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तीन तलाक अवैध, अमान्य, असंवैधानिक……

तीन तलाक के मसले पर मंगलवार को आया सर्वोच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक फैसला देश की मुस्लिम महिलाओं की जीत है। यह फैसला संविधान के बुनियादी आधारों औऱ संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है, और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इस एतिहासिक फैसले में न्यायालय ने मुस्लिम समाज में तीन तलाक के चलन को असंवैधानिक ठहराया है और छह महीने तक के लिए इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब कोई भी मुस्लिम पुरुष एक बार में तीन तलाक नहीं दे सकेगा। अदालत ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह इन छह महीने के भीतर मुस्लिम विवाह औऱ तलाक प्रथा के संचालन के लिए कानून बनाए, जिसमे मुस्लिम पर्सनल लॉ का ख्याल रखा जाए। ताकि फिर कोई विवाद खड़ा नहीं हो। दरअसल, यह हमेशा एक विवादास्पद मसला रहा है, इसलिए आश्चर्य नहीं की पांच जजों की पीठ में सर्वसम्मति नहीं बन पाई। बहरहाल, यह गौरतलब है कि अदालत ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 के आधार पर असंवैधानिक ठहराया है। यह अनुच्छेद कानून के समक्ष समानता का भरोसा दिलाता है।

ये जीत सिर्फ उन मुस्लिम महिलाओं की नहीं है जिन्हें व्हाट्सएप्प, स्काइप, स्पीड पोस्ट, या फोन के जरिए तीन तलाक दे दिया जाता है बल्कि ये जीत हर उस महीला की है जिन्हें कमजोर समझा जाता है। अब भी बहुत सारे मैलवी ऐसे जो इस फैसले को धर्म से खिलवाड़ मान रहे है, शायद उन्हे महीला सशक्तीकरण का अर्थ नहीं मालूम है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसो देशों में तीन तलाक प्रतिबंध है। शीर्ष अदालत ने इन्हीं इस्लामिक मुल्क़ो का हवाला देते हुए कहा कि भारत जैसे स्वतंत्र देश में इस पर रोक क्यों नहीं लगनी चाहिए? अदालत ने इसे तुरंत खत्म करने की बात कहते हुए सरकार को छह महीने के भीतर कानून बनाने के लिए कहा है। अगर सरकार इन छह महीने के दौरान कानून का मसौदा सामने लाती है तो कानून बनने तक तीन तलाक की प्रथा पर रोक जारी रहेगा। सरकार का रुख भी इस अमानवीय प्रथा को खत्म करने और नया कानून बनाने के पक्ष में है।

इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं का खुश होना स्वाभाविक है। मगर नया कानून बनने तक उन्हें पूरा न्याय नहीं मिल सकता। सरकार को जल्द से जल्द सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिससे मुस्लिम समाज ख़ास कर महिलाओं को खुशहाली का रास्ता मिले और लैंगिक बराबरी का दर्जा हासिल हो सके।

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