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मेरे मोटी-पतली, लंबी-छोटी होने से तुम्हारे पेट में दर्द क्यों होता है

जाने इस दुनिया में कुछ लोग दूसरों को चैन से जीने क्यूं नहीं देते? अपने आपको या अपने घर में झांककर नहीं देखेंगे कि कौन क्या है और कैसा है। लेकिन अगर पड़ोसी के घर की दीवार में एक छोटा-सा दाग भी नज़र आ जाए तो उनका सुख-चैन छीन लें। खासकर अगर बात किसी लड़की की हो तब तो पूछिए ही मत..!! लड़की ज़्यादा लंबी हो तो जिराफ, उसकी गर्दन ज़्यादा लंबी हो गयी तो शुतुरमुर्ग…मोटी हो तो भैंस और दुबली हुई तो सूख कर कांटा हो गई।

कई सालों तक मैं भी इस मोटू-पतलू वाले टैबू की भुक्तभोगी रही हूं। पहले अपने सभी भाई-बहनों में मेरी सेहत सबसे अच्छी थी या यूं कहूं कि ज़रूरत से ज़्यादा ही अच्छी थी और हो भी क्यूं ना? खाते-पीते घर की लड़की हूं। पैरेंट्स ने बड़े लाड़-दुलार से हम बहनों की परवरिश की है। इसी वजह से बचपन में सब मुझे ‘पहलवान’, ‘शेरू दादा’, ‘ढ़ौसी’, ‘मोटूराम’ वगैरह-वगैरह ना जाने कितने नामों से बुलाया करते थे।

स्कूल के हमउम्र फ्रेंड्स ही नहीं बल्कि आस-पड़ोस के मुहल्ले वाले, यहां तक कि घर में चाचा, मामा, ताऊ और भाइयों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। उस वक्त मुझे यह सब सुनकर बेहद गुस्सा आता था, सच कहूं तो मन करता था सामने वाले का मुंह नोंच लूं। बस उस वक्त एक मेरे दादू ही थे, जिन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि मैं मोटी हूं या दुबली। वह हमेशा ”एक तंदरूस्ती, हज़ार नियामत” बोलकर मेरा हौसला बढ़ाते थे।

फिलहाल मैं एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस में जॉब कर रही हूं। कुछ साल पहले एक गंभीर बीमारी की वजह से सेहत पर बेहद बुरा असर पड़ा। इससे मेरी हेल्थ काफी डाउन हो गई, शरीर पहले से आधा हो गया है। हालांकि शारीरिक तौर से मैं पूरी तरह फिट हूं, अपनी ज़िंदगी और अपने काम को एंजॉय कर रही हूं। अच्छे से खाती-पीती, हंसती-बोलती और घूमती हूं, लेकिन उस पर भी लोगों को चैन नहीं है। अब सब कहते हैं कि ‘अपनी सेहत पर ध्यान दो, सूखकर कांटा हो गयी हो।’

आए दिन ये खाओ, वह पीओ, ऐसा करो, वैसे रहो… जाने कितनी और कैसी-कैसी हिदायतें मिलती रहती हैं। उफ्फ..!! पर अब मुझे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। अब मैं रोने-धोने या गुस्सा करने के बजाय लोगों से उल्टा पूछती हूं कि आपलोग मुझे चैन से जीने देंगे या नहीं? जब मोटी थी, तो ‘मोटूराम’ कहते थे और अब जबकि दुबली हो गयी हूं, तो ‘सिंकिया पहलवान’ कहकर खिल्ली उड़ाने से बाज़ नहीं आते। अरे भई मैं पूछती हूं कि मैं जैसी भी हूं, अपने घर में हूं। तुम्हारे बाप का क्या जाता है? मगर नहीं, ऐसे लोगों को चैन कहां!

चाहे लड़का हो या लड़की उनकी कद-काठी, चेहरे की रंगत, बालों की लंबाई आदि चीज़ों को जाने क्यूं और किसने सुंदरता का पैमाना बना दिया है। बाज़ार ने भी इस मापदंड को हवा देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। क्रीम-पाउडर और बिंदी-लिपस्टिक से लेकर कपड़ों की साइज़ तक सब कुछ इसी पैमाने पर डिसाइड किया जा रहा है। बाज़ार में जाइए तो मोटे लोगों के लिए ड्रेस नहीं, तो पतली-दुबलों के लिए अंडरगारमेंट्स या स्लिपर्स नहीं।

कहने को आज दुनिया में ओपन मार्केट पॉलिसी लागू है, पर अगर इस लिहाज से देखें तो आज भी मार्केट कई लोगों के लिए क्लोज़्ड ही है। खूबसूरती का मापदंड तो इंसान के विचार और व्यवहार होने चाहिए, जिसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का आकलन किया जा सकता है। जिस दिन सब लोग इस बात को स्वीकार कर लेगें, शायद उसी दिन इस दुनिया का बाज़ार ‘ओपन टू ऑल’ बन पाएगा।

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