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आगरा के गरीबों के लिए शिक्षा अधिकार नहीं लग्ज़री है

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education -2009), आगरा के गरीब बच्चों के लिए महज़ एक कल्पना है क्योंकि इस साल भी ज़्यादातर बच्चों को इस अधिकार से वंचित रखा गया है। शैक्षिक सत्र 2017-18 में 5000 से ज़्यादा आवेदन फॉर्म्स ख़ारिज कर दिए गए, जिससे उन बच्चों के लिए इस साल भी शिक्षा का अधिकार एक सपना बन कर रह गया है।

UP शिक्षा का अधिकार 2011 के तहत कॉन्वेंट स्कूलों को 25 प्रतिशत सीटें रिज़र्व करनी पड़ती हैं, जिससे गरीब बच्चों को भी इन स्कूलों में बिना फीस के बोझ के पढ़ने का मौका मिल सके, लेकिन यह डगर इतनी आसान नहीं है। बेसिक शिक्षा विभाग की वेबसाइट के अनुसार, इस वर्ष तीन चरण की लॉटरी जारी होने के बाद लगभग 3271 बच्चे प्री प्राइमरी और कक्षा एक में दाखिले के लिए योग्य पाए गए हैं। अधिकारियों के मुताबिक पहली लॉटरी में चयनित बच्चों के प्रवेश करा दिए गए हैं। दूसरी लॉटरी जारी होने के बाद स्कूलों में ग्रीष्मावकाश हो गया। दूसरे और तीसरे चरण के पात्र बच्चों का प्रवेश कराया जाना अभी बाकी है। बेसिक शिक्षा विभाग के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार लगभग 1456 बच्चों के आवेदन फॉर्म्स ख़ारिज कर दिए गए हैं, स्कूलों में आवेदन सीट फुल होने के कारण और बाकी फॉर्म्स के निरस्त होने का पता लगाया जा रहा है। इस वर्ष लगभग 9000 से ज़्यादा आवेदन फॉर्म आये थे, सूत्र- बेसिक शिक्षा विभाग।

बेसिक शिक्षा विभाग की ही वेबसाइट के अनुसार 2014-15 में 54, 2015-16 में 3135, 2016-17 में 17138 बच्चों का चयन हुआ जबकि 2017-18 के आंकड़े वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं।

सूत्र बताते हैं की पिछले साल चयन प्रक्रिया होने के बाद भी कुछ अभिभावक अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए दर-दर भटकते रहे, जबकि उनमें से कुछ ने तो भूख हड़ताल भी की और प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा। उनमें से एक अभिभावक ने बताया कि स्कूल ने उन्हें साफ-साफ़ मना कर दिया था कि उनके बच्चों का प्रवेश नहीं होगा वह चाहे जहां चले जाएं।

समाज सेविका डॉ हृदेश चौधरी के अनुसार एक गरीब माँ ने अपने पैरों की पायल बेच दी थी सिर्फ और सिर्फ अपने बेटे को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए। लेकिन बाद में उसको निराशा ही हाथ लगी, क्यूंकि उसके पुत्र का फॉर्म ख़ारिज कर दिया गया। सूत्र यह भी बताते हैं कि पिछले वर्ष भी ज़्यादातर स्कूलों ने यही प्रक्रिया अपनाई थी, जिस वजह से आधे से ज़्यादा गरीब बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों में प्रवेश पाए बिना ही रह गए थे। जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर साल ज़्यादा बच्चों को प्रवेश दिलाया जा रहा है। हृदेश बताती हैं, कि उन्होंने बहुत कोशिश की सच्चाई जानने की पर वह नाकामयाब रही, क्यूंकि उनको किसी भी जगह से सही उत्तर नहीं मिला।

ख़बरों के अनुसार आगरा के धनौली क्षेत्र में एक कॉन्वेंट स्कूल ने आधा दर्जन बच्चों को निकाल दिया और उनके अभिभावकों से कह दिया कि फीस जमा कराओ। एक अभिभावक ने बताया कि उसके बेटे को 20 मिनट तक कक्षा में बिठाया गया और उपस्थिति भी दर्ज की गई लेकिन उसके बाद क्लास टीचर ने बच्चे को बाहर निकाल दिया। पता करने पर जवाब मिला कि फीस जमा नहीं है और तुरंत जमा करवाएं। गरीब अभिभावक बहुत उम्मीदें रखते हैं कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने जाएंगे लेकिन जैसे-जैसे उनको सच्चाई का पता लगता है, वह अपने आपको कोसने लगते हैं कि वह गरीब क्यों हैं?

फोटो प्रतीकात्मक है।

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