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हमने ‘मेरी बेटी सनी लियोनी बनना चाहती है’ देखी, ताकि आपको ना देखनी पड़े

तो भाईयों और बहनों, देवियों और सज्जनों, राम गोपाल वर्मा की नई शॉर्ट फिल्म आ गई है और नाम है ”मेरी बेटी सनी लियोनी बनना चाहती है।” क्या हुआ? एकदम गदर वाली एंट्री नहीं हुई फिल्म की? हम्म्म… अब नाम से ये तो साफ था कि इस फिल्म के लिए आसान कुछ भी नहीं होगा मतलब असहजता का माहौल तो रहेगा ही कम से कम। फिल्म की शुरुआत होती है डेमोक्रेसी और च्वाईस पर जॉर्ज वॉशिंगटन और आयन रैंड के फेमस कोट्स से। क्योंकि जिस बारे में बात होने वाली है उसके बारे में आपको थोड़ा तो बैकग्राउंड देना था ना। तो दिल थाम के बैठिये आने वाला है ओपनिंग सीन।

मिस्टर और मिसेज़ नॉर्मल से मिलिए- पहनावे से लेकर घर की बनावट सब एकदम संस्कारी मिडल क्लास  वाली। उनकी जवान बेटी ने अभी अभी उनसे कहा है कि वो सनी लियोनी की तरह एक पॉर्नस्टार बनना चाहती है। और ज़ाहिर है इस नए करियर च्वॉइस को लेकर कोई सेलिब्रेशन का माहौल नहीं है।

इस करियर च्वॉइस की घोषणा के बाद मां-बाप का तीसरा नेत्र किस कदर खुला होगा वो तो डिस्क्राइब करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन अपने ट्वेंटीज़ में रही उनकी बेटी एकदम शांत है। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। जैसे युद्ध क्षेत्र में पराक्रम से भरपूर कोई योद्धा वैसे ही वो जेंडर स्टडीज़ के कई किताबों से इकट्ठा की गई अपनी वन लाइनर्स से हर सवाल से निपटने के लिए तैयार थी।

आप उसकी बातों से असहज़ हो सकते हैं लेकिन यकीन मानिए उसकी सारी बातें एकदम प्वाइंट पर हैं।

जे बात लड़की। ये असल बात कही ना लड़कियों के सेक्शुएलिटी पर मर्दों के कंट्रोल वाली।

आंखों में देखिए ज़रा उसकी

जब उसके परम संस्कारी पिता जी ने ये पूछा कि तुम रंडी बनना चाहती हो? तो उन्हें क्या पता था कि बेटी ऐसा जवाब देगी कि बोलती बंद हो जाएगी।

माने अपने जवाबों से ये पटक-पटक के धोया।

RGV के लिए यहां पर तालियां तो बनती है कि उन्होंने एक्ट्रेस को सीधा कैमरे में देखकर YouTube ट्रोल्स की आंखों में आंख डालकर बात करने का स्कोप दिया। हालांकि ट्रोल्स जैसे निर्बुद्धियों को आप चुप तो करवा नहीं सकते। आप कितना भी भयंकर प्वाइंट रखें, वो आएंगे और ऐसी बाते कर जाएंगे-

बेहद प्यारी लड़की है। इसके पास सभी चीज़ों का जवाब है। पॉर्न स्टार और सेक्स वर्कर्स को अनैतिक बताने वालों आओ ज़रा इस बात पर गौर करें कि पितृसत्ता ने कैसे इसकी सामाजिक और आर्थिक अस्तित्व को जन्म दिया। हाहाहा ये हाथ से निकली हुई लड़की एक और भयंकर वन लाइनर के साथ तैयार है।

“पश्चिमी सभ्यता और इंटरनेट फेमिनिस्ट्स” से प्रभावित इस सोच को लेकर, माता-पिता का क्या रिएक्शन है ज़रा वो देखिए

हम्म्म… ये तो शुरुआत थी, मम्मी जी इसके बाद सच में वाइलेंट हो गईं और बेटी पर टूट पड़ीं।

लेकिन जैसे वेंकटेश प्रसाद ने आमिर सोहेल से चौका खाने के बाद ऐतिहासिक वापसी की थी उससे भी भयंकर वापसी की लड़की ने और अपने लॉजिक से मम्मी की मार को क्लीन बोल्ड कर दिया।

साम-दाम-दंड-भेद में से दंड वाला पैंतरा तो काम नहीं किया। कुटाई के बाद भी लड़की पॉर्न स्टार ही बनना चाहती है। और ज़रा इस बात को कुतर्क साबित कर दीजिए कि सेक्स वर्कर (जिसे आप रंडी बोलते हैं) या पॉर्न स्टार को ठीक वैसी ही इज्ज़त क्यों ना मिले जैसी असिस्टेंट मैनेजर, या हाउसवाइफ को मिलती है? काम तो काम है। लेकिन इतना लॉजिक मिस्टर और मिसेज़ के लिए बकैती की श्रेणी में आता है। और अब परम पूज्य पिता जी ने पितृसत्ता का रामबाण शादी को, फुल फोर्स में छोड़ दिया है।

इसके बाद भी समाज का और फेमिनिज़्म का फेस ऑफ है लेकिन उसके बाद बात थोड़ी देर के लिए बात हमारे हाथ और समझ से भी निकल गई जब ‘सुरक्षा में हत्या’ कर दी गई, नहीं समझें? तो बेटी का ये लॉजिक देखिए-

पप्पा का ई वाला मुंह एकदम बेस्ट रिएक्शन है

इसके बाद बेटी अपने मोनोलॉग में महिलाओं द्वारा बिना किसी आर्थिक मदद के किये जाने वाले घरेलू काम यानी कि अनपेड डोमेस्टिक वर्क का मसला भी खुरचती है।

पूरे फिल्म के दौरान भले ही आप मम्मी-पापा के लॉजिक से सहमत ना हों लेकिन लास्ट में जो एकदम ‘क्या से क्या हो गया’ वाला रिएक्शन है दोनो का उससे तो रिलेट कर ही सकते हैं।

अब अगर आपको लग रहा है कि ये फिल्म मम्मी-पापा के स्टैचू वाले पोज़ के साथ खत्म हो गया तो ज़रा इत्मिनान की कुर्सी को पकड़िए। RGV अपने स्वविचार और सुविचार को पूरे पर्दे पर फैला देते हैं। उसको पढ़ने के लिए एकदम ज्ञान वाला चश्मा पहनना ज़रूरी है जैसे 3D फिल्म देखने के लिए कागज वाला चश्मा। सावधान सुविचार आ रहा है…

I sincerely believe women empowerment should have no discrimination.” माने मैं बहुत गंभीरता से ये मानता हूं कि महिला सशक्तिकरण में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

मैं अपने आंकलन में गलत हो सकती हूं लेकिन फिल्म तो यही संदेश देती है कि इस मैसेज को जब RGV जैसे पुरुष बताएंगे तब ही ये बाते समझ आएंगी- आखिर पुरुषों की अनुमति के बिना हम औरतों का जीवन है भी क्या! है ना?

इस 11 मिनट की फिल्म में कई जगह प्रोग्रेसिव बनने का प्रयास किया गया है। हालांकि ये फिल्म करन जौहर की 2008 की फिल्म दोस्ताना जैसी निराधार नहीं है और कई महत्वपूर्ण मुद्दों को छूने की कोशिश करती है, लेकिन इस प्रयास को भी असफलता की श्रेणी में ही रखा जाएगा।

आप ये सब पढ़ने के बाद भी ये फिल्म देखना चाहते हैं और खुद को विचित्र महसूस करवाना चाहते हैं तो ये फिल्म YouTube पर दिखाई जा रही है। हालांकि आपको वैधानिक चेतावनी दी जाती है।

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