“ये देखो मेरे अपने हैं जो सुबह उठते ही एक सफ में खड़े हैं, जिनके कंधों पर पानी के डब्बे लदे हैं, जो सुबह से खड़े पानी-पानी कर रहे हैं।”
मुंबई का मानव विकास सूचकांक या HDI (Human Development Index) 0.56 है और एम-ईस्ट वॉर्ड का HDI सिर्फ 0.05 है।
HDI रिपोर्ट 2009 के मुताबिक मुंबई में हर 5 लोगों में से 3- झुग्गी बस्तियों (या स्लम्स) में रहते हैं। HDI के मुताबिक स्लम्स में रहने वाले लोगों को बाकी के इलाकों से काफी कम सुविधाएं मिलती हैं। इस वार्ड में कई छोटी-छोटी बस्तियां हैं जैसे शिवाजी नगर, बैगनवाड़ी, शांति नगर और चीता कैंप आदि।
इस इलाके से कुछ युवाओं ने पानी की कमी और इस कमी से हो रही अन्य समस्याओं पर पुकार संस्था के साथ मिलकर रिसर्च की है। यह लेख उसी रिसर्च पर आधारित है। इस रिसर्च को सामने लाने के लिए हमने फोटोग्राफी और शायरी की भी मदद ली। यह दोनों कला हमने पुकार के यूथ फ़ेलोशिप प्रोग्राम के दौरान सीखी।
एम-ईस्ट वॉर्ड के कुछ इलाको में तो पानी आता है, पर कुछ इलाको में पानी ना के बराबर आता है। पानी की इस कमी के कारण जिनके घरों में पानी आता है, वो इसे बेचना शुरू कर देते हैं। इस तरह शांति नगर बस्ती में पानी का धंधा शुरू हो गया है जिसे पानी-माफिया भी कहा जाता है। पानी खरीदने से लोगों का घर-खर्च बढ़ता जाता है। इस खर्च को कम करने के लिए लोग ‘पीला पानी’ खरीदते हैं जो कि साफ़ पानी से सस्ता मिलता है। पीला पानी थोड़ा गंदा होता है, जिसको घर में किए गए गड्ढे से निकाला जाता है। इस पानी का इस्तेमाल बस्ती के लोग कपड़े-बर्तन धोने, नहाने, शौच और सफाई आदि के लिए करते हैं। पीला पानी सस्ता है और हर समय उपलब्ध होता है।
इस पीले पानी के इस्तेमाल से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और उन्हें कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं, जैसे- खुजली, स्किन इंफेक्शन, खांसी, सर्दी, पेट-दर्द, जुलाब और बुखार जिसके इलाज के लिए मासिक 1000 से 2000 रुपये खर्च हो जाते हैं इससे उनका घर-खर्च और बढ़ जाता है।
“अगर इसी तरह बहती रहेगी महीने भर की कमाई सिर्फ पानी पर, बताओ कहां खर्च कर पाएंगे हम अपनी और ज़रूरतों पर”
लगभग 60% लोगों के पानी खरीदने में एक महीने के 500 से 1000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं और 3% लोगों के 2000 से 5000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं। जहां लोगों की मासिक आमदनी 5,000-10,000 है, वहीं उनको पानी के लिए ही महीने में कम से कम 1000 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। पैसे के साथ शांति नगर के लोगों का काफी वक़्त भी पानी लाने में खर्च होता है।
इस कवायद में यह भी सामने आया कि लोगों को पानी भरने और उसके लिए लाइन लगाने में भी समय जाता है। लगभग 50% लोगों को लाइन लगाकर पानी भरने में 1/2 से 1 घंटा लगता है। 2% ऐसे भी हैं जिनको 3 से 4 घंटे लगते हैं। खर्चा ज़्यादा होने की वजह से और आमदनी कम होने की वजह से वे घर की मूलभूत ज़रुरतो पर खर्च नहीं कर पाते हैं।
शांति नगर बस्ती में लोग पानी भरने के लिए बच्चों की भी मदद लेते हैं, जिसकी वजह से वह स्कूल जाने में लेट हो जाते हैं या फिर नहीं जा पाते हैं। बार-बार स्कूल ना जा पाने की वजह से बच्चों की पढ़ाई अधूरी रह जाती है। पढ़ाई अधूरी होने के कारण उन्हें काम भी कम आमदनी वाले मिलते हैं और वह गरीबी से बाहर नहीं निकल पाते। वहीं पीले पानी की वजह से बीमारी पर जो खर्च होता है वो अलग। नतीजन गरीब और गरीब हो रहे हैं।
अगर सरकार पानी की समस्या पर ध्यान देगी तो शायद आने वाले सालों मे एम-ईस्ट वॉर्ड विकसित हो सकता है। इसी तरह बस्ती में सालों से चल रहे इस गरीबी के चक्रव्यूह को भी तोड़ा जा सकता है।
हम अपनी रिसर्च को कम्युनिटी इवेंट्स के माध्यम से बस्ती के लोगों तक ले जा रहे हैं। लोगों में इस बात की जागरूकता होने से इस विषय को आगे ले जाया जा सकता है। हमारी बस्ती के लोग कई सालों से पानी की किल्लत के शिकार हैं, जिसकी वजह से हमारे स्वास्थ, शिक्षा और घर-खर्च पर गहरा असर पड़ रहा है। सरकार को निम्न वर्ग की बस्तियों में रह रहे लोगों के विकास के लिए नीतियों और उनके कार्यान्वयन में समानता से ध्यान देना चाहिए।