क्या आपको भी लगता है कि देश में जितनी भी समस्याएं हैं सब मुसलमानों की वजह से हैं? क्या आपने भी ऐसा इतिहास पढ़ा है या सुना है जिसके आधार पर आपको मुसलमानों से नफरत होती है? और आप भीड़ के द्वारा हत्या किए जाने (Lynching) को सही ठहराते हैं? अगर ऐसा है तो मेरे पास आपसे साझा करने के लिए कुछ है, क्योंकि कुछ बरस पहले मैं भी यही सोचता था।
मेरा बचपन एक ऐसी जगह बीता जहां मुसलमानों की आबादी तकरीबन 70 फीसदी थी और मेरी शुरुआती शिक्षा संघ के स्कूल में हुई थी। मतलब ऐसा स्कूल जहां शिक्षक ये पूछते थे कि क्लास में कोई मुस्लिम बालक तो नहीं है। उसके बाद विद्वेष पूर्ण कहानियां सुनाई जाती थी, जिनका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं होता था। बाकी जो कमी थी वो मैंने लगभग 7 साल लगातार राष्ट्रधर्म जैसी पत्रिका पढ़कर पूरी कर ली थी। नतीजा था इतिहास की गलत समझ।
बात बहुत सरल सी है, हिन्दू और मुस्लिम शासकों ने दुश्मनी भी खूब की और दोस्ती भी। अब वो चाहे मराठे रहे हों या राजपूत। किसी भी औसत किताब को उठाकर पढ़ लीजिये बात साफ हो जाएगी।
जो लोग ये इल्ज़ाम लगाते हैं कि कम्युनिस्टों ने इतिहास बिगाड़ दिया है, वे खुद इतिहास लिख नहीं पा रहे हैं। दरअसल हम धारणा और किवदंतियों के आधार पर फैसले ले रहे हैं। ये अक्सर एक वर्ग के हित साधने के लिए बनी होती हैं और ऐसे इतिहास के आधार पर हमें बदला लेने के लिए उकसाया जाता है। भाई उस हिसाब से तो बदला अंग्रेजों, डच, फ्रांसीसियों, पुर्तगालियों, शक, हूण सबसे लेना पड़ेगा!! और फिर तो आदिवासी भी हमसे बदला ले लें।
अब आप कहेंगे कि इतिहास छोड़ो, इस्लाम में बहुत बुराइयां हैं। हां ठीक है, हो सकता है कि हज़ारों कमियां हों, हर धर्म में होती हैं। हिन्दू धर्म में भी औरतों को ज़िन्दा जलाया जाने लगा था सती प्रथा के नाम पर।
समाधान इंसानियत में है और इंसानी तरक्की हमेशा तर्क और मानवीय सोच से ही संभव है। प्रवीण तोगड़िया के भाषणों पर तालियां हमने भी खूब बजायी हैं, लेकिन ये एहसास बाद में हुआ कि इससे किसका भला होगा? अनेक ऐसे अनुभव हैं जब एक क्रिकेट मैच के झगड़े को धर्म से जोड़ दिया जाता है और कारण होते हैं कुछ लोगों के निजी स्वार्थ।
अगर आप भी नफरत की आग में जल रहे हैं तो रूककर सोचिये, आपकी धारणा गलत भी हो सकती है। और अगर दिक्कते हैं तो ईश्वर चन्द्र विद्यासागर बनिए, राजा राम मोहन रॉय बनिए, बाबू बजरंगी मत बनिए।