कभी-कभी हम क्या करते है,मालूम नहीं फिर भी करते रहते है.कभी किसी की याद आती है तो भूलने की कोशिश करते है ,कभी उसी को भुलाना नहीं चाहते..हमें मालूम नहीं हम क्या कर रहे होते है ,फिर भी करते रहते है.
कभी किसी एक बात से हम बहुत कुछ समझ जाते है,कभी बहुत सारी बाते होते हुए भी हम समझना नहीं चाहते.पता नहीं क्यों??
ये क्या बात हुई यार,बिन मौसम बरसात,कोई भी काम नहीं कर सकते ,रूम में बैठ पढाई के अलावा,और पढाई…अभी तो एग्जाम नजदीक भी नहीं है.
जिसकी गर्लफ्रेंड उसकी खैर अलग बात है..,इतना कहते ही हम दोनों हंस पड़े!!
बोतल देना कैलाश,मैंने बोतल की और इशारा करते हुए बोला…
इस मौसम में भी इतना प्यास ..क्या बात है..,मेरी ओर बोतल फेंकते हुए मुस्कुराते हुए कैलाश बोला.
मैंने अपना तकिया अपने कमर के निचे से निकाल कर सर के नीचे रखा और सोने की कोशिश करने लगा.
झम-झम बरसती बारिशें ,कभी टिप -टिप तो कभी बिलकुल शांत ,जैसे किसी ने जोर से डांटा हो या किसी महबूबा की याद में हो..उसके आंसू बस निकल रहे हैं,या उस आसमां की बैचनी किसी पागल आशिक़ की तरह उफान हो गया है ,जो अपनी जान को दिलो-जान से छोड़ना ही नहीं चाहता है.
बारिश बिन मौसम हो या मौसम में एक चीज जो कभी नहीं छूटती पकोड़े..
और हम बेचलर्स के लिए नींद..
और हॉस्टल में पकोड़े मिलने से रहा तो ….
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खट-खट…हे,कैलाश यार दरवाजा खोल दे ,मैं अपने मुंह को कम्बल से अच्छे से ढकते हुए बोला..
खट-खट….क्या यार गेट भी नहीं खोल सकते …,मैं गुस्से में अँगड़ाई लेते हुए बेड पर लेटे-लेटे ही कम्बल हटाते हुए बोला.
धीरे से आँखों को अँगुलियों से स्पर्श करते हुए ,आँखे खोला..ट्यूब लाइट की त्रीव रौशनी मेरी पलकों को फिर से बंद करने को मजबूर कर रही थी.और मजबूर कर रही थी वह आवाज भी जो न जाने कबसे खट-खट ..के रूप में दस्तक दे रही थी.
कैलाश भी सो रहा था..”कैसे”.., मन ही मन बड़बड़ाया.
सामान्यतः ,ऐसा देखने को नहीं मिलता ,रात के अलावा की “वह सो रहा हो”
वह संगीत का दीवाना नहीं है फिर भी वह कभी भी अपने कानो को ईरफ़ोन से जुदा नहीं होने देता,वह बात करने के साथ ही साथ पढाई भी करते रहता है.
गर्लफ्रेंड ,बहन,या भाई नहीं वह अपने बहनो का अकेला भाई है. या कोई और ,ना कभी पूछा ,न कभी उसने बताया.
जब आपके साथ कोई रह रहा हो तो आपको पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ती ,क्योंकि बात ख़त्म करने के बाद उसके प्रतिक्रिया से पता चल जाता है की वह किस्से बात कर रहा था ,वह उसके बारे में चर्चा कभी ना कभी जरूर करता है .
परंतु ,कैलाश ना कभी किसी के बारे में बोलता है ,और वह क्या बात करता है वह मैं समझता नहीं…वह असमिया में बात करता है .
और मुझे “मोई तोमक भाल पाओ” के शिवा कुछ आता नहीं.सभी नॉन-असामीज की तरह ..
आप कंही भी जाओ आप वंहा के क्षेत्रीय भाषा में एक बात जरूर सीखना चाहते है..”मैं तुमसे प्यार करता हूँ” का अनुवाद उस भाषा में.बातें और भी सीखते है लेकिन जिज्ञाषा सबसे पहले यही सिखने की होती है.पता नहीं क्यों??
तभी अवाज़ आनी बंद हो गयी.अरे कल ही तो पढ़ा था महविश का आर्टिकल. शायद ,वो पागल हवा गर्ल्स हॉस्टल से आकर अब मुझे जगा रही थी .केवल मुझे क्योंकि कैलाश अभी भी सो रहा था.
मझे तब भूख नहीं लगी थी.इसिलए मैं पुनः कम्बल को अपने बदन से स्पर्श कराते हुए उससे लिपट गया.
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मनीष …मनीष…खाना नहीं खाना क्या..अरे 9 बज गए.,कैलाश बिना स्पर्श किये मुझे जागते हुए बोला.अंगराई ले ही रहा था की तभी याद आया आज तो रविबार है ..ग्रैंड डिश ..जल्दी से बोतल लेकर मेस की ओर भागा.
वंहा एक लंबी लाइन लगी हुई थी,सबके हाथ में रंग बिरंगी बोतलें ,जैसे कोई सरकारी दफ्तर हो,और लोग अपनी-अपनी फाइल्स लिए कतार में खड़े हो .लेकिन प्रत्येक रविवार को ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है.
सर झुकाये आगे बढ़ ही रहा था की तभी अबिनाश अपने बारी की प्रतीक्षा करते हुए दिखा,मैंने उसका प्रतीक्षा थोड़ा और लंबा करते हुए ,मुस्कुरायाऔर उसके आगे लग गया.
ये देख मुझे लेग पीस मिला है,अपने थाली से पीस उठा के दिखाते हुए गोबिंदबोला..और उसके बाद सब अपनी-अपनी पीस दिखाने लगे ..तुषार चुप-चाप खा रहा था,कभी-कभी मोबाइल भी देख रहा था.बीच-बीच में उसके चेहरे पर आयी मुस्कराहट बयां कर रही थी की शायद वह किसी से चैट कर रहा था.हम सब खाना ख़त्म करके अपने-अपने रूम में चलें गए.
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कमरे में कैलाश रोज की तरह कानो में ईरफ़ोन लगा के बातें करते हुए काम्प्लेक्स एनालिसिस का प्रश्न हल कर रहा था.
मैं दरवाज़ा बंद करते हुए अपने बिस्तर पर बैठा ही था की फिर …खट-खट …
कैलाश के कान इरफान से लिपटे होने के कारन ये सिर्फ मुझे ही सुनाई दी और मैं आगे बढ़ के दरवाजा खोला.
भाई E -210 में आ जाओ मीटिंग है ,अरुण हल्का मुस्कान देते हुए बोला ,मैं भी मुस्कुराया और सहमति जाहिर की.
हॉस्टल और मीटिंग का गहरा रिश्ता है…ये बाते यहाँ आकर कोई भी समझ सकता है.कभी यह,तो कभी वो मीटिंग ..बस फूल पैंट पहनो और पहूच जाओ.
आज किसके सम्बन्ध में मीटिंग है,मैंने भों ऊँचा करते हुए राहुल से पुछा..
शायद ,जिमखाना इलेक्शन के सम्बंध में .है .राहुल मुझे बैठने को सीट देते हुए कहा.
“अच्छा बताओ ,कौन -कौन मुझे नहीं जानते हो ..(बिलकुल सन्नाटा).ऐ तुम नीला शर्ट,चश्मा पहने हुए तुम जानते हो “-प्रशांत की ओर इशारा करते हुए आये हुए उम्मीदवार ने पूछा.
अब आज से यही होने होने वाला है जब तक इलेक्शन ख़त्म ना हो जाये,लोग आएंगे,रोज वही बातें होंगी,कोई आकर राजनीती भी करेगा,कोई जातिवाद,कोई क्षेत्रियवाद ,या कोई कुछ और ,सब यही बोलेंगे तुम सबको परखो सबकी सुनो फिर वोट दो -देखना तुम्हारे मन में अन्त में मेरा ही नाम आएगा.वही लंबी-लंबी स्पीच सुनने को मिलेंगी,और सब स्पीच देने से पहले यही बोलेंगे ,”मैं तुम्हारा अधिक समय नहीं लूंगा”.पता नहीं क्यों? इन लोगो को पहले से हमारा दुःख -दर्द क्यों नहीं दिखता..पता नहीं क्यों??
भाषण समाप्ति के उपरांत मैं अपने कमरा में आ गया.रात के 1:06 बज रहे थे,फिर खट-खट…
इतनी रात को कौन है??-..कैलाश स्वागत में एक अपशब्द के साथ दरवाजा खोला…
अब खट-खट..की आदत सी हो गयी है..फिलहाल 8 तारीख तक न जाने कितने हवा के ,तूफान के झोंखे आएंगे,उड़ा ले जाने की भरपूर कोशिश करेंगे..देखते है..खोलते है…सुनते तो है नहीं हम क्योंकि मन में तो पहले ही सोच चुके होते है करना क्या है..
अब तो इंतज़ार ही रहेगा तेरा .कभी तो मैं भी बदहावाशो की तरह भागूंगा,कभी तो दस्तक दोगे मेरे भी दरवाजे पर….तुझसे ही कह रहा हूँ..”ए पागल हवा“..
तभी एक बार फिर खट-खट…खट-खट…