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10 साल की बच्ची के मां बनने में सिर्फ कानून नहीं समाज भी दोषी है

सआदत हसन मंटो की कहानियों पर अक्सर अश्लीलता का आरोप लगाया जाता था। जवाब में वे कहते थे “अगर आपको मेरी कहानियां अश्लील या गंदी लगती हैं तो जिस समाज में आप रह रहे हैं, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहानियां तो केवल सच दर्शाती हैं।” आज के परिदृश्य में आपको लगेगा कि मंटो कितने दूरदृष्टि वाले इंसान थे।

चंडीगढ़ में 10 साल की एक बच्ची ने कल एक शिशु को जन्म दिया है, इस बच्ची के साथ रिश्ते में मामा लगने वाले शख्स ने कई बार रेप किया था। बच्ची के मां-बाप ने गर्भपात कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर यह फैसला दिया। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक गर्भपात ना तो बच्ची के लिए ठीक है और ना ही उसके पेट में पल रहे बच्चे के लिए। दरअसल गर्भ 32 हफ़्ते का हो गया था मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP-Act-19711) के तहत 20 हफ़्ते के गर्भ को ही गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। अपवाद स्वरूप कभी 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति तब दी जाती है जब भ्रुण विकृत हो। इसके लिए भी कोर्ट से अनुमति ज़रूरी है।

कोर्ट ने तो कानून का अनुसरण किया लेकिन उस बच्ची का क्या? मैं केवल उस शख्स को दोष नहीं देना चाहती, इस घटना के लिए हमसब ज़िम्मेदार हैं। आप सब ही तो कहते हैं ‘उस लड़की’ के साथ ऐसा हो गया ‘क्योंकि वो छोटे कपड़ों में थी’, ‘क्योंकि वो देर रात बाहर थी’, ‘क्योंकि वो अकेले थी’ लेकिन ये तो बस दस साल की बच्ची थी। अपने घर में थी। मामा का ओहदा बाप से कम नहीं होता! अब कह दीजिए ना कि गलती उस बच्ची की है, क्योंकि उम्र कुछ भी हो स्त्री जाति में जन्म जो लिया है, योनि तो है!

कोर्ट ने तो अपना फैसला दे दिया और दस बरस की बच्ची मां बन गई। हम सबने यह साबित कर दिया है कि हमने गदंगी की पराकाष्ठा को लांघ दिया है! जिसकी अभी खुद खेलने-कूदने की उम्र थी, वो मां बन चुकी है।

इस घटना के बाद हमें सामाजिक, कानूनी कई पहलुओं पर विमर्श करने की ज़रूरत है। बीते कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट में बहुत सारी ऐसी अर्ज़ियां दी गई हैं, जिसमें 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की इजाज़त मांगी गई है। ऐसे में साल 1971 की मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act 1971) में संशोधन की ज़रूरत है। BBC में छपी एक रिपोर्ट में यूनिसेफ और भारत सरकार के हवाले से दिए गए आंकड़ो के मुताबिक हर 155 मिनट में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे का रेप होता है। हर 13 घंटे में 10 साल के बच्चे से बलात्कार होता है।

कम उम्र की बच्चियां अपने शरीर में हो रहे बदलाव को समझ नहीं पाती। नतीजतन नाबालिग के गर्भ का पता समय रहते नहीं चल पाता है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि 1971 के MTP एक्ट में आवश्यक संशोधन हो। इसी के मद्देनज़र MTP एक्ट में संशोधन से संबंधित स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2014 में ड्राफ्ट तैयार किया था, जो तब से ही संसद में अटका हुआ है। इसमें गर्भपात कराने की अधिकतम कानूनी सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते करने की सिफारिश की गई है। एक और बात यह कि कुछ प्रावधान, अपवाद या स्पेशल केस के लिए बनाए जाएं ताकि जब चंडीगढ़ जैसा केस सामने आए तो उसे स्पेशल केस के तौर पर देखा जाए। लेकिन यह संशोधन बिल ही तब से अब तक ठंडे बस्ते में है।

इसके अलावा जब 10 बरस की बच्ची से घर में कोई बाप की उम्र का इंसान रेप करता है तो यह कानून से ज़्यादा सामाजिक मसला है। यह समाज और उसमें रहने वाले लोगों की ज़िम्मेदारी ज़्यादा है। जो बच्ची अपने घर में सुरक्षित ना रह पाए उसे कानून कैसे सुरक्षित कर पाएगा। यह समाज की, उस परिवार की ज़िम्मेदारी है कि ऐसे वहशियों को चिन्हित कर समय रहते कानून के हवाले करें। और हां, एक बात और जब कभी किसी स्त्री के साथ कुछ अनहोनी होती है तो उसके चरित्र पर सवाल उठाने से पहले एक बार ज़रूर सोचिएगा कि ये वही समाज है जहां 10 बरस की बच्ची भी मां बना दी जाती है!

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