दिल्ली नगर निगम में दस साल की सत्ता चलाने के बाद भाजपा नये कलेवर, नये चेहरों तथा नये नारों के साथ चुनावी मैदान में उतरी और इकतरफा जीत हासिल कर अपने सभी विरोधियों का मुंह बंद कर दिया। अब हर तरफ नये-नवेले पार्षदों के सम्मान समारोह और क्षेत्रीय दौरों का दौर चल रहा है। नये-नये चुनकर आये पार्षद दिल्ली की तस्वीर और तकदीर बदलकर रख देने की बात कर रहे हैं। ये दिलचस्प है, कि हर चुनावी नतीजों के बाद नये चुनकर आये लोगों में इतना उत्साह होता है, कि लगने लगता है कि इस बार तो कोई चमत्कार होकर ही रहेगा।
हालांकि थोड़े वक्त के बाद नये चुनकर आये प्रतिनिधियों का उत्साह कम होने लगता है और कामकाज को लेकर लोगों की शिकायतें बढ़ने लगती हैं। लिहाजा यह देखना दिलचस्प होगा कि दस साल की एंटीइन्कमबेंसी के बाद नये लोगों के बूते विजय का झंडा गाड़ने वाली भाजपा एमसीडी के कामकाज में सुधार का ऐसा कौन सा रोड मैप बनायएगी, जिसे वह पिछले कार्यकालों में नहीं कर सकी थी?
भाजपा के पूर्व निगम अध्यक्ष रह चुके अनिल गोयल कहते हैं कि, किसी भी नवनिर्वाचित प्रतिनिधि के लिए यह शुरूआती उत्साह का माहौल रहता ही है, इसमें कोई बुराई भी नहीं है। वह कहते हैं, कि जरूरी यह है, कि ये उत्साह लगातार बरकरार रहे। इस बार के सदन में भाजपा के तमाम नये प्रतिनिधि चुनकर आये हैं, ऐसे में ज़रूरी है, कि वे पुराने लोगों के अनुभव का लाभ उठाएं। वह कहते हैं कि यह डर लगातार बना रहेगा कि कहीं प्रशासनिक अधिकारी इन निगम पार्षदों की अनुभवहीनता का अनुचित लाभ न उठाने लगें। गोयल कहते हैं, कि जितना नये पार्षद पुराने अनुभवी लोगों से तालमेल बिठाकर चलेंगे, नतीजे बेहतर रहने की गुंजाईश उतनी ही ज़्यादा रहेगी।
वहीं निगम में स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन रह चुके जगदीश ममगार्इं मानते हैं कि, शुरूआती उत्साह और सम्मान समारोह जैसे आयोजनों में कुछ भी बुराई नहीं है। सफाई को लेकर शुरूआती पार्षदों के दौरे पर ममगईं कहते हैं कि, इस तरह के दौरे सेनिटेशन विभाग के कर्मचारी फिक्स करते हैं, वो विजेता पार्षद को ऐसे दौरों के लिए तैयार कर ही लेते हैं।
जगदीश ममगाईं कहते हैं कि, निगम का कामकाज कितना सुधरेगा इसके बारे में हाल-फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल है। अभी देखना होगा कि जो नये लोग चुनकर आए हैं, उन्हें काम करने का क्या माहौल मिलेगा? ब्यूरोक्रेसी किस हद तक सहयोग करेगी और खुद नवनिर्वाचित पार्षदों की विकास कार्यों को लेकर अप्रोच क्या होगी?
वह कहते हैं, कि इन दौरों से कुछ ज़्यादा बदलने वाला नहीं है। वक्त के साथ जब कुछ कामों के लिए समय से फंड नहीं रिलीज़ हो पायेगा, या समय पर टेंडर प्रक्रिया नहीं पूरी होगी और लोग जमीन पर काम देखना शुरू करेंगे, तब पता चलेगा कि पार्षद किस अप्रोच के साथ इन चीजों का सामना करेंगे और किस तरह से विकास की गति को बरकरार रखेंगे।
दस साल की एंटी इन्कमबेसी को धता बताते हुए जिस तरह से भाजपा ने निगम में बड़ी जीत दर्ज की है, उससे एक बड़ी ज़िम्मेदारी अब इन नवनिर्वाचित पार्षदों के ऊपर है। प्रधानमंत्री मोदी के सपनों की दिल्ली बनाने का वादा करके सत्ता में आए इन निगम पार्षदों के समय में निगम का कामकाज कितना सुधरेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि अभी तक निगम की कार्यशैली को लेकर जनता के मन में कोई बहुत अच्छी तस्वीर नहीं है।
निगम के बीते दस साल की बात करें तो भाजपा के कार्यकाल के नाम रानी झांसी फ्लाईओवर, शाहदरा लेक, तिमारपुर का बालकराम हॉस्पीटल, ताहिरपुर का इम्यूज़मेंट पार्क, जंगपुरा की मल्टीलेवल पार्किंग और कालकाजी का पूर्णिमा सेठी हॉस्पीटल सरीखे अधूरे प्रोजक्टों की असफलता भी दर्ज है। ऐसे में कार्यशैली में अगर कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा तो सिर्फ नारे लगाने या दिखावे के अभियान से कुछ ज़्यादा बदलने वाला नहीं है।