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“जब 10 साल की उम्र में मुझे 2 लाख में कोठे में बेच दिया गया”

Youth Ki Awaaz के लिए अंतरा सेनगुप्ता: 

“मुझे नहीं पता था कि रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट क्या होता है, या मुंबई में इनकी भरमार है। ना तो मुझे सेक्स के बारे में कुछ पता था और ना ही ये पता था कि सेक्स ट्रेड यानि कि देह व्यापार इन इलाकों में बहुतायत में होता है।” निर्मला सिंह तब की बात बताते हुए ये कहती हैं जब वो 10 साल की थीं। इसी उम्र में उत्तर प्रदेश के उनके गांव से उन्हें घर का काम करने के नाम पर कामाठीपुरा लाया गया था। पड़ोस की एक महिला जो खुद को उनका हितैषी बताती थी निर्मला को कमाठीपुरा के एक कोठे में 2 लाख रुपये में बेच कर गायब हो गयी। उस महिला ने जाने से पहले निर्मला को बस इतना कहा कि उसे वहां केवल 3 महीने तक रहना होगा।

वो तीन महीने असल में तीन साल में तब्दील हो गए और इस दौरान जिन हालातों का सामना निर्मला को करना पड़ा वो किसी नरक से कम नहीं थे। निर्मला बताती हैं, “अगर मैं किसी भी तरह का विरोध करती तो ‘घरवाली’ (कोठे की मालकिन) मुझे गालियां देती और मेरे साथ मारपीट करती। और उस वक़्त जैसी मेरी दिमागी स्थिति थी उसमें मैं वहां रहने वाली किसी भी अन्य लड़की से दोस्ती भी नहीं कर पा रही थी। मैं मेरे कमरे से बाहर भी नहीं निकल पाती थी। बहुत से ‘ग्राहक’ मुझे मारते पीटते अगर मैं उनका कहा नहीं मानती। आखिर विरोध की भी एक सीमा होती है, जल्द ही मुझे समझ आ गया कि वहां इसका कोई फायदा नहीं था। और इसके बाद मैंने फैसला किया कि मैं इस काम में खुद को बेहतर बनाउंगी।”

खाकी रंग की जींस और पर्पल टॉप पहने आज 35 साल की हो चुकी निर्मला, Youth Ki Awaaz से बात करते हुए अपने जीवन के उस उथल-पुथल भरे समय के बारे में बता रही थी। आज उनका घर सेंट्रल मुंबई का एक छोटा सा कमरा है जिसमें 4 बेड लगे हैं। इन चारों बेड के बीच एक-एक पर्दा लगा है, जिससे जब सेक्स वर्कर्स ग्राहकों के साथ हो तो उन्हें थोड़ी ‘निजता’ मिल सके। इन सेक्स वर्कर्स में निर्मला भी एक हैं।

उम्र की एक देहलीज़ पार कर चुकी निर्मला उन कई महिला सेक्स वर्कर्स में से एक हैं जिन्हें दिन के 2-3 ग्राहकों के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, ताकि वो अपनी रोज़ी-रोटी का प्रबंध कर सकें और ‘घरवाली’ को पैसे दे सकें।

निर्मला सुबह 9 बजे से देर रात तक काम करती हैं, कई बार तो उन्हें ग्राहक के लिए बाकी सेक्स वर्कर्स से लड़ना भी पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ग्राहक को लम्बे बालों वाली, पतली युवा लड़कियां चाहिए होती हैं। इस तरह से दिन में उन्हें बमुश्किल 5 ग्राहक ही मिल पाते हैं।

निर्मला आगे बताती हैं, “अगर कमाई कम होती है तो ‘घरवाली’ बहुत सुनाती है, साथ ही मेरा हिस्सा भी कम हो जाता है। कई बार तो ग्राहक बिना पैसे दिए ही चला जाता है, इसलिए मैं कुछ भी करने से पहले ही पैसे ले लेती हूं।” लेकिन यही उनकी सबसे बड़ी परेशानी नहीं है, पुलिस उससे भी बड़ा सरदर्द है, पुलिस के बारे में बताते हुए निर्मला कहती हैं, “अगर पुलिस ने कभी पकड़ लिया तो कम से कम 1500 रुपये तो देने ही पड़ते हैं, कभी-कभी तो इतनी कमाई भी नहीं होती है।”

अगर दिन बहुत अच्छा हो तो भी उनकी कमाई 1500 रु. नहीं होती हैं, उनके काम की लाइन में 15 साल की लड़कियां भी काम कर रही हैं। इस बारे में बताते हुए निर्मला कहती है, “ग्राहक तो इन छोटी उम्र वाली लड़कियों के साथ ही जाना चाहता है इसकी वो जितना मांगती हैं उन्हें उतना पैसा भी मिलता है।”

बेहतर ज़िंदगी के लिए एक नाकामयाब कोशिश

जब निर्मला की उम्र कम थी उन्होंने कुछ पैसे बचाने शुरू किए ताकि अपनी आंखों के भैंगेपन का इलाज करवा सकें। इस तरह साल बीतते गए और वो चार बेड के कमरे से दो बेड के कमरे में आ गई जहां वो एक दोस्त के साथ रहती थी। उसी दौरान वो एक डॉक्टर से मिली जिसने उन्हें ऑपरेशन करवाने के लिए कहा। उनका 2 बार ऑपरेशन हुआ, पहले ऑपरेशन के बाद तो वो अपनी अंकों की रौशनी लगभग खो ही चुकी थी।

उनके लिए अगले कुछ साल काफी तकलीफों से भरे रहे। उनकी दोस्त को तो वहां से छुड़ा लिया गया, लेकिन वो वहीं रह गयी वो भी बेहद कम पैसों के साथ। एक बार फिर उन्हें वापस उसी चार बेड के कमरे में जाना पड़ा। अभी कुछ ही साल पहले उनकी आंखों का दूसरा ऑपरेशन हुआ, अब वो पहले से बेहतर देख सकती हैं। इन दोनों ऑपरेशनों में उन्हें 40 हज़ार रूपए खर्च करने पड़े जिसके कारण वो आज कर्ज़ तले हैं।

इससे पहले जब उनका तीन साल का समय उस कोठे में पूरा हुआ तो कोठे की मालकिन ने उन्हें आज़ाद कर दिया। वो घर वापस लौटी तो वहां स्थिति बहुत अलग थी। ना पैसा था, ना खाना और ना कोई बात करने के लिए। निर्मला के पिता तब भी बेरोज़गार थे और उम्रदराज़ भी। अब या तो गरीबी में भूखों मर जाओ या कामाठीपुरा वापस लौट जाओ। उन्हें फैसला लेना पड़ा और वो एक बार फिर वापस कामाठीपुरा में थी।

निर्मला अंत में कहती हैं, “मैं वापस आई और चार और लड़कियों के साथ रहने लगी, तबसे मैं यहीं पर हूं। यहां कोई दलाल नहीं हैं, यहां जो भी ग्राहक आता है अपनी मर्ज़ी से आता है।”  

लेखिका मुंबई की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और ज़मीन से जुड़े मुद्दों की बात करने वाले नेटवर्क 101Reporters.com की सदस्य हैं। इससे पहले अंतरा, CNBC और हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ भी काम कर चुकी हैं, वर्तमान में वो आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के साथ काम कर रही हैं।

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