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नितीश का इस्तीफा छलावा भी हो सकता है

उपमुख्यमंत्री पर लगे आरोपों के सिलसिले में कुछ कर न पाने के कारण नितीश कुमार ने खुद को महागठबंधन से अलग करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया|अब इससे आगे बिहार का राजनीतिक भविष्य क्या होगा और नितीश कुमार की इस्तीफे के पीछे वास्तविक मंशा क्या है इसे समझ लेना बेहद आवश्यक है |
इसमें कोई दो राय नहीं कि नितीश कुमार मंझे हुए राजनेता हैं और उन्होंने लालू यादव और उनके परिवार पर चल रही आरोपों की बौछारों का बखूबी लाभ उठाने की ठान ली है |हालाँकि विधान सभा में लालू की पार्टी के पास अब भी ज्यादा सीटें हैं लेकिन वो किसी भी दाल के साथ वैचारिक मतभेदों को ध्यान में रखते हुए सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है |दूसरी तरफ नितीश कुमार के अगर हाल फ़िलहाल का रुख देखा जाए तो वह खुद को बीजेपी के ज्यादा करीब पाते हैं |लेकिन चूँकि नितीश कुमार ने बहुत सोच विचार के बाद यह कदम उठाया है इसलिए वे अपने द्वारा तैयार की गयी बिसात पर और किसी को खेलने और जीतने का मौका नहीं देंगे |मोदी लहर कुछ देर के लिए शांत है |और न ही उन्होंने हाल फिलहाल कोई ऐसा काम किया है जिससे लोग उनके दीवाने हो रखे हों और अभी कुछ 20 महीने पहले भी बीजेपी ने बिहार में मुँह की भी खाई थी| अब ऐसी स्तिथि में नितीश कुमार वही करेंगे वो सालों पहले 1970 में इंदिरा गाँधी ने भी किया था,समय से पहले सरकार गिराना | प्रिवी पर्स और बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मुद्दा वो लोगों के बीच गयी थी और यहाँ भी स्थिति कुछ ज्यादा भिन्न नहीं है|नितीश के पास भी भ्रष्टाचार और परिवारवाद का मुद्दा है जिसे वो लोगो के सामने बार बार दोहराएंगे |

कोई भी मुख्यमंत्री किसी विपक्षी दल की निगरानी में सरकार चलाना कतई पसंद नहीं कर सकता |यही नितीश कुमार के साथ भी हुआ है |आरजेडी उनकी नाक के नीचे तथाकथित भ्रष्टाचार करती रही लेकिन वे कुछ न कर सके क्योंकि वैसे भी उनका संख्या बल आरजेडी से काम था और वे सिर्फ अनुभव के कारण मुख्यमंत्री नियुक्त किये गए थे और इसी बहाने लालू की नयी पीढ़ी को भी सत्ता का स्वाद लेने का मौका मिल गया|अगर लालू मुख्यमंत्री बनने की सोचते भी तो शायद नितीश उसी वक़्त समर्थन वापस खींच लेते |लेकिन अब जब नितीश इस बात तो ज़ोर देकर कहते हैं कि ,”जब तक हो सका हमने चलाया” केवल एक ही बात की तरफ इशारा करता है कि वे ऐसे ही किसी समय का इंतज़ार कर रहे थे जब आरजेडी पर कोई आरोप लगे और लोकप्रिय जनभावनाएं उनके पाले में आ जाएँ |तेजस्वी की राजनीतिक अनुभवहीनता ने उन्हें यह मौका मात्र 20 महीने में ही दे दिया |
दरअसल वह भ्रष्ट विपक्ष के खिलाफ नितीश प्रशासन का मूल्याङ्कन करवाना चाह रहे हैं |और अपने आप को बिहार के लिए एकमात्र विकल्प के तौर पर पेश करना चाह रहे हैं |बीजेपी की लहर के खिलाफ बने इस महागठबंधन से वह बिहार की राजनीती को जितना सामान्य  कर सकते थे उन्होंने किया और जब एक बार बिहार से मोदी फैक्टर लगभग ख़त्म हो चूका तो उन्होंने अपने साथ सत्ता में शामिल लोगों को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पूरी तरह घेर लिया है | इसे उन्होंने अब भ्रष्ट और ईमानदार की बहस बना दिया है | और यही विचार वह लोगो के बीच लेकर जाने वाले हैं |
नितीश या किसी भी राजनेता को राजनीती से वियोग अच्छा नहीं लगता ,इसका उदहारण वे मांझी को मुख्यमंत्री बनाकर दे चुके हैं जब वो रिमोट कन्ट्रोल सरकार चलना चाहते थे लेकिन मांझी की कम राजनितिक समझ और मुखर स्वभाव ने सब चौपट कर दिया |उस वक़्त भी उनकी मंशा खुद को संत और राजनितिक मोह से निर्लिप्त व्यक्ति दिखने का प्रयत्न किया था|हालांकि वे नाकाम रहे लेकिन लोग उस अध्याय को भुला चुके हैं|उन्हें लालू का भ्रष्टाचार नज़र आता है,नितीश का सत्ता लोभ नहीं | अगर कोई अप्रत्याशित गठबंधन नहीं किया गया और लालू यूँही झूठे आरोपों का रोना रोते रहे तो नितीश का यह कदम मोदी सरकार की निष्क्रियता और लालू के खिलाफ बने माहौल को भुनाने की सफल कोशिश साबित हो सकता है |

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