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अंग्रेज़ चालाकी नहीं करते तो एक भारतीय के नाम पर होता एवरेस्ट

29 मई 1953 में एडमंड हिलेरी व तेंजिंग नॉर्गे ने पहली बार 8848 मीटर (29002 फीट) ऊंचे एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी।

महालंगूर रेंज में स्थित इस चोटी को मापने से लेकर इसके नामकरण की कहानी बेहद रोचक है। इसकी तह तक जाएं, तो पता चलता है कि अगर अंग्रेज़ों ने चालाकी नहीं की होती, तो आज एवरेस्ट का नाम बंगाली मूल के राधानाथ सिकदर के नाम पर होता। राधानाथ सिकदर ही वह शख्स थे, जिन्होंने विश्व की सबसे ऊंची इस चोटी की ऊंचाई मापी थी।

1813 में उत्तर कोलकाता के जोड़ासांको में जन्मे राधानाथ सिकदर प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। सन 1831 में भारत के सर्वेयर जनरल जॉर्ज एवरेस्ट एक ऐसे व्यक्ति को तलाश रहे थे, जिसे स्फेरिक ट्रिग्नोमेट्री में महारत हासिल हो।

यहां यह भी बता दें कि ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे की शुरुआत सन् 1802 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। इसका काम भारतीय उपमहाद्वीप को वैज्ञानिक पद्धति से मापकर रिकॉर्ड तैयार करना था।

खैर, हिंदू कॉलेज के शिक्षक टाइटलर से जब उन्होंने यह बात बतायी, तो टाइटलर ने अपने सबसे विश्वस्त व होनहार छात्र राधानाथ सिकदर का नाम सुझाया। राधानाथ सिकदर उस वक्त महज 19 वर्ष के थे। वर्ष 1831 में ग्रेट ट्रिग्नोमेट्री सर्वे में वह 30 रुपये माहवार पर कंप्यूटर के पद पर नियुक्त हुए। जी हां! कंप्यूटर के पद पर उस ज़माने में कंप्यूटर उसे कहा जाता था, जो कागज़ों पर डेटा की कंप्यूटिंग का काम करता था।

बहरहाल, उनके काम के जॉर्ज एवरेस्ट बहुत प्रभावित हुए और देहरादून में उनका ट्रांसफर कर दिया। वहां उन्होंने अपने काम को और निखारा। करीब दो दशक उन्होंने देहरादून में बिताए। उसी दौरान जॉर्ज एवरेस्ट ने सबसे ऊंचे पर्वत के बारे में पता लगाने काम उन्हें सौंपा। कुछ दिन बाद एवरेस्ट रिटायर हो गये और उनकी जगह कर्नल एंड्रू स्कॉट वॉ सर्वेयर जनरल बनकर आये। उन्होंने भी कई लोगों को यह काम सौंपा, लेकिन बड़ी कामयाबी अब भी दूर थी।

लगभग चार वर्षों तक लगातार काम करने के बाद 1852 में राधानाथ सिकदर ने ट्रिग्नोमेट्रिक जोड़-घटाव के बाद वॉ से कहा कि उन्होंने सबसे ऊंची चोटी का पता लगा लिया है। उन्होंने बताया कि सबसे ऊंची चोटी 29002 फीट है। इस जानकारी को कई वर्षों तक दबाए रखा गया क्योंकि वॉ इस खोज को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे। अंततः 1856 में आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की गई।

बताया जाता है कि इस सर्वोच्च चोटी के नामकरण को लेकर पहले तय हुआ कि स्थानीय नामों के आधार पर इसका नाम रखा जाए। लेकिन, बाद में वॉ ने अपने पूर्व सर्वेयर को श्रद्धांजलि देने के लिए इस पर्वत का नाम एवरेस्ट रख दिया। इस तरह चार साल तक लगातार चोटी नापने के लिए अथक परिश्रम करनेवाले राधानाथ सिकदर का नाम गुमनामी के अंधेरे में डूब गया।

जॉर्ज एवरेस्ट का रोल बस इतना था कि उन्होंने राधानाथ सिकदर को सबसे ऊंची चोटी के बारे में पता लगाने का टास्क दिया थ। राधानाथ ने उस समय मौजूद बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल कर एवरेस्ट की ऊंचाई मापी, लेकिन इसका श्रेय उन्हें नहीं मिला। राधानाथ सिकदर ने एवरेस्ट को मापने के साथ ही गणित के कई नये फॉर्मूले भी दिए, लेकिन इतिहास में उन्हें वो सम्मान नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे।

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