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क्यों लव-मैरेज को बाप की इज़्ज़त से जोड़ दिया जाता है?

वो बोली कि, “तुम अच्छा लिखती हो, क्या तुम मेरी कहानी लिखोगी?” मैंनें कहा “मैं कहानियां कम लिखती हूं और आर्टिकल्स ज़्यादा लिखती हूं।” उसने कहा, “ये कहानी कम, हादसा ज़्यादा है।”

मेरे हां कहने पर उसका फोन आया था। उससे मैं फेसबुक के ज़रिए जुड़ी थी और बस उसकी शक्ल ही देखी थी। उसकी आवाज़ इतनी सॉफ्ट होगी, ऐसा मैंनें सच में इमैजिन नहीं किया था। नाम नहीं बता सकती, प्राइवेसी इश्यूज़ हैं। फोन उठाते ही मैंनें उससे पूछा, “कैसी हो?” वो अपनी कहानी बताने की इतनी जल्दी में थी कि बस “ठीक हूं” कहकर टाल दिया और बोली “मैं आपको मेरी समस्या बताती हूं।”

कुछ इस तरह से उसने अपनी कहानी बताई- “हम तीन बहनें हैं, भाई नहीं है। मिडिल क्लास सोसाइटी से हूं, पापा इतने पैसे वाले नहीं थे कि दहेज दे कर शादी कर दें। भाई नहीं होने की वजह से रिश्ता नहीं हो रहा था, बड़ी बहन का जैसे-तैसे रिश्ता हुआ था। उसने ससुराल में बहुत सुना लेकिन एडजस्ट कर लिया, क्योंकि जीजाजी उसे कुछ कहते नहीं थे।

फिर मेरी शादी के लिए खोज-बीन शुरू हुई, तब मैं फार्मेसी की पढ़ाई कर रही थी। मुझे एक लड़का पसंद भी था, लेकिन हमारे यहां लव-मैरेज को बाप की इज़्ज़त से जोड़ देते हैं और मैं उन्हें दुखी नहीं करना चाहती थी, सो आगे कोई कदम नहीं उठाया। जब शादी में दिक्कतें आने लगी तो मेरी मां मुझे बुरा-भला कहने लगी। उनके शब्द धीरे-धीरे गालियों में बदल गए और मुझे लगा कि अब किसी से भी हो जाए शादी, बस अब इस घर से निकल जाऊं।

मेरे माता-पिता के लिए मैं एक बहुत बड़ा बोझ थी और मेरे बाद एक और छोटी बहन। किसी लड़के का रिश्ता आया था जिसे गाड़ी चाहिए थी दहेज में, जो मेरे पिता दे नहीं सकते थे इसलिए मना कर दिया गया। लेकिन मेरी ज़िंदगी में दुर्भाग्य ने एक बार फिर दरवाज़ा खटखटाया और फिर वो रिश्ता लेकर आए और कहा कि कुछ नहीं चाहिए बस रिश्ता कर लो। पापा ने भी आनन-फानन में रिश्ता फायनल कर दिया और सगाई हो गयी।”

सगाई से लेकर शादी तक और फिर शादी के बाद के दो साल तक उस लड़की ने जो नरक झेला वो मैं आपको बता सकती हूं, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसा होता आया है और आगे भी होता रहेगा।

क्या हुआ होगा उसके साथ! मार-पीट, दहेज के लिए ताने सुनना, कम पढ़े-लिखे परिवार में जादू-टोटके से डर जाना, पति का वेश्या कह कर बुलाना और सरेआम गालियाँ देना। जेठ का गंदी नज़रों से देखना, गंदी बातें करना, पति का बेटा पैदा करने की चाह में रात भर सोने न देना औऱ भी न जाने क्या-क्या। बस इतना ही हुआ है और ये तो आम बात है, नया क्या है इसमें!! इतना सब हो जाने के बाद मां-बाप का उसे घर में आने देना और तलाक़ फाइल करवाना। उसका चिल्लाना कि, “पापा आप मुझे कुंवारी ही रख लेते, मैं कुछ नहीं कहती लेकिन ऐसे घर में क्यों की मेरी शादी?”

अभी पिछले दो सालों से वो अकेले तलाक के लिए लड़ रही है, वरना मां-बाप तो कबका बदनामी के डर से चुपके से सेटलमेंट करवा चुके होते। खुद का वकील भी दूसरे पक्ष की तरफ से लड़ता है और पापा वकील नहीं बदलने देते।

मेरा ये सब लिखने का और इन बातों को आप तक पहुंचाने का मकसद सिर्फ एक सवाल पूछना है कि, क्या हम बेटियां वाकई इतना बड़ा बोझ हैं मां-बाप के लिए? या तो पैदा ही न करो, पैदा कर दिया तो पढ़ाओगे नहीं, पढ़ा दिया तो 22-23 की उम्र में शादी के लिए इतना टॉर्चर करोगे कि 25 तक अगर शादी न हुई हो तो लड़की डिप्रेशन में चली जाती है, सुसाइड कर लेती है या किसी से भी शादी करने को राजी हो जाती है। शादी उसके लिए एक दलदल से निकलकर दूसरे दलदल में जाने का रास्ता भर बन के रह जाता है।

कहां है समाज, जो कहता है हमारे यहां नारी देवी का रूप है और धिक्कार है ऐसी मांओं पर, जो अपने बेटे को ऐसा करने के लिए बढ़ावा देती हैं। लड़कियों को खुद ही हिम्मत करनी होगी। कब तक माता-पिता परिवार-कुनबे की इज़्ज़त का बोझ लादे उसके नीचे दबती जाएंगी। माता-पिता की चिंता और इज़्ज़त के लिए कतई शादी ना करें। शादी तभी करें जब आप तैयार हों और सामने वाले पर भरोसा हो कि जिंदगीभर साथ दे सकता है।

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