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84 का जून आज तक पूछता है, क्या ऑपरेशन ब्लू स्टार ज़रूरी था?

जून का महीना आ चुका है, इसकी तेज़ धूप और गर्मी तो झुलसा देने वाली है ही, लेकिन एक घटना ऐसी भी है जिसकी तपिश मुझे जून के महीने से भी कहीं ज़्यादा लगती है। ये घटना है आपरेशन ब्लू स्टार, मैं इस पर कभी पूरी आज़ादी से अपनी राय नहीं रख पाया क्यूंकि ऑपरेशन ब्लू स्टार की बात पर समाज हमेशा दो हिस्सों में बंटा नज़र आता है।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के जवान। फोटो आभार: getty imeges

एक हिस्सा वो है जो इसे दुखदायी तो मानता हैं लेकिन उसका तर्क है कि ये देश के हित में लिया गया एक कठिन फैसला था। शब्दों में हमदर्दी जोड़कर इसे वाजिब बता दिया जाता है। वहीं एक दूसरा तबका, खासकर कि सिख समुदाय के लोग जिनके लिये हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा (स्वर्ण मंदिर अमृतसर) इतना पवित्र हैं जिसकी हिफाज़त के लिये वह कुछ भी कर सकता हैं। उनमे मैं भी शामिल हूं जिनका ये मानना है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार तत्कालीन भारत सरकार की सबसे बड़ी भूल थी, जहां अपने ही लोगों पर बल का इस्तेमाल किया गया था।

किसी भी देश की फौज और पुलिस में फर्क ये है कि फौज दुश्मन को खत्म करने के लिये होती है और पुलिस समाज में कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए। देश के अन्दर आर्मी तब तक दखल नहीं देती जब तक कि किसी अन्य देश ने हमला ना किया हो या कोई प्राकृतिक आपदा की स्थिति ना हो। तो ऐसे क्या कारण थे कि भारत सरकार को अॉपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देने की ज़रूरत पड़ गयी। क्या तब कोई और रास्ता नहीं बचा था?

ऑपरेशन ब्लू स्टार के साथ एक और नाम जरनैल सिंह भिंडरावाले जोड़ दिया जाता हैं, भारतीय मीडिया अक्सर इस शख़्स को आतंकवादी के रूप में दिखता है। वहीं पंजाब और सिख समुदाय में इसकी पहचान आतंकवादी की तो क़तई नहीं हैं, उसमे मैं भी शामिल हूं। जो शख़्स 03 जून 1984 तक सार्वजनिक रूप से सबसे मिलता था, जिसके खिलाफ कोई देशद्रोह या और किसी भी अन्य अपराध को लेकर किसी भी अदालत में कोई मुकदमा नही था। जो शख़्स भारत में ही मौजूद था और कहीं भी किसी भी अन्य देश में भागकर नहीं गया था, उसे कैसे आतंकवादी कहा जा सकता हैं?

निश्चित रूप से भिंडरावाला पंजाब राज्य की मांगों के लिये केंद्र सरकार से लोहा ले रहा था और वह अपने भाषणों में केंद्र सरकार की पंजाब विरोधी नीतियों का खुल कर विरोध भी कर रहा था। जिसमें पानी का बंटवारा, इत्यादि राज्य हित की बातें थी। याद रखिये जब आप पंजाब राज्य के हित की बात करते हैं तब उसमें 40-45℅ गैर सिख समुदाय जिनमे बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय के लोग भी आते हैं। ये वह समुदाय है जो राज्य सरकार से लेकर पंजाब की व्यवस्था में हर जहग मौजूद है। इस बात को समझने की ज़रूरत है कि पंजाब के काले दौर में भटके हुये नौजवानों की लड़ाई व्यवस्था से थी ना की किसी धर्म के खिलाफ और जहां भी धर्म के नाम पर कत्ल हुये वहां राजनीतिक कारण कितने थे?

आतंकवादी क्या इस शब्द का सरोकार बस हथियारों से ही हैं? मेरी समझ में शायद नहीं, जो भी व्यक्ति या संस्था किसी ना किसी रूप से नागरिकों के अधिकारों का हनन करता है या करती है, उसे आतंकवादी कहा जा सकता है। मसलन घोटाले, भड़काऊ भाषण या अखबारों में छपी गलत खबरें जिससे लोगों के बीच द्वेष फैलता हो, क्या इन्हें आतंकवाद नहीं कहा जा सकता? ज़्यादा दूर ना जाते हुए दादरी और अलवर में गौरक्षा के नाम पर भीड़ ने जिस तरह से लोगों का कत्ल कर दिया, ये भी तो आतंकवाद का ही एक उदाहरण हैं। गुजरात में पटेल समाज पर बल प्रयोग करने से गुजरात के मुख्यमंत्री तक को बदल दिया जाता है लेकिन 2002 के गुजरात दंगे, 1992-93 के मुंबई दंगे और 1984 के सिखों के कत्लेआम पर व्यवस्था निष्क्रिय रहती है। ये भी तो एक आतंकवाद का उदाहरण हैं।

इन दंगों और नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार राजनीतिक पार्टियों का सत्ता में बने रहना कहीं से भी एक आज़ाद लोकतंत्र का उदाहरण नहीं हैं। खैर हम ब्लू स्टार की ही बात करें तो इसके पीछे सरकार का सबसे बड़ा तर्क था कि गुरुद्वारा साहिब में हथियार लाये जा रहे हैं। लेकिन थोड़ा सोचें तो क्या पुलिस और प्रशासन को नहीं पता था कि वहां हथियार लाए जा रहे हैं और अगर पता था तो समय रहते कोई कार्रवाही क्यूं नहीं की गई? क्या सिखों की श्रद्धा के सबसे बड़े केंद्र पर इस तरह की बड़ी फौजी कार्रवाही ही आखिरी रास्ता था?

क्या ब्लू स्टार ज़रूरी था? शायद इस पर आप मेरी राय से सहमत नहीं हों। संभव है कि मैं अपने विचारों से आपको धर्मनिरपेक्ष, जवाबदेह या अनुभवी ना लगूं। लेकिन 80 के दशक की शुरुवात में सेना की पश्चिमी कमान संभाल रहे रिटायर्ड ले. जनरल एस.के. सिन्हा (Retired. Lt. Gen. S.K. Sinha) का ऊपर दिया गया इंटरव्यू देखने के बाद शायद आप मेरी बात समझ सकें।

फोटो आभार: getty images 

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