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“हम आदिवासियों के हक की बात कर रहे थे और पुलिस ने हम पर झूठा केस कर दिया”

एडिटर्स नोट: लेखक द्वारा बताए गए मामले की तफ्तीश के सिलसिले में Youth Ki Awaaz ने गोड्डा पुलिस से संपर्क करने की कई कोशिशें की लेकिन इस मामले में पुलिस से किसी भी तरह की जानकारी नहीं मिल सकी।

बीरेंद्र कुमार:

देश में हर जगह की भाजपा सरकार जेएनयू समेत हर एक लोकतांत्रिक आवाज़ को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जाकर बिना किसी तथ्य के झूठी कहानियां गढ़ते हुए मुकदमा लादने की हड़बड़ी में रहती है।

16 जून की मीटिंग के बाद बिरेन्द्र कुमार और उनके साथी

यहां बता दूं कि झारखण्ड के गोड्डा जिला मुख्यालय में इंसाफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक मुश्तकीम सिद्दीकी व राजू खान, अम्बेडकर स्टूडेंट यूनियन के संयोजक रणजीत कुमार व नीतीश आनंद और मैंने अपने 7-8 साथियों के साथ राज्य में बढ़ते साम्प्रदायिक हमले और आदिवासियों के भूमि अधिकार के संरक्षण के लिए बने कानून CNT (छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट)-SPT (संथाल परगना टेनेंसी एक्ट) एक्ट को कॉर्पोरेट हित में बदले जाने के खिलाफ 16 जून को एक बैठक की थी। स्थानीय पुलिस को सोशल मीडिया के ज़रिए इस बात की जानकारी मिली। पुलिस ने अगले ही दिन मीटिंग में शामिल रहे गोड्डा के स्थानीय नेता रंजीत कुमार व नीतीश आनंद को थाने पर बुलाया और फर्ज़ी मुकदमे में फंसाने की धमकी दी। पुलिस ने 19 जून को सांप्रदायिक नफरत फैलाने व देश की अखंडता को खतरा बताते हुए संगीन धाराओं के तहत मेरे सहित 7 लोगों पर फर्ज़ी मुकदमे लाद दिए।

झारखंड की भाजपा सरकार के इशारे पर 19 जून को गोड्डा पुलिस के द्वारा मेरे अलावा जिन 6 लोगों पर फर्ज़ी केस किया गया है, उसमें एक आदमी मो. नौशाद उर्फ साबिर का नाम भी है। मज़ेदार बात ये है कि मो. नौशाद को हम लोग जानते तक नही हैं और इस नाम का कोई व्यक्ति 16 जून की मीटिंग में भी शामिल नहीं था। सरकार एक षड्यंत्र के तहत फर्ज़ी नाम जोड़कर तथा फर्ज़ी केस लगाकर आंदोलनकारियों को चुप करवाना चाहती है। लेकिन इस सरकारी दमन के बावजूद हम लोग जल-जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए जनता के पक्ष में आवाज़ उठाते रहेंगे।

केंद्र-राज्य की बीजेपी सरकार के रवैये से साफ ज़ाहिर है कि अगर आप अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों, महिलाओं के हक के मुद्दे पर बैठक भी करते पाए गए तो आपको माओवादी-आतंकवादी कुछ भी बताकर संगीन धाराएं लगाकर झूठे मुकदमें में फंसा दिया जाएगा। अगर आप साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ हैं तो आप पर अशांति भड़काने का मुकदमा दर्ज कर दिया जाएगा। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यह लोकतंत्र की हत्या की शर्त पर देश में चौतरफा मोदी-योगी-शिवराज और रघुवरों का राज आगे बढ़ रहा है। यह राज कॉर्पोरेट लुटेरों की सेवा में जनता और लोकतंत्र पर हमला है।

जब यूपी में मुजफ्फरनगर और सहारनपुर होता है तो क्या तब देश की अखंडता को उस वक्त कोई खतरा नहीं पहुंचता? जब अख़लाक़ से लेकर मिन्हाज अंसारी, पहलू खान और जफर को ‘भीड़’ द्वारा पीट-पीटकर मार दिया जाता है, क्या तब भी कोई अशांति भंग नहीं होती? जब बीजेपी-आरएसएस से जुड़े लोग ISI की मुखबिरी करते पकड़े जाते हैं, तब यह मीडिया के लिए भी कोई खबर नहीं होती? झारखण्ड के हज़ारीबाग जिले के बड़कागांव में जब अपनी भूमि बचाने के लिए लड़ रहे किसानों को राज्य की पुलिस गोली मार देती है, तो सरकार और पुलिस के लिए यह बस एक ज़रूरी कदम होता है। किंतु अगर कुछ लोग लोकतंत्र के लिए, संवैधानिक अधिकारों को बचाने के लिए उठ खड़े होते हैं और महज मीटिंग करते हैं तो एक ही साथ साम्प्रदायिक सद्भाव से लेकर देश की एकता-अखंडता सब खतरे में पड़ जाती है!

सोचने की बात है कि इन साम्प्रदायिक ताकतों के लिए देश का मतलब क्या है और उनकी नज़र में कानून का मतलब क्या है? पूरे देश में गौ-रक्षा के नाम पर या अफवाह फैलाकर दलितों-अल्पसंख्यकों की हत्या के लिए उकसाने वालों को कानून हाथ में लेने की खुली छूट मिली हुई है। लेकिन लोकतंत्र पसंद-न्याय पसंद लोगों ने अगर एक बैठक भी कर लिया तो आतंकियों से उनके संबंध बता दिए जाएंगे और उनकी आवाज़ दबा दी जाएगी!

इतना सब जानने के बाद आपको लगता होगा कि आखिर ये छः-सात लोग हैं कौन, जिनकी मीटिंग से मौजूदा झारखण्ड सरकार इतना कुपित हो उठी है कि उसे नष्ट कर देने पर तुल गई है? पहले बता दूं कि इन सात में से नौशाद नामक जिस व्यक्ति का एक नाम FIR में दर्ज है, उसे कोई जानता तक नहीं ना ही ये शक्स मीटिंग में मौजूद था।

इसके बाद बारी-बारी से आपको बाकी के लोगों से परिचित कराता हूं- बिरेन्द्र कुमार यानि मैं जेएनयू का छात्र नेता हूं और झारखण्ड के ही दुमका जिले का रहने वाला हूं। पिछले दिनों जेएनयू में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ते हुए पहले भी मैंने और मेरे साथियों ने जेएनयू प्रशासन का दमन भी झेला है। इन दिनों हम बिहार, झारखण्ड सहित देश के उन हिस्सों में जा रहे हैं जहां साम्प्रदायिक हिंसा व बर्बरता की कोई घटना सामने आ रही है और बेखौफ होकर इंसाफ की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। हमने बिहार के नवादा और झारखण्ड के जमशेदपुर में हुई हिंसा की घटनाओं के दोषियों पर भी कार्रवाही की आवाज़ बुलंद की है।

पिछले माह की 25 मई को झारखण्ड पुलिस के इशारे पर बिहार की राजधानी पटना में हमें माओवादी बताकर 6 घंटे तक पुलिस हिरासत में ले लिया गया था। वहीं मुश्तकीम सिद्दीकी सोशल मीडिया का जाना-पहचाना नाम हैं। वे पिछले एक वर्ष से इंसाफ इंडिया नामक संगठन के जरिए झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा, दलित उत्पीड़न व महिला हिंसा की घटनाओं को सड़क और सोशल मीडिया पर बड़ी शिद्दत से उठा रहे हैं। जैसे ही उन्हें इस किस्म की किसी वारदात की जानकारी मिलती है, वे बेधड़क वहां पहुंच जाते हैं और इंसाफ की आवाज़ जाति-धर्म से ऊपर उठकर बुलन्द करते हैं।

झारखण्ड और बिहार में पिछले दिनों हुई दर्जनों हिंसा-उत्पीड़न की घटनाओं को उन्होंने मजबूती से उठाया है। जमशेदपुर और नवादा की घटनाओं को भी सामने लाने में उनकी प्रमुख भूमिका रही है। जबकि रंजीत कुमार और नीतीश आनंद, गोड्डा के चर्चित छात्र-युवा नेता हैं। ये दोनों छात्र- नौजवानों, दलितों-आदिवासियों व किसान-मजदूरों के मसले पर अत्यंत ही मुखर रहे हैं और सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए जाने जाते हैं। पिछले दिनों गोड्डा में किसानों की उपजाऊ 1700 एकड़ ज़मीन उद्योगपति अडानी को दिए जाने के खिलाफ किसान आंदोलन में भी ये दोनों शुरुआती दौर से सक्रिय रहे हैं। यही वजह है कि इंसाफ की इस आवाज़ को झारखण्ड की सरकार दबाने पर आमादा है।

अंत में मैं बिरेन्द्र कुमार लोकतंत्र पर रघुवर सरकार के इस खुले फासीवादी हमले के खिलाफ सभी लोकतांत्रिक-राजनीतिक शक्तियों, न्याय व लोकतंत्र पसंद नागरिकों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं को एकजुट होकर विरोध के लिए आगे आने की अपील करता हूं।

 

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