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आखिर आम लोगों के लिए कब एक आम इंसान बाबा बन जाता है

2001 में गुजरात के विनाशकारी भूकंप के बाद कई समाजसेवी संस्थाएं भूकंप पीड़ितों की मदद कर रही थी। इसी समय मुझे पहली बार डेरा सच्चा सौदा और संत गुरमीत राम रहीम के बारे में पता चला था। कुछ समय बाद 2002 में मैं पंजाब गया था, वहां एक नज़दीकी रिश्तेदार से मुलाकात हुई जो डेरा सच्चा सौदा का अनुयाई बन चुका था। इनके घर में खेती और पशुपालन में नुकसान जैसी दिक्कतें चल रही थी, साथ ही घर का मुख्य व्यक्ति शराब का नशा भी बहुत करता था। लेकिन संत राम रहीम के डेरे में जाने से इस व्यक्ति को नशे से दूर होने में मदद मिली। बाकियों की तरह इनको भी बाबा में कोई कमी नहीं दिखी। ये बाबा कई समाज सेवा के कार्य करवाते थे, मसलन आंखों का मुफ्त चेकअप, कई तरह के मेडिकल कैंप आदि। इस वजह से समाज का पिछड़ा और गरीब वर्ग बाबा जी का बहुत बड़ी संख्या में अनुयायी बन रहा था।

डेरा सच्चा सौदा, पंजाब का अकेला डेरा नहीं है; पंजाब में 3 बड़े डेरे हैं- व्यास में स्थित राधास्वामी डेरा, जालंधर के पास नूरपुर में स्थित दिव्य ज्योति संस्थान और पंजाब की सरहद से लगता, हरियाणा के सिरसा में स्थित डेरा सच्चा सौदा। व्यास, नूरपुर और हरियाणा का सिरसा, ये तीनो ही जगह मूलभूत सुविधाओं से काफी दूर हैं। यहां गरीब और पिछड़े वर्ग के लिये कानून का मतलब गांव के सरपंच तक ही सीमित है, जो अक्सर ऊंची और सामाजिक प्रभाव वाली जातियों (पंजाब में जट और हरियाणा में जाट) से ही होते हैं। इन कारणों से गरीब और पिछड़े वर्ग के लिये ज़िंदगी यहां आसान नहीं है। यही इन डेरों की लोकप्रियता का कारण भी है।

लोगों के लिए किसी डेरे से जुड़ना सामाजिक पहचान की तरह तो है ही, साथ ही यह इन्हें एक सुरक्षा का भी एहसास कराता है।

डेरे में समाज सुधार के कार्यक्रमों से इस वर्ग को बहुत फायदा होता है, दूर दराज के इलाकों में स्थित ये डेरे छोटे-बड़े जो रोज़गार पैदा करते हैं, वह इसी वर्ग के लोगों को मिलते हैं। इन डेरों के पास अपार संपत्ति है, बहुत बड़ी संख्या में इनके अनुयाई हैं और ये इतनी बड़ी संख्या में हैं कि इनका असर राज्य चुनावों पर भी दिखता है।

डेरा सच्चा सौदा, सिरसा के प्रमुख बाबा राम रहीम का विवादों से चोली दामन का साथ रहा है। बाबा 23 साल की उम्र में ही इस डेरे के प्रमुख बन गए थे, कई लोग इतनी कम उम्र में बाबा राम रहीम का डेरा प्रमुख बनना, शक की निगाहों से भी देखते हैं। लेकिन बाबा पहली बार तब सुर्खियों में आए जब इनके गुनाहों का गुमनाम पर्चा 2002 में तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी को भेजा गया। 2004 तक ये खबर कुछ अखबारों तक पहुंची भी, लेकिन बाबा का रसूख इतना था कि इसका ज़्यादा कुछ असर नहीं हुआ। हां उस समय लोग ये ज़रूर कहते थे कि बाबा के सिरसा आश्रम में एक गुफा है जिसमें सिर्फ महिलाएं ही जा सकती हैं। इसी का ज़िक्र उस गुमनाम खत में भी था।

बाबा के नाम से जुड़ा ये अकेला विवाद नहीं था। 2007 में बाबा ने पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपना समर्थन देकर अकाली दल और भाजपा के गठजोड़ की जीत को बहुत मुश्किल बना दिया था। इसके कुछ ही समय बाद सिख धर्म से अच्छी तरह से वाकिफ बाबा ने गुरु गोविन्द सिंह की तरह खुद को पेश किया था और उनकी ही तरह अपना अमृत भी तैयार किया था। इस घटना का सिख समुदाय ने कड़ा विरोध किया, नतीजतन सारा पंजाब कुछ दिनों के लिये ठप हो गया था। इसके बाद बाबा दूसरी बार पंजाब की सीमा में कभी आए हो, ऐसा मुझे ज्ञात नहीं।

बाबा पर उनके मैनेजर रणजीत सिंह के कत्ल का केस भी चल रहा है, कहा जाता है कि बाबा को शक था कि गुमनाम चिट्ठी रणजीत सिंह ने ही लिखवाई थी। एक स्थानीय पत्रकार राम चंद्र छत्रपति के कत्ल का आरोप भी बाबा पर है, छत्रपति ने अपने अख़बार में बाबा के डेरे में चल रहे गैरकानूनी कामों के बारे में लिखा था। ये दोनों ही कत्ल 2002 में हुए थे। लेकिन बाबा पर जो सबसे गंभीर आरोप लगा वो ये कि इन्होंने अपने ही साधुओं को ऑपरेशन के द्वारा नपुंसनक बनाया। इसी संबंध में 150 से ज़्यादा पीड़ितों ने हस्ताक्षर कर कोर्ट में पेटीशन दाखिल की, इसकी सीबीआई जांच चल रही है और ये मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है।

बाबा पर बलात्कार के आरोप में कोर्ट का फैसला आ चुका है, बाबा दोषी पाए गये हैं और इसके बाद से पंचकुला और सिरसा में भड़की हिंसा में 2 दर्जन से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, सैकड़ों की तादाद में लोग घायल हुए हैं और आगजनी की कई घटनाएं हुई हैं। अब सवाल ये है कि क्या इतना सब हो जाने के बाद भी बाबा का रसूख और अनुयाइयों की संख्या कम होगी? बाबा उन कुछ चुनिन्दा कैदियों में से होंगे जिन्हें कोर्ट से इतनी सुरक्षा के साथ जेल ले जाया गया। वैसे बाबा के पास सालों से Z+ सिक्योरिटी है, क्यों है पता नहीं।

अभी मीडिया तल्ख़ तेवरों के साथ बाबा को कवर कर रहा है, लेकिन कुछ दिनों बाद बाबा को मीडिया भूल जाएगा। चुनाव फिर आएंगे, नेता फिर बाबा के पैरों में होंगे आखिर बाबा के इशारे पर लाखों वोट जो मिल जाते हैं।

गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी के हुई बच्चों की मौत का विरोध देखिये और एक बाबा को उसके किए की सज़ा मिलने के बाद के विरोध को भी देखिये। क्या हम सही में एक सुलझे और जागृत समाज का निर्माण कर रहे हैं? शायद नहीं। जब तक समाज में बेरोज़गारी, सामाजिक असुरक्षा, जात-पात का भेदभाव और आर्थिक असमानता बनी रहेगी, तब तक ऐसे बाबा पैदा होते रहेंगे। कारण बदल जाएंगे, बाबाओं के चेहरे बदल जाएंगे, लेकिन हिंसा और आगजनी की ये घटनाएं होती रहेंगी।

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