है। अपने देश में आग की घटनाएं होती हैं तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह सुरक्षा उपायों की अनदेखी सामने आती है। लेकिन, लंदन में हुए अग्निकांड से पता चलता है कि नागरिक सुरक्षा वहां भी दोयम दर्जे पर ही है।

ग्रेनफेल टावर के बाशिंदों द्वारा चलाए जा रहे ब्लॉग ग्रेनफेल एक्शन ग्रुप में अग्निकांड के तुरंत बाद एक लेख लिख कर कहा गया है कि इस अग्निकांड की आशंका बहुत पहले ही जताई गई, लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। लेख में कहा गया है कि ग्रेनफेल टावर व अन्य टावरों में सुरक्षा की बदइंतजामी के बारे में पहले भी कई बार लिखकर ध्यान आकर्षित किया गया था, लेकिन किसी ने इस पर संज्ञान नहीं लिया। लेख में 2013 में लिखी गई 8 रिपोर्टों का लिंक देकर बताया गया है कि किस तरह कई बार सुरक्षा मानकों की अनदेखी करने की शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।

उल्लेखनीय है कि वर्ष फरवरी 2011 में कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में स्टीफन कोर्ट बिल्डिंग में भीषण आग लग गई थी, जिसमें 19 लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले सितंबर 2012 में तमिलनाडु में हुए अग्निकांड में 54 लोग जिंदा जल गए थे।

आग पर काबू करते दमकल कर्मचारी; फोटो आभार : getty images

13 जून 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में लगी आग में 59 लोगों की जान चली गई थी।

दिसंबर 2013 में कोलकाता के आमरी अस्पताल में भीषण आग लग गई थी जिसमें करीब 90 मरीजों की मौत हो गई थी।

सितंबर 2005 में बिहार के एक गांव में पटाखा फैक्टरी में लगी आग में 35 लोगों की मौत हो गई थी और इसके सात महीने बाद मेरठ के विक्टोरिया पार्क में एक मेले में आग ने 100 लोगों को मौत की नींद सुला दी थी। आग की ऐसी ही और भी घटनाएं हैं, जो नागरिक सुरक्षा में प्रशासनिक उदासीनता की नज़ीर पेश करती हैं। नागरिक सुरक्षा में उदासीनता के साथ ही इस तरह की घटनाओं के दोषियों को सजा दिलवाने की न्यायिक प्रक्रिया की रफ्तार भी बेहद सुस्त रही है।

उपहार सिनेमा व आमरी अग्निकांड को मिसाल के तौर पर लिया जा सकता है। उपहार सिनेमा अग्निकांड के दोषी गोपाल अंसल को इस साल फरवरी में सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक साल की सजा सुनाई जबकि उम्र के कारण सुशील अंसल को कोई सजा नहीं हुई।

आमरी अग्निकांड की बात करें तो 2013 में हुए इस हादसे में अब तक चश्मदीदों के बयान ही कोर्ट में लिए जा रहे हैं। इस अग्निकांड में अपने परिजन को खो देने वाली पारमिता गुहा ठाकुरता ने कहा, “निचली अदालत में सुनवाई चल रही है, लेकिन इसकी रफ्तार बेहद सुस्त है। हमने त्वरित सुनवाई के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट में आवेदन दिया है।”

बहरहाल, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि लंदन का प्रशासन भारत की तरह दोषियों को सजा दिलवाने में सुस्ती न दिखाकर एक अलग नज़ीर पेश करेगा। इससे पीड़ित परिवार को कुछ राहत मिलेगी व भारत को सीख।

वेबसाइट थंबनेल और सोशल मीडिया फोटो आभार: getty images

 

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