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कूड़े में खाना ढूंढते इन बच्चों की इस हालत का आखिर दोषी कौन है?

यह सन् 2008 की बात है, हमारे शहर लखनऊ की वह सुबह रोज़ की तरह ही थी पर मुझे उस सुबह एक ऐसा दृश्य दिखाई दिया, जो कहीं ना कहीं मन में चुभकर रह गया। मैंने रुककर उसका वीडियो बनाया और वह वीडियो YouTube पर डाल दिया।

पिछले 11 वर्षों में इसे 47 हज़ार से भी अधिक लोग देख चुके हैं। अनुरोध है कि थोड़ा समय निकालकर आप भी देख लीजिए, केवल 26 सेकेंड का वीडियो है ज़्यादा समय भी नहीं देना पड़ेगा। साथ में वीडियो के नीचे दर्शकों की डाली गई टिप्पणियां भी अवश्य पढ़िएगा ताकि आपको यह भी पता चल सके कि मानव की मानसिकता कभी-कभी कितनी विकृत हो सकती है।

यह दृश्य आपमें से अधिकतर के लिए कुछ नया और अनोखा भी नहीं होगा। ऐसा तो आप आते-जाते रोज़ ही देखते रहते हैं। लेकिन ज़रा गौर से देखियेगा कि यह मासूम बच्चे इंसानों के ही बच्चे हैं, जो कचरे पर से गन्ने की फांक उठाकर खा रहे हैं। यह बच्चे भारत के ही बच्चे हैं, इनका धर्म क्या है? पता नहीं! यह किस जाति के हैं? पता नहीं! पर इतना बिल्कुल पता है कि यह भारत के नागरिक हैं, भारत माता के बच्चे हैं। संविधान और मानवता हमें और इनको बराबर अधिकार देते हैं।

बच्चे तो यह इंसानों के ही हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे बच्चे होते हैं। इनके शरीर के कोषों में भी वही 46 क्रोमोज़ोम हैं, जो हमारे शरीर में पाए जाते हैं। इनके ब्लड ग्रुप भी  A, B, O अथवा AB में से कुछ हैं। पर हमने धीरे-धीरे हाशिये की तरफ धकेल-धकेलकर इन्हें इंसानों की बजाय जानवरों के साथ रहने पर मजबूर कर दिया है। जी हां, किसी जंगल में नहीं अपने शहर में, अपनी बस्ती में, अपनी आंखों के सामने।

कौन दोषी है इस भयानक अपराध के लिए? बुरा ना मानें तो खुलकर बता दूं। आप दोषी हैं, जी हां आप और आपके साथ मैं भी!

आपको पूछने का अधिकार है कि भला हम किस प्रकार दोषी हैं। जवाब बहुत सरल है। हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में राजा या सबसे शक्तिशाली कौन होता है? ‘लोक’ यानि कि जनसाधारण जिसका एक छोटा सा पर महत्वपूर्ण भाग आप भी है और मैं भी हूं। इस परिस्थिति के लिए किसी शायर ने बहुत खूब कहा है, “मैं भी गुनाहगार हूं, तुम भी गुनाहगार हो”।

क्या मैंने या आपने, अपने मताधिकार का प्रयोग करने से पहले वोट मांगने वालों से यह पूछा है कि क्या उन्होंने यह दृश्य देखा है? क्या उनसे पूछा है कि इन बच्चों के माता-पिता के आधार कार्ड हैं? मतदाता पहचान पत्र हैं? राशन कार्ड हैं? क्या वह इन्हें संविधान के मार्गदर्शी सिद्धांतों में वर्णित रूपरेखा के अनुसार अधिकार दिलाने का प्रयास करेंगे? और यदि करेंगे तो क्या करेंगे और किस तरह करेंगे? मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ना तो आपने ऐसा किया है और ना ही मैंने। यदि मैं गलत कह रहा हूं तो इस लेख के नीचे टिप्पणी में अपना विचार अवश्य लिखियेगा।

कहां है हमारा राष्ट्रवाद जो भारत के नागरिकों को इंसान से जानवर में तब्दील होते देख रहा है और चुप है? कहां है कमज़ोरों के लिए आरक्षण मांगने वाले जो इन बच्चों के लिए कुछ नहीं कर सकते? कहां है वह उलेमा हजरात जो इस विषय में कोई फ़तवा नहीं जारी करते? हालांकि उनके धर्म में उनपर यह ज़िम्मेदारी डाली गई है कि उनके पड़ोस में कोई भूखा ना सोने पाए। कहां है हमारा नीति आयोग और इस समस्या के बारे में उनकी क्या नीति है जो हर दिन खुद के लिए और अपने परिवार के लिए, देश के टैक्स अदा करने वालों के हज़ारों रुपए खर्च करते हैं?

अगर कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम बोलियेगा ज़रूर!

फोटो प्रतीकात्मक है; फोटो आभार: getty images 

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