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क्या राईट टू प्राइवेसी हमारा फंडामेंटल राईट नहीं होना चाहिए?

फेसबुक पर अगर कोई आपको इनबॉक्स करके ये पूछे कि अभी तक जाग रही हैं, तो कई बार अजीब लगता है। ऐसा लगता है कि तुमको क्यूं बताएं कि क्यूं जाग रहे हैं। ऐसा लगता है मानो कोई हमारी प्राइवेसी में दखल दे रहा हो। हम प्रोफाइल पिक भी प्रोटेक्ट कर रहे हैं ताकि इसका दुरूपयोग नहीं हो।आखिर ये हमारी प्राइवेसी का मामला है। अब आप आधार के बारे सोचिए, आप ऐसा समझिए की ट्रेन की बर्थ पर सारा सामान रखकर चले गए हैं वो भी बिना किसी सुरक्षा की गारंटी के। आधार में दी गई जानकारी का फिलहाल ऐसा ही हाल है।

फोटो आभार: getty images

आधार से हमारी निजता का हनन तो उसी दिन हो गया जब हमारी आंख की पुतलियों और उंगलियों का स्कैन किया गया। हमने अन्य ज़रूरी जानकारी भी दी ही है और आधार सरकारी योजना से लेकर मोबाइल के सिम कार्ड तक लेने के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। घर से निकलते समय पानी बोतल या पैसे रखें हो या नहीं लेकिन आधार रखना ज़रूरी है। जानकारी तो हम पहले भी दे रहे थे- वोटर कार्ड, डी.एल., राशन कार्ड और पैन कार्ड के माध्यम से। इन सबमें सबसे ज़्यादा जानकारी हम पैन कार्ड के माध्यम से देते थे, क्योंकि ये बैंक से जुड़ जाता है। आधार पहचान पत्र में पैन कार्ड का अगला कदम है, यहां बाक़ी जानकारी तो है ही साथ ही आपकी बायोमैट्रिक जानकारी भी है। मतलब स्टेट के पास आपका प्रोफाइल तैयार और आपके प्रोफाइल को हर जगह अनिवार्य कर दिया गया है।

स्टेट आधार के जरिए आपको 24 घंटे सर्विलांस पर रख रहा है। सोचिए अगर कभी स्टेट की नीयत बदल जाए तो! प्रोफाइल में दी हुई आपकी जानकारी मतलब डेटा कितना सेफ है? दी हुई जानकारी लीक हो गई तो? और डेटा लीक हो रहा है। magicapk.com पर रिलायंस जियो के 12 करोड़ यूजर्स का डेटा लीक होने की बात सामने आई है। इससे पहले एम.एस. धोनी के साथ भी ऐसा हुआ ही था और भी कई ग्लिचेस हैं जो कई बार हम तक पहुंच नहीं पाते हैं। तो कुल मिलाकर खतरा हमारी निजता को है।

इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में अब तक 22 याचिका दाखिल की गई हैं और अब 9 जजों की खंडपीठ यह तय करेगी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। क्योंकि संविधान ने अब तक निजता को डायरेक्ट मौलिक अधिकार में नहीं शामिल किया है।

सब जानते हैं कि हमारे कुल 6 मौलिक अधिकार हैं और जब-जब निजता के अधिकार से संबंधित कोई मामला आया है तो उसे अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता के अधिकार क्लॉज (c, अनुच्छेद 21A) प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण का अधिकार के दायरे में लाकर बात की गई है। (इसे समझने के लिए basic structure of the constitution संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत जो सुप्रीम कोर्ट ने दिया था- गोलकनाथ, केशवानंद भारती, ए.के. गोपालन, मेनिका गांधी और मिनरवा मिल्स के केस के रेफरेंस में समझना होगा।)

संक्षेप में ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की बेहद सीमित व्याख्या की। दरअसल ए.के. गोपालन को बंदी बनाया गया था और उन्होने इसे अनुच्छेद 19 के अबाध (free) कहीं आने-जाने के अधिकार के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा राज्य प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को कानूनी आधार पर रोक सकता है। लेकिन मेनिका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में कोर्ट ने गोपालन वाले अपने फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने प्राण की अधिकार की वृहत व्याख्या की। प्राण का अधिकार सिर्फ शारीरिक बंधनों से ही नहीं मानवीय सम्मान से भी जुड़ा है। अनुच्छेद 21 में कोर्ट ने अन्य अधिकारों को भी शामिल किया, जिसमें जीवन का अधिकार और निजता का अधिकार भी है। तो अप्रत्यक्ष रूप से निजता का अधिकार है, लेकिन जब आपके सामने आधार जैसी योजना हो तो यह ज़रूरी है कि निजता को हमारे मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए।

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