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तलाक़ पर तुम सही नहीं-

तलाक़ , तलाक़… बोल दो, रिश्ता खत्म. शब्दों पर टिके रिश्ते. एक ऐसा रिश्ता जो कि तीन शब्दों के भय से चल रहा है. तीन तलाक़ बोलने में वक्त तीन सेकंड का पर जिंदगी बर्बाद हो जाती है. भले ही दुबारा शादी कर लें लेकिन महिलाओं के लिए इतना आसान नहीं. हम मर्दों को तो केवल वर्जिन चाहिए ना! लेकिन धर्म से पहले संविधान ने इसे समझा, तुम अब भी समझे कि नहीं मरदे!

मेरे इलाके में मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा है. बहुत सारे करीबी मित्र भी हैं. मैं देख चुका हूं तलाकशुदा ज़िंदगी को भटकते हुए. रिश्तों के टुकङे होने का दर्द. तलाक की मंजूरी ना तो संवैधानिक और ना ही धार्मिक रूप से जायजा लगती है. धर्म और संविधान किसी की जिंदगी बर्बाद करने की इजाजत नहीं देता है. शायद इसलिए एक शौहर ना समझा मगर संविधान समझ गया.

असल ईमान और पैगम्बर मोहम्मद को मानने वालों. हर वक्त के नमाज़ियो. तीन तलाक़ की छोङो. अपने समुदाय के सुख-शांति के लिए नेक काम करो. मुझे गाली दो फर्क नहीं पड़ता लेकिन तीन तलाक़ का पन्ना फाङकर फेंक दो. रिश्तों को निभाने के लिए कोर्ट-कचहरी जाने की जरूरत नहीं. जरा सोचों तीन तलाक़ से क्या तुम पीर पैगम्बर कहलाओगे! तुम्हें आतंकवादी तो नहीं कहूंगा लेकिन तलाक़ मुद्दे पर तुम सही नहीं हो. धर्म की दुहाई देकर उत्पात मत मचाना! खैर मुस्लिम महिलाओं जश्न मनाओ. तीन तलाक़ के टुकङे हुए. आमीन….

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