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मेडल जीत कर लौटे विकलांग खिलाड़ी अपमान से आहत

भारत में विकलांग जनो की क्या स्थिति है यह बात किसी से छिपी नहीं। आए दिन खबरें मिलती रहती हैं जिनमे विकलांगों के प्रति दुर्व्यवहार और उन पर हो रहे शोषण का ज़िक्र होता है। अभी कुछ दिनों पहले एक खबर आई कि एक भारतीय विकलांग टीम जो देश का सर ऊंचा कर दिल्ली हवाईअड्डे पर पहुंची तो उनके स्वागत के लिए कोई नहीं था। ये खिलाड़ी Deaflympics 2017 में, जो तुर्की में हुआ था, वहां से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके 1 अगस्त को लौटे थे। Deaflympics, उन विकलांग जनों का ओलंपिक्स है जो सुनने में सक्षम नहीं है।

खेल मंत्रालय का कोई भी अधिकारी या मंत्री इस विजेता टीम के स्वागत के लिए हवाईअड्डे पर मौजूद नहीं था। ये हाल तब है जब इन खिलाड़ियों ने देश के लिए 6 मेडल जीते जिनमें 1 गोल्ड मेडल भी था। सोचिये अगर यही प्रदर्शन भारतीय टीम ओलंपिक्स में करती तो क्या उनके साथ ऐसा ही बर्ताव होता?

मेरे विचार में बिलकुल नहीं, सारा देश उन्हें सर आंखों पर बैठा लेता, जो ठीक भी है। यहां शिकायत इस बात की है कि इस भारतीय दल का सत्कार क्या केवल इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वे विकलांग हैं? क्या उनकी विजय का महत्व उनकी विकलांगता के कारण कम हो गया? अगर ऐसा है तो एक समाज के तौर पर हम नाकाम हुए हैं और ये घड़ी हमारे सर झुकाने की घड़ी है।

अगर इन खिलाड़ियों ने हवाईअड्डे पर 6 घंटे रहकर अपना प्रतिरोध न जताया होता तो शायद लोगों को इस बात का पता तक न चलता। इस मौके पर टीम मैनेजर केतन शाह का कहना था कि, “खिलाड़ियों ने मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया लेकिन उनके स्वागत के लिए खेल मंत्री भी नहीं आए”।

खिलाड़ी इस घटना से बहुत उपेक्षित महसूस कर रहे थे और उनका ऐसा महसूस करना बिलकुल स्वभाविक बात है। यह घटना महज़ एक इत्तफाक नहीं है, विकलांग जनो के प्रति उपेक्षा एवं दुर्व्यवहार की घटनाएं भारत में आम बात है।

आज भारत में विकलांग जनों की संख्या करोड़ों में है, वर्ल्ड बैंक के अनुसार यह संख्या लगभग 8 करोड़ है, जबकि 2011 में हुई भारतीय जनगणना के अनुसार यह संख्या 2.68 करोड़ है। इनमें से बहुत कम ऐसे हैं जो अपनी ज़िन्दगी एक आम नागरिक की तरह सम्मान के साथ जी पाते हैं। ऐसी स्थिति में जब एक विकलांग खिलाड़ी बनता है और न केवल देश का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि मेडल जीतता है तो उसकी इतनी अपेक्षा तो जायज़ है कि समाज और सरकार उसे वो सम्मान दे जिसका वो हकदार है।

इस घटना को सुनकर कई खिलाड़ी इस भारतीय दल के पक्ष में खड़े हुए। कृष्णा पूनिया, जिन्होंने 2010 कॉमनवेल्थ खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था, उनका कहना था कि सरकार को इन खिलाड़ियों की पूरी मदद करनी चाहिए और इन खिलाड़ियों का ठीक तरह से ध्यान रखा जाना चाहिए।

कुल मिलकर यह घटना आहत करने वाली है और मन को चोट पहुंचती है। एक समाज के तौर पर हमें चाहिए कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो इस बात की कोशिश की जाए। सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किया जाय जिससे इन खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिले ताकि वे आगे भी देश का नाम रोशन करते रहें। अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात, इन खिलाड़ियों का और आमतौर पर विकलांग जनों की उपेक्षा न होने पाए, तभी हमारा देश ‘बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय’ जैसे जीवन मूल्यों को चरितार्थ कर पाएगा।

फोटो आभार- Deaflympics फेसबुक पेज
खराब फोटो क्वालिटी के लिए खेद है।

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