33kVA की बिजली सप्लाई से करंट लगने पर यूँ तो आदमी तुरंत मर जाता है । और अगर बच जाए तो जीने लायक नहीं बचता । इस पावर के करंट से 70% झुलसा हुआ इन्सान बहुत वीभत्स दिखता है । चमड़ी के ऊपर काली पपड़ी की परत पड़ जाती है, और अंदर माँस गल जाता है । होंठ सूज कर फट जाते हैं, दरारें पड़ जाती हैं । सूजन आए शरीर की चमड़ी के जले हुए हिस्सों से पानी रिसता रहता है । गंजा हो जाता है, सिर की चमड़ी छिल कर उतरी हुई लगती है । अनु इस वक़्त ऐसी ही दिख रही है…
अनु गाँव की लड़की है, उसके माता पिता की सोच अभी पुरानी परंपराओं और लोकाचारों को ही मानती है । इसलिए अनु की शिक्षा भी कोई ज़्यादा नहीं है और उसकी शादी भी जल्दी कर दी गई । शादी के बाद वो अपने पति के साथ हिमाचल प्रदेश में, जहाँ उसका पति नौकरी करता है, रहने लगी । उसके 2 बच्चे भी हैं छोटे-छोटे । पति और बच्चों के साथ अनु अपने मामा के पास दिल्ली घूमने आई थी । गली नं- 8, राजापुरी, उत्तम नगर का वो मकान, अनु के लिए जानलेवा साबित होगा इसका उसे अंदाज़ा भी नहीं था ।
इस मकान के पहले फ़्लोर की बालकनी के सामने से, लगभग-लगभग बालकनी छूता हुआ, एक हाई-टेन्शन तार है । जिसमें 33kVA का करंट चलता है । अनु ने पहले फ़्लोर पर फैलाए कपड़े उतारे और वहीं अपने छोटे वाले बच्चे का डायपर बदला । बालकनी का दरवाज़ा खोला और गली में पड़े कूड़े के एक ढेर पर डायपर फेंकने लगी । और तभी तार से बहते शक्तिशाली करंट ने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया । अनु इस समय दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के Burn ICU में ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है ।
ये खबर आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी वेबसाइट पर पब्लिश की, खबर लिखने वाले रिपोर्टर महाशय ने रिपोर्ट में अनु को ‘मृत’ लिखा । इस गलती की शिकायत टाइम्स ऑफ़ इन्डिया तक पहुँचा दी गई है और सही करने का आश्वासन भी मिला है ।
लेकिन अनु के साथ हुए इस हादसे, और इस हादसे की गलत खबर से भी ज़्यादा भयानक चीज़ थी… इस खबर पर आए कमेन्ट्स ! लगभग सभी कमेन्ट्स में लोगों ने अनु को दोष दिया । खबर में अनु को मृत बताए जाने का भी कोई असर लोगों पर नहीं हुआ और वो लगातार अनु को कोसते रहे कि ‘उसे गन्दा डायपर सड़क पर फेंकने की क्या ज़रूरत थी’ ।
एक व्यक्ति ने तो कमेन्ट में ‘गुड’ भी लिखा, और कहा कि ‘गन्दगी’ फ़ैलाने वाले हर आदमी के साथ ऐसा ही होना चाहिए’ । वो तो ईश्वर की दया से अनु अभी जीवित है और लगातार मौत से लड़ रही है । ये ‘न्यू इन्डिया’ है । ये इस नए भारत की नई सोच है कि सड़कें साफ़ रहनी चाहिए, इन्सान मर जाए… चलेगा । ये तो हुई नई बात !
पुरानी बात होती तो कमेन्ट में पूछा जाता कि ’33kVA की सप्लाई रिहायशी इलाक़े में इतनी नीचे, और मकानों के इतनी पास कैसे है ?’
एक पुरानी बात ये भी है कि रिहायशी इलाकों, खासकर गाँवों और अवैध कालोनियों, में हाई-टेंशन तारें हटाने का मुद्दा 5 जून 2012 को दिल्ली विधानसभा में भी उठाया गया था । तत्कालीन कांग्रेस सरकार और विपक्ष, दोनों के विधायकों ने ये मुद्दा उठाया और इसकी चर्चा की । 2013 के चुनाव सामने देख तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इसके हल तेज़ी से निकालना शुरू किया ।
उस समय उत्तम नगर (जहाँ हाई-टेंशन तार बड़ा क्षेत्र कवर करती है) के विधायक मुकेश शर्मा, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के संसदीय सलाहकार भी थे । इसलिए बात तेज़ी से आगे बढ़ी और 27 जुलाई 2013 को मुकेश शर्मा ने घोषणा की, कि मुख्यमंत्री ने 33 kVA और 11kVA की हाई-टेंशन तारों को हटाने का वादा किया है । मामले को पूरी तेज़ी से निपटाने की कोशिश तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा की गई ।
लेकिन दिसम्बर 2013 में चुनाव हुए और जीत कर सत्ता में आ गए अरविन्द केजरीवाल । सत्ता बदली और इन तारों के डर में जीने वाले लोगों की तकदीर भी ! नए वादे आ गए, पुराने भुला दिए गए और हाई-टेंशन तार हटाने का मामला फ़िर गायब हो गया । आज जिस गली में अनु के साथ ये हादसा हुआ है, उस गली के लोगों ने अपने नए विधायक साहब को चुनाव जीतने के बाद दुबारा इधर नहीं देखा ।
इस बात को उन कानों में पहुँचाना ज़रूरी है, जहाँ से कुछ हरकत की उम्मीद हो । वरना कल कहीं और कोई अनु होगी, मगर शायद उसके लिए कोई लिखने वाला न हो…