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गाय माता

गाय मेरा वास्ता बहुत क़रीबी तो नहीं रहा फिर भी संपर्क में रहा हूं उनके। जब कभी गर्मी की छुट्टियों में अपने नानीघर जाता था तो वहां पर बहुत सारी गाय होती थीं। मेरे नानाजी स्वयं 3-4 गाय पालते थे। बहुत बड़ी जर्सी गाय नहीं वरन छोटी-सी देशी गाय जो ज़्यादा दूध भी न देती थी। लगभग 3-4 लीटर दूध देती रही होगी। फ़िर भी नानाजी को बहुत लगाव था गायों से। ससमय उनका खान-पान, कुट्टी-घट्ठा-खल्ली और गोबर का उठाव, उनकी साफ़-सफ़ाई का बड़ा ख्याल रखते थे।

दिन में कोई ग्वाला था जिसका नाम याद नहीं आ रहा अभी, वो गांव की सभी गायों को जंगल में चरने ले जाता था और शाम को वापस सभी गायों को वापस ले आता। बछड़े और बाछियां चरने न जाती थीं। एक तो उनके खोने का डर रहता और दूसरा वो यदा-कदा दूध भी पी जाते। दूध तो वैसे कभी-कभी अगर रात में उनको मौका लगता तो भी पी जाते थे और सुबह हमें दूध नहीं मिलता। घर के अन्य सदस्य इस बात का गुस्सा भी करते कि आज हमें दूध नहीं मिलेगा। लेकिन अपने नानाजी को कभी गुस्सा होते नहीं देखा इस बात के लिए। वो कहते कि गाय के दूध पर पहला अधिकार उसके बच्चों का है।

एक बात बुरी भी लगती थी कि शाम को जब हम क्रिकेट खेल रहे होते थे तो उसी वक़्त गायें जंगल से चरने के बाद लौटती थीं। हमारा मैच अक्सर अंतिम मोड़ पर होता था। और ऐसे में हमारे कुछ अहम खिलाड़ियों जैसे कि घनश्याम मामा को खेल छोड़ कर उन्हें बांधने और पानी देने जाना होता था। अगर थोड़ी-सी कोताही बरतते तो हम सभी को कड़ी डांट सुननी पड़ती और चेतावनी भी मिलती कि अगर गौ-सेवा में कोई ढील हुई तो क्रिकेट बंद करवा दिया जाएगा। एक बुरी याद ये भी है एक शाम के वक़्त गाय के नाद के पास फील्डिंग कर रहा था तो कैच लपकने की धुन में गायों से टकरा गया था। उसके बाद एक बैल में मुझे ढुंसा मार दिया था, काफी चोट आई।

गाय को लेकर जो सबसे मार्मिक घटना याद है वो गाय और मेरे छोटे मामाजी के आपसी लगाव को लेकर है। मेरे 8 मामा में से सबसे छोटे चन्दन मामा घर पर ही रहते थे। बाकी सभी तो पढ़ाई और काम के वजह से पटना या बाहर ही रहते थे। एक बार की बात है कोई गाय या बछिया, मुझे ठीक से याद नहीं, किसी बीमारी की वजह से मर गयी। लेकिन मुझे जो बात अच्छे से याद है वो ये है इस घटना से मेरे छोटे मामाजी बुरी तरह दुखी थे। उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया था। 2-3 दिन खाना नहीं खाया उन्होंने। उनको लगता था कि अगर सही से ईलाज़ हुआ होता तो शायद वो बच जाती। ऐसा सोचना हो सकता है उनका लड़कपन हो या उनका प्यार हो उसके लिए।

उस वक़्त मैं 4th या 5th स्टैण्डर्ड में था। मामाजी जी शायद मैट्रिक पास कर चुके होंगे। उस वक़्त उनका भावनात्मक लगाव मैं समझ नहीं पा रहा था। हां, दुःख इस बात का था कि वो दुखी थे। आगे भी कभी गाय या अन्य किसी जानवर के साथ उनका वैसा कोई लगाव बना नहीं। लेकिन उस घटना को याद कर के ये ज़रूर लगता है कि इंसान का लगाव किसी जानवर के साथ भी हो सकता है। और गाय तो हमारे समाज में माता की तरह पूजनीय है। आज गाय पर हो रही राजनीति और विरोध के घिनौने तरीकों को देख कर सोचता हूं कि क्या सच में सभी को मेरे नानाजी या मामाजी जैसी श्रद्धा और लगाव है गाय से या फिर यूं ही राजनीति की जा रही है। जो भी हो लेकिन इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा तबका भले ही दिखावे के लिए सही लेकिन गाय से श्रद्धा रखता है। ऐसे में किसी राजनीतिक लाभ के लिए गौ-भक्षण करना ऐसे करोड़ों लोगों की श्रद्धा पर चोट है।

मैं न तो गाय के लिए इंसान को मारने के पक्ष में हूँ और न ही वोट के लिए गाय को मार कर खाने के पक्ष में हूं, दोनों से घृणा होती है। अगर अपनी न सही तो देश के करोड़ों लोगों की श्रद्धा का तो सम्मान करना चाहिए।

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