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“डिज़िटल पत्रकारिता को पत्रकार नहीं अच्छे डिज़िटल चोरों की तलाश है”

डिज़िटल मीडिया बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है, रोज़ नई न्यूज़ वेबसाइट शुरू हो रही हैं। मीडिया में नौकरी की जानकारी देने वाली वेबसाइट्स और पोर्टलों पर कंटेट राइटर, कॉपी एडिटर और डेस्क पर काम करने वालों की मांग में पिछले कुछ समय में तेज़ी आई है। लेकिन बड़ी चिंता की बात है कि किसी भी न्यूज़ पोर्टल को रिपोर्टर की ज़रूरत नहीं है, मतलब वो चौर्यकर्म पर ही पूरी तरह निर्भर हैं। हिंदी के न्यूज़ पोर्टल का उद्देश्य स्पष्ट है कि वो इंटरनेट पर मौजूद जानकारी को उठाकर ही परोसेंगे, वो अनुवाद करेंगे। लेकिन आखिर कब तक एक ही जैसा कंटेंट पाठक झेलते रहेंगे?

इंटरनेट खबर लिखने का एक श्रोत हो सकता है, लेकिन अब तो इसके एकमात्र श्रोत होने की नौबत आ गई है। कई न्यूज़ पोर्टल इधर-उधर से खबर चुराते पकड़े गए हैं। कुछ तो पूरी तरह फेसबुक से ही कंटेंट उठाने पर निर्भर हैं। कुछ अच्छे अनुवादकों के सहारे खबरें दे रहे हैं। इंटरनेट पर जो सामग्री है उसकी भी एक सीमा है। नई सामग्री ज़मीनी रिपोर्टर ही ला सकते हैं। लेकिन हो कुछ इस तरह से रहा है कि ‘ए’ ने ‘बी’ की जानकारी उठाई और ‘बी’ ने ‘सी’ का हवाला देते हुए खबर परोस दी। ‘सी’ ने मन आया तो ‘डी’ का हवाला दिया, नहीं तो स्वयं की मूल सामग्री की तरह ही छाप दिया। बाद में पता चला कि ‘डी’ ने किसी अंग्रेज़ी पोर्टल से वह खबर चुराई थी।

मतलब साफ है कि डिज़िटल पत्रकारिता, पत्रकारों को नहीं अच्छे डिज़िटल चोरों को तलाश रही है। हम रोज़ देखते हैं कि एक ही खबर 20 पोर्टलों पर जस की तस मिल जाती है। हालांकि कुछ पोर्टल अच्छा काम भी कर रहे हैं, वो साफ कहते हैं कि हम केवल खबरों का विश्लेषण करते हैं, खबरें नहीं देते। कुछ पोर्टलों ने अपने रिपोर्टरों को ज़मीन पर भी भेजा है, लेकिन ऐसा करने वालों की संख्या बहुत कम है। गूगल विज्ञापन के लालच में कुंठा को उत्साहित करने वाली खबरें परोसी जा रही हैं ताकि अधिक से अधिक कुंठित लोग आएं।

डिज़िटल पत्रकारिता से उम्मीद जगी थी कि अब खबरें खुलकर सामने आएंगी, कोई रोकेगा नहीं। लेकिन खबरें लाने वाले रिपोर्टर पद को ही मार दिया तो कहां से खबरें आएंगी? इंटरनेट सिर्फ पहले से मौजूद जानकारी देने में सक्षम है और उस पर मौजूद सारी जानकारी (खबरों) का दोहन हो ही चुका है। आज नई सूचना के संकट का खतरा मंडरा रहा है और नए के लिए तो पाठक, रिपोर्टर पर ही निर्भर हैं।

अब यह कह देना कि “आज हर आदमी जर्नलिस्ट है” मामले का सरलीकरण है। आम आदमी और एक प्रोफेशनल पत्रकार में बहुत अंतर है। कुल मिलाकर मैं कहना चाहता हूं कि वेबसाइट्स और न्यूज़ पोर्टल ज़मीन पर अपने लोगों को ज़रूर भेजें। एकल यानि वनमैन आर्मी और सीमित संसाधनो वाले पोर्टल और वेबसाइटों के उस एकल आदमी को भी कभी ज़मीन पर ज़रूर जाकर इंटरनेट रूपी कोष में कुछ धन डाल देना चाहिए, ताकि गुणवत्तापूर्ण सामग्री की कमी ना हो।

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