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तलाक़ के फैलसे का सबने किया सम्मान

एक हिंदी न्यूज़ चैनल के न्यूज़ एंकर और सवाददाता ने जब यह कहा कि “ उन कठमुल्लों की दुकानों में ताला लग गया है” आखिर इस बात कहते हुए वह क्या साबित करना चाहते हैं या यह किस बात का सबूत है कि मीडिया के ये न्यूज़ एंकर, सवाददाता और गोदी मीडिया का झुकाव किस ओर है, पिछले कई महीनो से तीन तलाक की गरमा गर्मी का सियासी फायेदा मिला है, क़ुरानिक रूप से मुस्लिम समाज इस एतिहासिक फैसले का सम्मान करती है लेकिन इस फैसले को लेकर जिस तरह सियासी पार्टियों के नेता जिस तरह बयानबाजी कर रहे हैं उससे पता चलता है कि उनको आगे मुस्लिम महिलाओं के लिए किया प्लान तैयार किये बैठे हैं, सुब्रमनियन स्वामी ने इस फैसले की तारीफ करते हुए कहा कि हम आगे यूनिफार्म सिसिल कोर्ट लेकर आयेंगे,तो क्या यह पहले क़दम था यूनिफार्म सिविल कोर्ट को देश में लाने का? इस फैसले का सम्मान सबने किया लेकिन उनको ज्यादा ख़ुशी हुए जो महिलायें तलाक से पीड़ित थी, बात अगर महिलाओं के हक़ की जाये तो समाज में हर महिला किसी न किसी चीज़ से पीड़ित है, तो उनके हक़ का क्या? क्या सरकार उनके हक़ के लिए भी लड़ेगी या अपनी ख़ामोशी पालेगी, हिंदुस्तान में गाँव में रहने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या शराब की ठेके की दुकाने हैं महिलायें चीख चीख कर आवाज़ देती हैं कि उनका दर्द समझा जाये और शराब की दुकाने बंद की जाये लेकिन सरकारों को महिलाओं के दर्द नहीं, बल्के उससे आने वाली आमदनी का ज़्यादाख्याल रहता है, इधरपिछले कुछ महीनो से मुस्लिम महिलाओं के अधिकार ने ज्यादा तूल पकड़ लिया है लेकिन बात समझने की सिर्फ इतनी है कि मुस्लिम महिलाओं में नजीब की माँ और ज़किया जाफ़री भी आती है दर दर ठोकरे खाने के बाद उनके हाथों में नाइंसाफी के सिर्फ काग़ज़ नज़र आते हैं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तीन तलाक़ को जिस तरह दिखाया जा रहा था उससे पता चलता है कि मुस्लिम मर्द अपनी औरतों और लड़किओं को कितना दबाते और सताते हैं, तीन तलाक को लेकर जो औरते वाकई झेल रही हैं उनके लिए बहुत बड़ी जीत है लेकिन देखना यह होगा कि तीन तलाक़ को लेकर जिस तरह इस्लाम और मुसलमान को बदनाम करने की भपूर कोशिश की गयी, आर्टिकल 25 से 30 के मुताबिक अल्पसंख्यक को पूरा अधिकार है कि वोह अपने तहज़ीब कल्चर और मज़हब को आजादी के साथ मनाये, इस बड़े फैसले पर देखना होगा कि जिस तरह सरकार ने चाइल्ड मैरिज एक्टबनाया था कि चाइल्ड मैरिज खत्म हो लेकिन अब भी लाखों बच्चों को शादी उनकी उम्र से कम में हो रहे है, तो यह क़ानून लाने के बाद कहाँ तक अमल होगा और इसकी सफलता मिलेगी I

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