हम इंसानों में कबूतरों के लिए गज़ब का प्यार देखने को मिलता है। और, कबूतर भी हम इंसानों की सोहबत में रहना कितना पसंद करते हैं, इसे साबित करने के लिए किसी भारी गवाही की ज़रूरत नहीं। इसके लिए हमारी कहानियों और फिल्मों में भरपूर किस्से मिल जायेंगे। कई फिल्मों में तो कबूतर हीरो-हीरोइन के दोस्त भी होते हैं। कबूतरों के डाकिया वाले रूप से भला कौन वाकिफ नहीं है ? लेकिन, हमने शायद ही सोचा होगा कि हमसे इतनी गहरी दोस्ती करने वाला ये पक्षी हमारे लिए जानलेवा भी हो सकते हैं।
मेरे लिए यह बात बिलकुल चौंकाने वाली थी। कबूतर तो हिंसक जानवर नहीं होते; इन्हें तो शांति का प्रतीक माना जाता है। फिर ये हमारी जान के लिए खतरनाक कैसे हो सकते हैं।
दरअसल, मैं एक दोस्त के ज़रिए इस सच्चाई से वाकिफ हुई। मेरी दोस्त ने बताया कि वो एक भयावह बीमारी के कारण काफी परेशान है। उसके वजाइना में रिंग वर्म (दाद) हो गया है, जिसकी वजह से उसका पूरा यूरिन इन्फेक्टेड हो गया है। उसने बताया कि ये बीमारी उसे कबूतर की वजह से हुई है।
रिंग वर्म स्किन में होने वाला एक तरह का फंगल इन्फेक्शन होता है, जो आपके शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। पहले लाल दाने के रूप में इसकी शुरुआत होती है फिर यह धीरे-धीरे यह फैलने लगता है। इस बीमारी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह आसानी से ठीक भी नहीं होता।
मुझे इस बात में कोई दम नहीं लगा। भला कबूतर रिंग वोर्म का कारण कैसे हो सकता है और वो भी प्राइवेट पार्ट में। लेकिन, उस दोस्त ने सारी बातें विस्तार से बताई। उसने बताया कि वो दिल्ली के अशोक नगर के जिस घर में रहती थी वहां कबूतरों का काफी आना-जाना था। उसके घर के एक कोने को कबूतरों ने अपना ठिकाना ही बना लिया था। कबूतरों के बारे में कहा जाता है कि वो बाकी पक्षियों के मुकाबले ज्यादा बीट करते हैं। आपने खुद देखा होगा कि कबूतरों का जहां भी ठिकाना होता है वहां एक अजीब सी दुर्गंध होती है।
बहरहाल, उनका बीट सूखने के बाद पाउडर बनकर हवा में फैल जाता है। कबूतरों को अपने उन्हीं बीट में रहने की आदत होती है। जब कबूतर वापस से अपने सूखे हुए बीट पर बैठते हैं और बार-बार अपने पंख हिलाते हैं तो वो पाउडर आस-पास की हवा में बुरी तरह फैल जाता है। जब कोई इंसान उस हवा को सांस के ज़रिए अपने अंदर लेता है तो उनके बीट में पाए जाने वाले फंगस, बैक्टीरिया, वायरस भी उसके अंदर चले जाते हैं।
वो फंगस, बैक्टीरिया और वायरस पहले हमारे फेफड़ों में पहुंचता है, फिर धीरे-धीरे हमारे शरीर के बाकी हिस्सों में उसका प्रवाह होता है। महिलाओं के प्राइवेट पार्ट में इनफेक्शन होने का खतरा ज़्यादा होता है। मेरी दोस्त ने बताया कि मैंने कबूतरों के बीट को साफ करने की काफी कोशिश की थी, जिसकी वजह से काफी नज़दीक से उनसे मेरा संपर्क रहा और वही मेरे इंफेक्शन की वजह बना।
आज मेरी दोस्त इस वजह से काफी परेशान है। उस इंफेक्शन की वजह से इचिंग की समस्या तो होती ही है साथ ही कई बार उसके प्राइवेट पार्ट से खून भी निकल आता है।
कबूतरों के बीट में पाए जाने वाले फंगस का हमारे आंखों पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। बल्कि ऐसा भी कहा जाता है कि ये फंगस सबसे पहले हमारे आंखों को ही प्रभावित करते हैं। कई बार तो आंखों की रौशनी भी चली जाती है।
दरअसल, कबूतर अपने में बड़ी संख्या में बीमारी के स्रोत समेटे रहते हैं, जो इंसान के लिए काफी खतरनाक होते हैं। इन बीमारियों को Zoonoses कहते हैं। Zoonoses एक तरह की संक्रामक बीमारी है जो जानवरों और पक्षियों से इंसानों तक पहुंचता है।
इस इंफेक्शन के प्रवाह का मूल आधार उनके बीट होते हैं। कबूतरों के बीट कई तरह के वायरस, बैक्टीरिया और फंगस को लेकर चलते हैं। यह बैक्टीरिया और फंगस चमगादड़ और मुर्गियों में भी पाए जाते हैं। लेकिन, चमगादड़ इंसानों के बीच नहीं रहते और मुर्गियों को भी एक निश्चित जगह में रखा जाता है। इस वजह से उनसे इंफेक्शन का खतरा बहुत कम होता है।
कबूतरों को आदमियों के आस-पास रहने की आदत होती है। अंग्रेज़ी में कबूतरों के लिए एक खास विशेषण का इस्तेमाल किया जाता है “Rats On Wings”। कबूतरों को भी चूहों की ही तरह ढीट प्राणी कहा जाता है। जिस तरह चूहे एक बार आपके घर में ठिकाना बनाने के बाद जल्दी वहां से जाने का नाम नहीं लेते, ठीक वैसे से कबूतरों का स्वभाव होता है। इसलिए उनकी तुलना चूहों से की जाती है।
कबूतरों के इंसानों के बीच बसने के दो बड़े कारण हैं। पहला, वे काफी आलसी स्वभाव के होते हैं। वे खाने के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करते। इस वजह से वे आदमियों के बीच रहना ज्यादा पंसद करते हैं।
कबूतर मुख्यत दो तरह के होते हैं। रॉक पीज़न (कबूतर) और ग्रीन पीज़न (कबूतर)। हमारे आस-पास यानी शहरी इलाकों में हम जिन कबूतरों को देखते हैं वो रॉक पीज़न होते हैं। यूरोप में कबूतरों की समस्या का एक बड़ा कारण वहां की सड़कों की बनावट भी है। वहां की अधिकांश सड़कें cobblestone से बनने लगी थी। इससे बनने वाली सड़कों के बीच के स्पेस में जो खाद्य पदार्थ फंस जाते थे कबूतर उसको ही खाकर अपना गुज़ारा चलाने लगे थे। यही वजह थी कि धीरे-धीरे यूरोपीय देशों में कबूतरों की संख्या तेज़ी से बढ़ने लगी।
दूसरा बड़ा कारण है कबूतरों का इंसानों से ना डरना। वे इंसानों के बीच आसानी से सर्वाइव कर लेते हैं। एक वक्त था जब लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर कबूतरों को दाना खिलाने के लिए फेमस था, लेकिन वहां कबूतरों के बीट से लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा, जिसे देखते हुए 2001 में वहां कबूतरों को दाना डालने पर रोक लगा दिया गया।
कबूतरों के साथ एक और बड़ी समस्या यह है कि उनकी औसत प्रजनन क्षमता दूसरे पक्षियों के मुकाबले ज़्यादा होती है। कहा जाता है कि एक कबतूर साल में लगभग 4 बार अण्डे देती है और वो भी एक बार में एक से अधिक अण्डे। इस वजह से हमारे आस-पास कबूतरों की जनसंख्या ज्यादा देखने को मिलती है।
कबूतरों की समस्या की एक बड़ी वजह शहरी प्लानिंग भी है। जहां छोटे-छोटे जगहों में ब्लीडिंग्स खड़ी कर दी गई है। कबूतर ऐसे संक्रीण इलाकों को आसानी से अपना ठिकाना बना लेते हैं।
आइए, एक नज़र डालते हैं कबूतरों में पाए जाने वाले फंगस और बैक्टेरिया से होने वाली बीमारियों पर-
हिस्टोप्लाज़मिस एक तरह के फंगस के कारण होने वाली बीमारी है, ये फंगस कबूतरों के बीट में तेज़ी से बढ़ता है। इसका विस्तार मिट्टी में भी होता है और यह फंगस दुनिया भर में पाया जाता है। कबूतरों की गंदगी साफ करने के दौरान यह फंगस व्यक्ति के अंदर चला जाता है, जो बहुत हद तक संक्रमण का कारण बनता है।
हिस्टोप्लाज़मोसिस के लक्षण आरंभिक संक्रमण के लगभग 10 दिनों बाद दिखना शुरू हो जाते हैं। इसमें थकान, बुखार, चेस्ट पेन आदि लक्षण शामिल हैं। कमज़ोर इम्यून सिस्टर वाले व्यक्ति जैसे कैंसर एचआईवी/ए़ड्स के रोगी में इस फंगस के ज़्यादा डेवलप होने की संभावना होती है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है।
क्रिपिटोकोसीस भी फंगस से होने वाली बीमारी है और इसके फंगस भी कबूतरों के बीट में जन्म लेते हैं साथ ही मिट्टी में तेज़ी से बढ़ते हैं। यह फंगस भी दुनिया भर में पाया जाता है। हालांकि इस फंगस से स्वस्थ व्यक्ति के प्रभावित होने की संभावना बहुत कम होती है। यह मुख्यत: कमज़ोर इम्यून सिस्टम वाले व्यक्ति को प्रभावित करता है। अमेरीका के सेंटर्स फॉर डिज़ीज (सीडीसी) के अनुसार, इस फंगस से होने वाली बीमारी के 85 प्रतिशत व्यक्ति एचआईवी पेशेंट होते हैं।
सिटाकोसिस कबूतर, तोते जैसे पक्षियों के कारण होता है। इंसानों में इस बीमारी के लक्षण बुखार, कमज़ोरी, सिर दर्द, दाने, ठंड लगना, और कभी-कभी निमोनिया भी होती है। अमेरीका के सेंटर्स फॉर डिज़ीज (सीडीसी) के अनुसार, इस बीमारी के 70 प्रतिशत रोगी इन पक्षियों के संपर्क में आए हुए रहते हैं।
यह बीमारी मुख्यत: खाद्य जनित पदार्थों की वजह से होती है, लेकिन कुछ केसेज़ में इसका कारण कबूतरों के बीट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया भी होते हैं। यह बैक्टीरिया गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए काफी खतरनाक होते हैं। इंनफेक्शन ज्यादा बढ़ने पर मौत का भी खतरा बना रहता है।
इ-कोलाई के कई कारण होते हैं, जिनमें से एक कबूतरों के शिट भी शामिल हैं। हालांकि यह कहना अभी मुश्किल है कि इ-कोलाई के कितने प्रतिशत केस कबूतरों के शिट में पाए जाने वाले फंगस और बैक्टिरिया की वजह से होते हैं।
हालांकि इन सबका एक दूसरा भी पहलू है। अभी तक यह साबित नहीं हो सका है कि कबूतर इंसानों के लिए किस हद तक खतरनाक हैं। कई डॉक्टर्स भी कबूतरों से इंसानों को होने वाली बीमारियों के तथ्य को नकारते हैं। पक्षियों को सपोर्ट करने वाले कई संगठन भी इसी मत को मानने वाले हैं और वे कबूतरों को मनुष्य के नैसर्गिक और आदि-सहचर के रूप में मान्यता देते हुए उनके भरपूर संरक्षण और सुरक्षा पर बल देते हैं।