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भीड़ कि सच्चाई

सालों पहले भारत वर्ष में समय-समय पर शहरों-कस्बो में गाँव-मोहल्लो में मेलो की धूम हुआ करती थी । जहां लोगों का हुजूम जुटता था ।उस वक्त ये भीड़ वहां का मज़ा लेने या यूं कह लीजिए कि खुशियाँ बटोरने को जुटती थी । मगर आज जमाना बदल चुका है आज हम सुनते है कि भीड़ तो जुटी मगर भीड़ ने या तो किसी की बेरहमी से पिटाई की या आगजनी या किसी को मौत को घाट उतार दिया ।

आज चाहे वो टेलीविज़न डिबेट हो या अख़बार की स्टोरी हर जगह ऐसी घटनाएँ सुनने को मिल ही जाती हैं । ऐसे में समझना होगा की ऐसी घटनाओं के अचानक वृधि के पीछे आखिर वजह क्या है ?  जिस प्रकार समाज में किसी  व्यक्ति-विशेष की छवि निर्माण के लिए जो माहौल बनाया जाता है ठीक उसी प्रकार इस तरह की घटनाओं के पीछे कुछ चुनिंदा नेताओं के बोल के चलते गलत माहौल तैयार होता है और परिणाम स्वरुप निर्दोष लोग अपनी जान गवा बैठते हैं ।

मौजूदा हालात मे भीड़ द्वारा उन्माद फैलाने के  मामलों में सबसे ज्यादा बीफ के शक में हमले व आगजनी के मामले ज्यादा हैं जिसमे धर्मरक्षक बने कुछ लोग मानवता के हत्यारे बनने को तैयार रहते है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण जुनैद मर्डर व रामगढ की घटना है ।

हमें ये बात समझनी पड़ेगी कि हम सब किसी न किसी आस्था व धर्म से जुड़े हुए है और इनका सीधा सम्बन्ध हमारी भावनाओं से है जिन्हें  कुछ चुनिन्दा नेता हथियार बना कर अपनी राजनितिक रोटियाँ सेकने का काम करते हैं । तो यहा सवाल ये उठता है की क्या हमारे भावनाएं इतने कमजोर है की कोई भी राजनीतिक दल या नेता इसके साथ खिलवाड़ कर लेता है ?

अगर वही बात करे गौ की तो, क्या वाकई हम गौ को अपनी माँ का दर्जा देते हैं ? अगर देते है तो क्यों नही हमे हर घर में एक गौ दिखाई देती है ? क्यों गौशालाओ में गौ माता चारे व नियमित देख-रेख के आभाव में दम तोड़ रही हैं ? क्यों रोड पर  घूम रही गायों पर कोई नज़र तक नही फेरता ? ऐसे न जाने कितने सवाल हैं ।

सच्चाई यही है कि आज हम एक आम नागरिक की भूमिका में कम निर्णायक भूमिका में जल्दी आ जाते और बिना तथ्यों के जाँच-पड़ताल के धार्मिक भावनाओं में बह कर इस कदर आहत होते है कि बीच सड़क पर खुलेआम कानून को हाथ में लेने को तैयार रहते हैं ।

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