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No मीन्स NO का झंडा उठाने वाले देश में पत्नियों का रेप कानूनी क्यों?

2011 में एक फिल्म आई थी, प्रियंका चोपड़ा की सात ख़ून माफ। इसमें प्रियंका का किरदार सुज़ाना या साहेब कई अलग-अलग लोगों से शादी करती है। ज़ाहिर सी बात है उनमे से हर किसी की अलग-अलग प्रवृत्ति थी। एक शादी उसने इरफान खान द्वारा निभाए गए किरदार वसिउल्लाह खान (मुसाफिर) से की। वसिउल्लाह खान का चरित्र बहुत अच्छा था, वो एक बेहतरीन शायर और बहुत ही रोमांटिक इंसान है, जिससे सुज़ाना को प्यार हो जाता है। दोनों शादी करते हैं, सेक्स होता है। वसिउस्लाह खान को सेक्स के दौरान अपनी पार्टनर को मारना अच्छा लगता है, उसे दर्द देने में मज़ा आता है। भले ही पार्टनर दर्द से कराह उठे, यह कहानी हर रात की होती है।

सिनेमा का यह हिस्सा कई औरतों की कहानी है। लेकिन मेरे साथ ‘मेरे पति ने बलात्कार किया है’ या ‘जबरदस्ती की है’, हमारे समाज में इन पंक्तियों की कोई स्वीकारोक्ति नहीं है। कभी अगर कोई औरत समाज के सामने खडे़ होने की कोशिश करती भी है तो उसे वैवाहिक संस्था को संभालने की नसीहत दे दी जाती है। BBC में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 2005- 2006 में भारत के 29 राज्यों की 124,385 महिलाओं के बीच नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे आयोजित करवाया गया। इनमें से 10% महिलाओं ने यह स्वीकार किया कि वो अपने पतियों द्वारा सेक्स के लिए शारीरिक रूप से मजबूर की जाती हैं।

एक और अध्ययन 2014 में इंटरनेशनल सेंटर फॉर वूमन (ICRW) और युनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड्स (UNPFA) ने सात राज्यों में किया।यह सर्वे इन सभी राज्यों के 18 से 49 वर्ष के 9,205 पुरुष और 3,158 महिलाओं के बीच करवाया गया। इसमें एक तिहाई पुरुषों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने अपनी पत्नियों को सेक्स के लिए मजबूर किया है।

बीते दिनों दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि, “वैवाहिक बलात्कार को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि ऐसा करना विवाह की संस्था के लिए खतरनाक साबित होगा। पतियों को प्रताड़ित करने का यह एक माध्यम बन सकता है। पश्चिमी देशों में इसे अपराध माना गया है, लेकिन इसका ये अभिप्राय नहीं कि भारत भी आंख बंदकर उनका अनुसरण करे। मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से पहले अन्य समस्याओं जैसे साक्षरता, महिलाओं की आर्थिक स्थिति, गरीबी आदि के बारे में भी सोचना होगा। साथ ही केंद्र ने राज्यों की राय जानने के लिए उनको भी पक्ष बनाने की अपील की है।”

केंद्र के हलफनामे में मैरिटल रेप को दंडनीय बनाने पर इसके दुरुपयोग होने की बात कही गई है और इसके लिए IPC की धारा 498-A को उदाहरण के तौर पर रखा गया है। दरअसल धारा 498-A दहेज़ का कानून है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कई बार पतियों को दहेज़ के गलत इल्ज़ाम में भी फंसाया गया है। लेकिन क्या इस तर्क के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि दहेज़ को लेकर कोई कानून होना ही नहीं चाहिए? क्या इस तर्क से हम ये कह सकते है कि हमारे समाज में दहेज़ जैसी कोई समस्या है ही नहीं? या हम ये कह सकते हैं कि दहेज़ को लेकर महिलाओं का उत्पीड़न होता ही नहीं?

यहां बात केवल मौजूदा सरकार की ही नहीं है, सरकार किसी की भी रही हो मैरिटल रेप को लेकर सरकार, कानून और कोर्ट हर किसी की राय अब तक एक जैसी ही रही है। ये बात सही है कि हमारे समाज में सेक्स को लेकर पत्नियों के पूछे जाने पर भी कोई मर्जी नहीं होती। क्योंकि बहुत बड़ी संख्या उन महिलाओं की है, जिन्हें बचपन से यह कहकर बड़ा किया जाता है कि शादी के बाद औरत का देह उसका नहीं रह जाती है।

पतियों से अपेक्षा करने से पहले, औरतों को समझना होगा कि  ‘अपनी देह की मालकिन आप खुद हैं।’ शादी के बाद किसी को आपकी देह का इस्तेमाल करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता।

जो महिलाएं इसे समझती हैं और विवाह के बाद हो रहे रेप के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं या खुद इसकी भुक्तभोगी हैं, उनके लिए न्याय सुनिश्चित करना होगा। यह किसी भी महिला के मौलिक अधिकार का हनन है उसे बिना उसकी सहमति के छुआ जाए। कहा गया है यह कानून वैवाहिक संस्था के लिए खतरनाक है! ऐसा क्या है कि विवाह के बाद रेप का कानून बनने से वैवाहिक संस्था की नींव हिल जाएगी? क्या वैवाहिक संस्था इतनी कमज़ोर होती है? मुझे तो लगता है कि यह अधिकार देने से पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संस्था और मजबूत ही होगी, जहां एक-दूसरे की मर्जी का खयाल रखा जाएगा।

विवाह के बाद पुरूष अपनी पत्नी के साथ सेक्स करना अपना हक समझते हैं। जितना हक एक पति का पत्नी से सेक्स करने का होता है, उतना ही हक उस पत्नी का ‘नहीं’ कहने का भी होता है। उससे कहीं ज्यादा हक उसका अपने शरीर पर होता है और यह अधिकार उसके जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक उसका ही है। यह दुर्भाग्य है कि औरत के इस अधिकार को बचाने के लिए हमें कोर्ट-कचहरी का सहारा लेना पड़ रहा है।

यह समझ एक पति या एक ब्वॉयफ्रेंड के तौर पर पुरूष के अंदर प्राकृतिक रूप से होनी चाहिए, नहीं तो प्यार और रेप में, पति/पार्टनर और अपराधी में क्या फर्क रह जाएगा?

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