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21वीं सदी के अंधे लोग

क्या सच्चाई है और क्या नहीं इस पर बहस करना अब व्यर्थ मालूम पड़ता है। पल-पल मरने वालों की बढ़ती संख्या सुनकर तो और भी भय लग रहा है। जो सुबह अखबार में एक खबर मात्र थी, वो अब हज़ारों परिवारों के लिए जीवन भर कष्ट देने वाला भयानक याद बन गई है। अब कोई कहे कि ‘बाबा’ निर्दोष हैं तो भी मैं नहीं मान सकता, ये आदमी कैसे निर्दोष हो सकता है जिसकी वजह से 29 निर्दोष लोग अकारण ही मृत्यु को प्राप्त हुए और सैकड़ों लोग घायल हैं? गलती किसकी है इसपर विचार करना भी अब बोझिल सा लगता है ,जबकि न्यायालय का फैसला साफ-साफ आया है कि रामरहीम दोषी है। ऐसा क्यों हुआ की सबको मालूम होने के बाद भी लोग दोषी बाबा को समर्थन में रात भर डटे रहे और तो और सार्वजनिक संपत्तियों को अपूरणीय क्षति पंहुचा रहे है एवं खुद को डाल रहे हैं। लोगों की मानसिकता समझने के लिए आज ही घटी एक छोटी सा वाकया बताता हूँ उसके बाद शायद कुछ निष्कर्ष निकले।

आज सुबह मैं थोड़ा देर से कोचिंग क्लास पंहुचा इसकी वजह से पीछे की सीट पर बैठना पड़ा।पहली क्लास के बाद ब्रेक हुआ और मैं पानी पीने के लिए क्लास से बहार निकला, दस मिनट बाद जब लौटा तो देखा एक लड़की रो रही थी और ऑफिस के स्टाफ सबको बोल रहे थे ‘यही करने यहाँ आते हो, जल्दी बताओ किसने उस लड़की पर कागज फेंका था। .. आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए आदि’ सबके चेहरे कभी उस लड़की पर जाता तो कभी स्टाफ पर फिर मुझे समझ में आया की पीछे बैठे किसी लड़के ने जोर से कागज उस लड़की के माथे पर फेंका था और उसने ऑफिस में इसकी शिकायत की थी।थोड़ी देर बाद शिक्षक क्लास के अंदर आये और सबसे पीछे बैठे लड़कों से पूछने लगे कि बताओ किसने कागज फेंका, तुम्हे तो दिखा ही होगा क्योंकि पीछे बैठे हो परन्तु किसी ने कुछ नहीं कहा उन्होंने मुझसे पूछा तो मैंने अपनी बात बताई की मैं तो पानी पीने बाहर चला गया था।शिक्षक ने सबको यह कहते हुए शर्मिंदा किया घटना जिसने भी किया उसके मन में गन्दगी तो निश्चित है पर बाकि जिन्होंने अपने साथी को ऐसा करते हुए देखा वो उसका नाम क्यों नहीं बता पा रहे है, इस तरह की गन्दी हरकत वाले को अगर तुमलोग सामने नहीं ला सकते तो क्या भरोसा है कि आगे चलकर तुम जो बोलोगे उसका कोई  मान हो?’  इस वाकये मैं ये बताने की कोशिश कर रहा हूँ दोषी कौन है सबको मालूम है पर उसका खुलासा करने हेतु या उसका विरोध करने के लिए कोई आगे आने को तैयार नहीं हैं, थोड़ी देर बाद जब क्लास ख़त्म हो गयी तो वे मिले और साथ में खूब हसे।
रामरहीम संत है या नहीं है अब ये तो सबको साफ पता है पर उसके कृत्यों के विरोध करने के बजाय एक लाख से अधिक लोग उसका साथ देने आये हैं।गोरखपुर में 70 मासूम मर गए पर एक आदमी सड़क पर नहीं उतर पाया, हरयाणा के किसी शहर में किसी बच्ची का बलात्कार (मैं लिखना नहीं चाहता ये सब) हो गया पर कोई देखने तक नहीं आया और इस कपटी बलात्कारी बाबा के समर्थन में लोग शहरों को जलाने पर उतारू है।इसके लिए कोई कुछ सोचने को तैयार नहीं, ट्रेने कैंसिल हो रही है, बसों में आग लगायी जा रही है,मिडिया की गाड़ियां फूंकी जा रही है,सरकारी सम्पत्तियाँ की तो बात ही अलग है ये आवारा भीड़ लोगों के घरो तक घुसने का प्रयास कर रहे है।लगता है मानो किसी लुटेरे का आक्रमण हो गया हो। किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा लिखी पंक्ति भारत माता की बेबसी व्यक्त करती है :
किसी का घर जला कहीं किसी का चरित्र, अब अकारण ही मेरी धरा जल रही पवित्र।।
मैं इसके पीछे के राजनीती को नहीं जानता और नाही इसके बारे मे लिखना ही चाहता हूँ, ये जानते हुए की इतने लोग निर्णय से पहले ही कोर्ट के आसपास हथ्यार लेकर जमा है और कोर्ट के सख्त हिदायत के बाद भी राज्य एवं केंद्र सरकारों ने इतनी लापरवाही दिखाई और शहर को जलने को छोड़ दिया।इसपर कुछ कह नहीं सकता पर आवारा भीड़ से सावधान रहने हेतु एक बार ये पंक्तियाँ जो ‘विज्ञानेश्वरी’ पुस्तक से ली गयी है वो दुहरा रहा हूँ :
कोई हांक ले जाए कहीं भी
ऐसी गूंगी और बेचारी
भेड़-बकरियां मत बनना….मत बनना।

 

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