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तसल्ली से किसी को किताब पढ़ते देखना, इश्क में होने जैसा है

मेट्रो में किसी को बड़ी तसल्ली से किताब पढ़ते देखना, भीड़ में किताब पढ़ना मैनेज कर लेना और कुछ लोग तो मार्कर भी इस्तेमाल कर लेते हैं। कई बार जिनको जगह नहीं मिलती है वो बैठने की जगह एक कोना पकड़कर किताब पढ़ना जारी रखते हैं। ये सब मैं अमूमन अपने रोज़ के सफ़र में देखती हूं। इसका ज़िक्र अभी कर रही हूं क्योंकि एक फ़ोटो देख रही हूं जो काफी़ चर्चा में है। इस फोटो में मिताली राज अपनी पारी के इंतज़ार में पैडअप हैं और किताब पढ़ रही हैं।

किताब मेरे पास भी है, लेकिन वो मेरे बैग में होती है, क्योंकि इतना स्टेमिना नहीं है और ना ही इतना एकाग्र हो पाती हूं। दफ़्तर जाते समय तो आज की ड्यूटी और अपडेट्स वगैरह पर ही ध्यान होता है। आते समय थकान, कुछ दुनियादारी वाली सोच और फ़िर हम जैसों के पास अगर म्यूज़िक की व्यवस्था हो तो किताब कौन पढ़ेगा! सो कुल मिलाकर ये कि मैं तो नहीं पढ़ पाती हूं। हमारे जैसों की हालत गुलज़ार की उस कविता की तरह है, जिसमें वो कहते हैं-

“किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं;
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं, जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं;
अब अक्सर … गुज़र जाती हैं ‘कम्प्यूटर’ के पर्दों पर, बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें …”

एग्ज़ाम से कुछ देर पहले मूवी देखना बहुत कम लोग करते हैं। पेट खराब हो तो गर्म जलेबी खा लेना भी बहुत कम लोग करते हैं और बैटिंग से कुछ देर पहले किताब पढ़ने का काम भी बहुत कम ही लोग करते हैं। क्योंकि मौजूदा परिस्थिति से हम इतने दबाव में आ जाते हैं कि उसके विपरीत जाकर काम करना नामुमकिन सा लगता है।

इसके थोड़े तह में जाने पर पता चला कि इतिहास में भी कुछ ऐसे शासक हुए हैं जो लिखने-पढ़ने से जुड़े रहे हैं। मुगल बादशाह बाबर जब भारत में अपना फुटहोल्ड तलाश रहा था। जब वो चारो तरफ़ से युद्ध में व्यस्त और घिरा हुआ था उस दौरान सभी दबाव और परेशानी के बावजूद बाबर अपनी डायरी लिखा करता था। इसका बाद में फ़ारसी में अनुवाद किया गया और इसे बाबरनामा के नाम से जाना जाता है।

ऐसा कहा जाता है हुमायूं युद्ध के दौरान भी किताब लेकर जाता था और लाइब्रेरी का तो शौक उसे था ही। उसकी मृत्यु भी लाइब्रेरी की सीढ़ी से गिरकर ही हुई थी। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। कहने मतलब ये है कि अत्यंत दबाव में होने के बाद भी इन लोगों ने लिखने-पढ़ने से संगति बनाए रखी।

हम जैसों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जब भी थकान, परेशानी होती है, तो पढ़ना छोड़ देते हैं। ब्रेकअप के दिनों में या दफ़्तर के दबाव में मुंह लटकाने के बजाए अपनी पसंदीदा किताब पढ़ने लग जाएं तो रास्ता आसान लगेगा। जब पढ़ना छोड़ेंगे तो लिखना अपने आप ही बंद हो जाता है।

कॉलेज में टीचर कहती थीं कि दुनिया के हर सवाल का जवाब किताब से मिल जाएगा, उससे दोस्ती करो। घर के बड़े कहते थे किताब से अच्छा कोई दोस्त नहीं। अब एकबार फिर किताबों से अच्छी वाली दोस्ती करने का मन है। अपने कम्प्यूटर से निकलकर थोड़ा वक्त़ किताबों के लिए दीजिए ना। देखादेखी में ही सही मगर ऐसी नकल से कोई नुकसान नहीं है। ऑफ़लाइन हो या ऑनलाइन, सुबह-शाम, कभी भी, कहीं भी- किताब के अंदर आपके हर सवाल का जवाब है।

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