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The Journey Of Meera

बात लगभग 100 वर्ष पुरानी है। पंजाब (वर्तमान में हरियाणा) का एक ख़ुशहाल गाँव था इन्द्रापुर। उसी ख़ुशहाल गाँव का एक बड़ा ही समृद्ध व्यक्ति था हरनाथ। उसका परिवार छोटा और ख़ुशहाल था,जिसमें हरनाथ उसकी पत्नी मूर्ति और उनकी इकलोटी बेटी थी मीरा। कड़े परिश्रम और तपस्या के बाद उनके घर में हरनाथ के विवाह के दस वर्ष बाद उन्हें कोई संतान प्राप्त हुई थी।

मीरा घर परिवार में सबकी चहेती थी। सब उससे बहुत प्रेम करते थे। केवल पाँच वर्ष की आयु में ही मीरा के गुण दिखाई देने लगे थे। वो एक स्वाभिमानी व सत्य बोलने वाली बच्ची थी। उसके आगे अगर कोई किसी के साथ बुरा व्यहवार करता था तो वो चुप रहकर तमाशा देखने वालों में से नहीं थी।

एक बार जब मीरा अपने अस्तबल में घूम रही थी तो उसने देखा की उसके पिता किसी चमड़े का सामान बनाने वाले व्यक्ति को अपने साथ लेकर आए। मीरा ने सुना की उसके पिता उस व्यक्ति से उनके एक घोड़े को मारकर उसका चमड़ा निकालने की बात बोल रहे थे। मीरा ने सब सुन लिया। उसने अपने पिता से पूछा कि वो ऐसा क्यूँ कर रहे हैं? तो उन्होंने उसे बताया की चोट लगने के कारण उस घोड़े का एक पैर ख़राब हो गया है जिसके कारण अब वो दोढ़ नहीं सकता,अब वो उनके किसी काम का नहीं है। ये सब सुनकर मीरा ने अपने पिता से बस एक ही सवाल बड़ी विनम्रतापूर्वक पूछा कि “क्या अगर मुझे भी चोट लगने से मेरा पैर ख़राब हो जाए तो क्या आप मेरे साथ भी वही करेंगे जो इस घोड़े के साथ कर रहे हैं?” छे: साल की मीरा के मुँह से ऐसे बोल सुनकर उसके पिता चकित रह गए। वो समझ गये कि मीरा नहीं चाहती कि उस घोड़े के साथ वो हो जो उसके पिता करना चाहते थे। उन्होंने मीरा की ख़ुशी के लिए घोड़े को अपने पास ही रखने का इरादा किया। वो मन ही मन ख़ुश थे कि उनकी बेटी का ह्रदय कितना नेक है।

इस तरह मीरा के जन्म के बाद से शुरू हुई ख़ुशियाँ चलती रही। परंतु किसी के जीवन में हमेशा ख़ुशियाँ नहीं रहती। मीरा के साथ भी यही हुआ। जब मीरा आठ वर्ष की थी उस वक़्त उसकी माँ को एक ख़तरनाक बीमारी ने जकड़ लिया। मीरा के पिता ने उसकी माँ को ठीक करने के लिए धन पानी की तरह बहा दिया। दूसरे राज्यों से उच्च स्तरीय चिकित्सक बुलाए गए। किंतु इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था। अंततय मीरा की माँ का देहांत हो गया। घर में दुःख की लहर दोड़ पड़ी। कई दिन तक मीरा दरवाज़े पर खड़ी अपनी माँ के आने का इंतज़ार करती रही।

मीरा के पिता भी गहरा सदमे में थे। एक ओर उन्हें अपनी पत्नी को खोने का दुःख था तो दूसरी ओर उनसे मीरा की हालत देखी नहीं जा रही थी। उनके कुछ मित्रों ने उन्हें एक सुझाव दिया कि उन्हें दूसर विवाह कर लेना चाहिए। उन्होंने उनकी बात नहीं मानी और घर वापिस आ गए। मीरा अब भी दरवाज़े पर ही खड़ी अपनी माँ की राह देख रही थी। ये देख कर उसके पिता को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने कई दिन दूसरे विवाह के विषय में सोचा। उन्हें डर था कि जब मीरा को इस बात का पता चलेगा तो उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी?

अंत में उन्होंने अपने मित्रों की बात मान ली और दूसरा विवाह कर लिया। मीरा को उसके पिता की ये बात अच्छी नहीं लगी और वो अपने पिता से बहुत नाराज़ थी। उसके पिता को इस बात का पता चल गया था। उन्होंने मीरा को अपने पास बुलाया और स्नेहपूर्वक समझाने लगे। मीरा को अपने पिता पर विश्वास था इसलिए उसने अपने पिता की बात मान ली।

मीरा की नयी माँ उसका बहुत ख़याल रखती थी। वो मीरा को अपने हाथों से खाना खिलाती थी। मीरा भी अब ख़ुश रहने लगी थी किंतु मन में कहीं ना कहीं अपनी माँ को खोने का दुःख उसे पीड़ा देता था। मीरा को ख़ुश देख कर उसके पिता भी ख़ुश थे।

उनकी इन ख़ुशियों में एक ख़ुशी और शामिल होने वाली थी। मीरा की माँ गर्भवती थी। कुछ महीनों बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। पूरे परिवार में ख़ुशियाँ छा गयी। एक लम्बी दुःख की घड़ी के बाद ख़ुशियों का माहोल छा गया। सारे गाँव के लोगों को दावत दी गई। मीरा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

किंतु मीरा के नसीब में ख़ुशियाँ ज़्यादा देर नहीं टिकने वाली थी। मीरा की माँ का असली रूप अब उसके सामने आने लगा था। उसकी माँ के व्यवहार में धीरे धीरे बदलाव आने लगा था। जो माँ उसे अपने हाथों से खाना खिलाती थी अब वो उसे खाना खाने के लिए पूछती तक नहीं थी। मीरा के पिता सब कुछ देखकर चुप रहते थे। वो मीरा से बहुत प्रेम करते थे और उसे दुखी नहीं देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने मीरा को उसकी नानी के घर भेज दिया ताकि उसका मन बहल जाएँ।

इसी बीच मीरा की सोतैली माँ ने सही समय देख कर मीरा के विषय में मीरा के पिता को ऐसी बात कही की उन्हें अपने आप पर ग़ुस्सा आने लगा की उन्होंने दूसरी शादी क्यूँ की? उनकी पत्नी एक दिन अपने पुत्र को दूध पपिला रही थी उसने मीरा के पिता से कहा कि

To Be Continued…..

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