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हुआ कुछ नहीं है बस मुर्दों के शहर में एक और कत्ल हुआ है

दिल्ली में यमुनापार के मानसरोवर पार्क इलाके में आदिल उर्फ मुन्ने खान ने रिया पर ताबड़तोड़ चाकू से वार किर दिया। एकतरफा प्यार में सनकी आशिक ने रिया गौतम की हत्या कर दी। सड़क पर पब्लिक देखती रही और आरोपी दिन दहाड़े एक लड़की को हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा कर गया। अब बात आती है कि इतना सब होने के बाद भी पुलिस कहां थी? तो पुलिस वाले हमेशा की तरह अपनी ड्यूटी कर थे। लेकिन कोई एक यह सवाल क्यों उठाता कि वहां खड़ी पब्लिक क्या कर रही थी? पुलिस तो हर एक घटना के बाद महिला सुरक्षा का आश्वासन देती है। महिलाओं की सुरक्षा का आश्वासन 2012 के गैंगरेप केस के बाद भी दिया गया था।

2012 गैंगरेप के बाद धरने प्रदर्शन और आरोपियों की गिरफ्तारी के साथ दिल्ली की ज़िंदगी ने सही से साँस भी नहीं ली थी कि मुंबई में प्रीति राठी एसिड अटैक हो गया था लेकिन उसका दर्द भी राजधानी दिल्ली ने झेला था। प्रीति का घर दिल्ली में था वो मुम्बई भारतीय नौसेना में नर्स का कोर्स करने गयी थी उसका पीछा करते हुए आरोपी अंकुर पंवार ने मुंबई रेलवे स्टेशन पर उसके कदम रखते ही प्रीति के बदन पर तेजाब उड़ेल दिया था। प्रीति की चींखो से सारा देश दहल गया था। बाद में पता चला आरोपी अंकुर प्रीति से एकतरफा प्रेम करता था। जिस कारण उसने इस वीभत्स कांड को अंजाम दिया था।

कहने के लिए तो हम कह देते हैं कि दिल्ली दिलवालों का शहर है। पर सच लिखे तो ये मुर्दों की बस्ती है।

शायद अभी तक लोग पिछले साल की बुराड़ी की वो घटना नहीं भूलें होंगे जिसमें सुरेंद्र ने करुणा पर 30 के करीब वार किये थे। यानी करुणा की आखिरी सांस तक वो कैंची चलाता रहा। यही नहीं कत्ल के बाद उसने करुणा का वीडियो भी बनाया और डांस भी किया कमाल देखिये यह घटना  सुबह करीब 9 बजे घटी थी  गाड़ी सवार और पैदल यात्री सब देखते रहे आरोपी लड़की को घसीटते हुए ले जा रहा है और लेकिन किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की।

उपरोक्त सभी मामलों में पता चला कि आरोपी को लगता था कि लड़की किसी और से प्यार करती है और इसी बात का बदला लेने के लिए उसने कई बार लड़की पर चाकू, कैंची या तेजाब से वार किया।

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल 31 मई तक महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की 1412, अपहरण की 1554 व दुष्कर्म की 836 और झपटमारी की 3717 वारदात हो चुकी हैं।

मैंने पहले भी लिखा था दरअसल 90 के दशक में जब ग्रीटिंग कार्ड पर इस तरह की शायरी चल रही कि “चाँद आहें भरेगा फूल दिल थाम लेंगे, हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगे” उसी दौरान जीत फिल्म का एक डायलाग बड़ा प्रसिद्ध हुआ था जब नायक ने दूर जाती नायिका से कहा- “काजल तुम सिर्फ मेरी हो” मैं उस समय बहुत छोटा था इसके मायने नहीं समझ पाया। हाँ कई साल बाद मैंने यह डायलाग पता नहीं कितने लोगों की मोबाइल रिंगटोन, ऑटो, डीजे, आदि में सुना, तो हमेशा यही सोचता रहा कि आखिर काजल दुसरे की क्यों नहीं हो सकती?

काजल यानि कोई भी एक लड़की जो कोई कुर्सी, मेज, भूमि का टुकड़ा या खरीदी गयी प्रोपर्टी नहीं है। उस लड़की के अपने सपने, अपनी सोच, मर्यादाएं सीमाएं समेत सबसे बड़ी बात उसकी अपनी ज़िंदगी होती है। तो क्या उनपर कोई भी कब्ज़ा जमा लेगा? उन्मुक्तता का अधिकार सबको है। मुझे भी और आपको भी सबकी अपनी-अपनी पसंद और चाहते भी होती हैं, ज़रूरी नहीं जो हमें पसंद हो वो सब दूसरों को भी पसंद हो? क्यों यहाँ लोग दूसरे की उन्मुक्तता पर चाकू से वार पर वार कर रहे हैं?

कारण यहां कि सड़कों पर इंसान नहीं ज़िंदा, सांस लेते मुर्दे चलते हैं। भला मुर्दों को किसकी चिंता होगी? यहाँ दिन दहाड़े हमला होता है सांसों पर, सपनों पर। खैर रिया कोई पहली लड़की नहीं है जो इस तरह के हादसे का शिकार हुई है। अखबार के किसी न किसी पेज पर हर दूसरे तीसरे दिन ऐसी एक घटना ज़रुर मिल जाती है। जो अधिकतर कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर साधा निशाना, लालू ने मोदी को ललकारा आदि राजनितिक उथल-पथल की खबरें पढ़ते समय सुबह के चाय के प्याले के निचे दब जाती  है।

नतीजा एक बार फिर हमारे सामने है। फिर लोग अपनी लड़कियों को समझाने लगेंगे। “बेटी ज़माना खराब है घर से बाहर निकलने से पहले उसे डराने लगेंगे।” फिर सुरक्षा और आश्वासन का दौर चलेगा, चमड़े की जीभ हिला दी, हमारा काम खत्म हो गया। अब जिसे अपनी सुरक्षा की चिंता है वो समझे। हमें मोबाइल पर कैंडी क्रश खेलने दें।

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