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रेत खनन घोटाला: पंजाब में सरकार के पैरों तले क्यों खिसक रही है ज़मीन

इस साल की शरुआत में पंजाब चुनाव के नतीजों ने सभी चुनावी पंडितो को गहरी दुविधा में डाल दिया। ये कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार ‘आम आदमी पार्टी’ अपना परचम लहराएगी लेकिन चुनावी नतीजों ने ‘आप’ की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। वहीं कांग्रेस की राज्य इकाई को इतनी सीट मिली की जिसकी उन्हें भी उम्मीद नहीं थी। चुनावी परिणाम आने के बाद सभी ने जनता जनार्दन के इस फैसले को स्वीकार कर लिया। इसके बाद जहां ‘आप’ अंतर्कलह के चलते चर्चा में है, वहीं पंजाब की नई राज्य सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरू हो चुके हैं।

पंजाब के बारे में बात की जाए तो दो तथ्यों को जान लेना ज़रूरी है। एक ये कि खेती प्रधान राज्य होने के कारण यहां खेती ही मुख्य व्यवसाय है और बाकी सारे व्यवसाय भी खेती पर ही निर्भर हैं। दूसरा तथ्य ये कि पंजाब के कई घरों से परिवार का कम से कम एक सदस्य विदेश ज़रूर गया है। इन लोगों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि इन विदेशी जगहों का पंजाबी में नामकरण भी हो चुका है मसलन कनाडा को कनेडा और मनीला को मंडीला कहा जाता है। पंजाब में आज पैसा बहुत है और जमीन के आसमान को छूते दाम, पंजाबी के लोगों को एक शानदार घर की नींव रखने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं। आज पंजाब के लोगों के पास पैसा भी है और वह मिट्टी से भी जुड़े हुए हैं। ऐसे में अगर मकान बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली रेत के भाव आसमान को लगे तो आप इसे क्या कहेंगे? दाल में कुछ तो काला है।

पिछले 10 साल में जब राज्य की सत्ता में शिरोमणी अकाली दल बादल और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन काबिज़ था तब से ही रेत माफिया का नाम पंजाब में गूंजना शुरू हो गया था। मुख्य सड़क से ना होकर गांव की छोटी सी सड़क से रात को रेत की ट्रेक्टर ट्राली को जाते हुए देखा जा सकता था। रेत के बढ़ते दाम और रेत माफिया से परेशान लोगो की नब्ज़ को भांपते हुये कांग्रेस ने इसे एक चुनावी मुद्दा भी बनाया था और इस बात का आश्वासन भी दिया था कि कांग्रेस की सरकार के आने से रेत के दाम गिरेंगे और इसके ठेके देने में पारदर्शिता भी लाई जाएगी।

मई 2017, में इ-ऑक्शन के तहत इसके आवंटन भी हुये, लेकिन पता नहीं इ-ऑक्शन की कौन सी इफ कंडीशन गलत लग गयी या कौन व्हाइल लूप गलत घूम गया कि इस आवंटन में धांधली का शक पैदा हो गया। अमित बहादुर नेपाल का रहना वाला एक आम सा इंसान है जो पंजाब के कद्दावर एम.एल.ऐ. राणा गुरजीत सिंह (पंजाब सरकार में ऊर्जा और कृषि मंत्री) के एक निजी दफ्तर में परांठे बनाता है। इनकी महीने की आमदनी कुछ 10 हजार रुपये से ज़्यादा नहीं थी, लेकिन इ-ऑक्शन में अमित बहादुर को रेत के खनन का ठेका कुछ 26 करोड़ रु. में दे दिया गया। राणा गुरजीत सिंह के एक और निजी कर्मचारी कुलविंदर पाल सिंह को भी इ-ऑक्शन के तहत कुछ 9 करोड़ की कीमत में एक रेत के खनन का कॉन्ट्रैक्ट मिला है। कुल 89 आवंटनों में से राणा गुरजीत सिंह के और दो कर्मचारियों को आवंटन मिला है। अब एक सामान्य इंसान इतनी बड़ी रकम किस तरह सरकार के पास जमा करवाएगा, ये एक बड़ा सवाल है। या शायद ये बस नाम थे पर्चा भरने के लिये, असलियत में मालिक तो कोई बड़ा और दबंग किस्म का नेता मतलब राणा जी ही हैं।

आज भ्रष्टाचार से निपटने के लिये डिजिटल इंडिया और इ-ऑक्शन की तर्ज पर कंप्यूटर प्रणाली अपनाई जा रही है। तर्क है कि मशीन के जरिए किसी भी तरह की धांधली को रोका जा सकता है और ये ज़्यादा पारदर्शी है। लेकिन रेट के ठेकों के आवंटनों में हुई गड़बड़ी के बाद स्वीकार करना होगा कि केवल तकनीक के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार नही रोका जा सकता।

पिछले 10 साल में बादल सरकार के कार्यकाल के दौरान पंजाब की जनता गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार की गवाह रही है। लेकिन आज भ्रष्टाचार की ज़मीनी हकीकत को देख के पंजाब का नागरिक यही सोच रहा है कि बादल सरकार के 10 साल की सत्ता को जिस भष्टाचार के मुद्दे पर फटकार लगाई गयी थी, क्या उसी रास्ते पर आज कैप्टेन सरकार चल रही है?

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