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मैं भले ही ग़रीब हूं लेकिन कुत्तों सी ज़िंदगी नहीं जी सकती- ज़ोहरा बीबी

नोट: 11 जुलाई को नोएडा की महागुन मॉडर्न सोसाइटी में घरों में काम करने वाली ज़ोहरा बीबी को गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाए जाने और उनके साथ मार-पीट करने का आरोप लगाया गया। यह आरोप सोसाइटी में रहने वाले हर्षु सेठी और उनके परिवार पर लगाया गया है, जिनके यहां ज़ोहरा बीबी काम करती थी। लेकिन 3 अलग-अलग FIR में ज़ोहरा बीबी, उनके पति और उनकी झुग्गी में रहने वाले कुछ लोगों पर दंगा करने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए गए, जब वो बीबी को इस तालाबंद सोसाइटी से छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे। इस पूरे घटनाक्रम का कारण ज़ोहरा बीबी पर घर से चोरी करने का आरोप लगाया जाना बताया जा रहा है, लेकिन किसी भी FIR में यह दर्ज नहीं किया गया है। वहीं ज़ोहरा बीबी के द्वारा दर्ज कराई गई FIR में घर के मालिक हर्षु सेठी और परिवार के अन्य सदस्यों पर उन्हें ज़बरन बंदी बनाए जाने, चोट पहुंचाने और दंगा करने का आरोप लगाया गया है।

अभिषेक झा की ज़ोहरा बीबी से हुई बातचीत के आधार पर:  

मैं अब थक गई हूं। 11 जुलाई को मुझे उन्होंने गैरकानूनी तरीके से बंधक बनाकर रखा। तब से मैं पुलिस स्टेशन और हॉस्पिटल के ही चक्कर लगा रही हूं। मैं ना जाने कितनी बार ये कहानी सुना चुकी हूं- लोग बस पूछते ही रहते हैं। पर मैं समझती हूं कि मेरा अपनी कहानी को कहना ज़रूरी है।

मेरा नाम ज़ोहरा बीबी है और मैं शमशान घाट सेक्टर-49 नोएडा, गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश) के पास रहती हूं। मेरा स्थाई पता है: ग्राम- मैदाम, दिनहाटा, कूच बिहार, प. बंगाल।

मैं करीब 11-12 साल पहले दिल्ली आई थी। चौथी तक पढ़ने के बाद मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी और लगभग 12-13 साल की उम्र में मेरी शादी कर दी गई। बालिग होने तक मैं गांव में ही रही लेकिन फिर पैसे कमाने के लिए मुझे दिल्ली आना पड़ा।

अगर मेरा बस चलता तो मैं गांव में ही रहती। यहां हम लोगों की हालत कुत्तों जैसी है, जब आप अपना गांव छोड़कर दिल्ली आते हैं तो आपकी हालत कुत्तों जैसी ही हो जाती है। घरों में काम करने वाले लोगों के साथ कुत्तों जैसा ही बर्ताव किया जाता है।

जिनके यहां हम काम करते हैं उन्हें लगता है कि हमारे पास और कोई काम है ही नहीं। शायद उन्हें लगता है कि ना तो हम खाते हैं और ना कुछ पहनते हैं, वो हमें इंसान तो समझते ही नहीं हैं।

साफ़-सफाई, झाड़ू-बर्तन से लेकर कपड़े धोने तक, मैंने घरों में हर तरह के काम किए हैं। जिनके यहां हम काम करते हैं उनमे से बहुत से लोग अच्छे नहीं होते और बहुत सारे अच्छे भी होते हैं। बहुत से लोग अच्छा खाना देते हैं, उन्ही बर्तनों में जिनका इस्तेमाल वो खुद करते हैं। वहां लगता है जैसे अपने ही घर में हो। और बाकी के लोग ऐसे होते हैं जो हमारी तरफ बस घिन और नफरत से ही देखते हैं।

सच तो ये है कि मुझे इन लोगों से ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए। इनसे कभी कुछ मांगो तो ये हमसे ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे हम भिखारी हों। हम इनसे कुछ मांगे भी क्यूं? लेकिन काम किया है तो महीने की 1 तारीख को तनख्वाह की तो उम्मीद हम करेंगे ही! लेकिन कभी-कभी तो ये लोग समय पर वो भी नहीं देते, ये लोग तनख्वाह भी महीने की 10 या 12 तारीख को देते हैं। मैं जो मेहनत करती हूं उसका पैसा तो मुझे मिलना ही चाहिए ना! आप क्यूं किसी गरीब से इतनी मेहनत करवाने के बाद भी उसे कम पैसा देते हैं?

जहां हम काम करते हैं, वो लोग हम पर जब-तब कुछ भी इल्ज़ाम लगते रहते हैं। कभी कहते हैं कि 5 रु. का बिस्कुट गायब हो गया, कभी कहेंगे कि दूध चुरा लिया, तो कोई कहेगा कि दूध में से मलाई निकाल के खा ली। इस तरह के ना जाने कितने झूठे इल्ज़ाम ये लोग हम पर लगाते हैं। अगर आपको कुछ गलत नज़र आता है तो पुलिस को क्यूं नहीं बुलाते? आप मुझे मार नहीं सकते। ये मैं हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकती। लेकिन सेठी परिवार ने मेरे साथ यही किया।

इसकी शुरुआत ऐसे ही एक इल्ज़ाम से हुई। मैडम ने सीधे मुझ पर इल्ज़ाम नहीं लगाया, लेकिन हर सुबह और शाम को वो खाना पकाने वाले से कहती मैं चोरी करती हूं। एक दिन वो कहती कि 100 रु. नहीं मिल रहे तो दूसरे दिन उनके 200 रु. गायब हो जाते और किसी और दिन 500 रु.। कभी-कभी तो वो कहती कि उनके ‘काजू-बादाम गायब हो गए’। अगर उनके पैसे कहीं बाहर भी खो गए हों तो भी इल्ज़ाम मुझ पर ही लगाया जाता। करीब एक हफ्ता पहले इन सबसे तंग आकर मैंने फैसला किया कि मैं सेठी परिवार के यहां काम ही नहीं करूंगी।

आप ही बताइए कि ऐसे में मैं वहां कैसे काम कर सकती हूं? मैं भले ही गरीब हूं लेकिन मेरे घर पर खाना होता है, मुझे किसी के यहां चोरी करने की कोई ज़रूरत नहीं है।

काम छोड़ने के बाद सेठी परिवार के पास मैंने मेरा पैसा बकाया था, इसलिए जब उन्होंने फोन किया तो मैं उनके पास चली गई। मेरा पैसा मुझे देने की जगह उन लोगों ने मेरे साथ मार-पीट की। ये सब इसलिए क्यूंकि मैंने अपने पैसे की मांग की और इसके बदले में मुझे इन सब में फंसा दिया गया। अगर मेरा पैसा उनके पास बकाया ना होता तो मैं वहां कतई नहीं जाती।

मेरे कोई बहुत बड़े सपने नहीं हैं। मैं बस अपने बच्चों की परवरिश अच्छे से करना चाहती हूं, चाहती हूं कि मेरे घर में अच्छा खाना हो और हम सभी एक अच्छी ज़िंदगी बिता सकें। इन्ही सपनों के लिए मैं तब तक मेहनत करती हूं जब तक कि ये शरीर जवाब नहीं दे जाता। इसी तरह मेहनत करके महीने में 12 से 15 हज़ार तक कमा लेती हूं।

लेकिन फिर भी मेरे साथ ये सब हो रहा है। उस सुबह मुझे बचाने आए 13 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और अब वो लोग जेल में हैं। मैं क्या चाहती हूं? मुझे इन्साफ चाहिए। और मैं चाहती हूं कि वो सभी लोग जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, उन्हें छोड़ दिया जाए।

फोटो आभार: आर्या थॉमस/facebook 

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