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आजादी के ७० साल

15,-August 1947, 15-August, 2017

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व हमारे चेहरों पर हर 15 August और 26 January को निखर उठता है, हाँ वो और बात है की सही मायनों मे न तो कभी हम आज़ाद हुए न कभी हम संसद और सडकों पर प्रतिदिन लुटते लोकतंत्र को बचा पाए…खैर परिणाम जो कुछ भी रहा हो इससे उन महान धरती के सपूतों का बलिदान तो व्यर्थ नहीं हो जाता जिनकी बदौलत हम खुली हवा मे साँस लेने का अधिकार रखते हैं, जो हम वर्षों पहले ब्रिटिश हुकूमत के कदमों तले गिरवी रख चुके थे…

शीतल हवा के मंद मंद झोकों से लहराता हुआ परम श्रद्धेय रास्ट्रध्वज विजय की यशोगाथा खूब बयाँ कर रहा है. जब भी हम इस रास्ट्रध्वज को देखते हैं तो हमारी आँखें इसके पीछे छुपी हुयी कुर्बानियों को अश्रुपूरित श्रधांजलि देती है. ये जो रास्ट्रध्वज की ऊंचाई है ये इसकी नीचे दबी हुई अनगिनत लाशों की वजह से है. कितनी माँगों ने अपने सिन्दूर से इसको सजाया है, कितनी माओं ने इसकी लौ को जिन्दा रखने के लिए अपनी कोख की आहुति दी है, कितने पिताओं ने अपनी चिता को उठाने वाले कंधे खोये हैं, कितनी बहनों ने अपनी सुनी कलाई को वर्षों तक महसूस किया है, तब कहीं जाकर ये रास्ट्रध्वज इतना बुलंद और खिलखिलाता हुआ नज़र आता है.

इसके सम्मान की रक्षा करना ही हर एक सच्चे देशवासी का परम कर्तव्य होना चाहिए..सिर्फ १५ अगस्त और २६ January को तिरंगा लहरा देना और फिर इसको लुटने के लिए छोड़ देना अशोभनीय और पीड़ाजनक है….

 

देश के अन्दर के हालत जैसे भी हो आज भी सीमा पर शहीद होने वाला हर जवान बस यही ज़स्बा लेकर मरना चाहता है…

बस एक बुंद लहू की भरदे मेरी शिराओं मे
लहरा दुं मे विजय पताका चारों दिशाओं मे
गुँजती रहे गुंज जीत की, महकती रही मिट्टी वतन की
सदियों तक सारी फिजाओं मे

फिर एक बार जनम लेके इस धरा पर आना चाहुँगा
वतन की मिटटी को फिर भाल पर लगाऊँगा
इस पवित्र माटी की रक्षा मे सो बार मरना चाहुँगा
दोनों हाथ उठाकर फिर एक बार तिरंगा लहराऊँगा

दिनेश गुप्ता ‘दिन’

www.dineshguptadin.com

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