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गरीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी का कॉकटेल है बाबाओं की असली ताकत

जब तक देश में भूखे-प्यासे, बिना छत के सिस्टम से परेशान और बेरोज़गार लोग रहेंगे, बाबाओं की दुकान चलती रहेगी। मान लीजिए आपके पड़ोस में एक इंसान है, जो बहुत गरीब है। उसके खाने के लाले पड़े हैं, उसने नौकरी तलाशी लेकिन नहीं मिली। एक दिन वो किसी बाबा के डेरे या आश्रम में गया, वहां उसे भरपेट भोजन मिला। भोजन के बाद उसे बोला गया कि आश्रम की गायों को पानी पिला दो। वो खुशी के साथ ऐसा करेगा। वो सिर्फ भोजन के लिए ऐसा कर रहा है। उसे सैलरी नहीं मिलेगी। कुछ दिन बाद वो अपने परिवार के साथ बाबा के आश्रम में ही रहने लगेगा। बाबा उसके लिए क्या किसी भगवान से कम है? आप ही बताइए कि जब उस इंसान के भगवान पर संकट आएगा तो वो क्या करेगा?

आपने सुना ही होगा कि बाबाओं के पास सिर्फ अनपढ़ ही नहीं बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग भी जाते हैं। लेकिन क़िताबी पढ़ाई और जागरूकता दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं। सचिन तेंदुलकर साईं बाबा के यहां गए तो सीधी सी बात है कि सचिन के प्रशंशक भी जाएंगे। बड़े-बड़े नेता बाबाओं के सार्वजनिक तौर पर पैर छूते हैं, क्योंकि इन बाबाओं के पास वोट बैंक होता है। पत्रकार भी तमाम फायदों के लिए बाबाओं का प्रचार करने से नहीं चूकते।

गांव-देहात में जब कोई लड़की बीमार होती है तो उसको डॉक्टर के पास ले जाने की बजाय, झाड़-फूंक वाले बाबा के पास ले जाया जाता है। बोला जाता है कि कोई भूतिया चक्कर है। तुक्के से वो ठीक हो गई तो बाबा की दुकान चलना तय है। असल में लोगों के पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं, अगर हैं तो वो लड़कियों के इलाज पर ख़र्च नहीं करना चाहते। लड़का बीमार होता है तो तुरंत डॉक्टर पर ले जाते हैं कई लोग। लेकिन लड़की के मामले में इतनी तेज़ी नहीं दिखाते।

भूत सदैव किसी गांव के कम पढ़े लिखे को ही आता है। दिल्ली की डिफैंस कॉलोनी में ना किसी को भूत आता है ना चुटिया कटती है। किसी डॉक्टर या बैंगलुरू के किसी इंजीनियर को भूत परेशान नहीं करता, लेकिन भजनगढ़ के बंटी को हर रात भूत या चुड़ैल दिख जाती है। फिर वो किसी बाबा की शरण में चला जाता है।

बाबागीरी का सीधा संबंध गरीबी भुखमरी और बेरोज़गारी से है। बाबागीरी का विकास हमारे राजनीतिक सिस्टम की असफलता है । बाबाओं ने लोगों काम दे रखा है। जो काम सरकारी मुलाज़िम नहीं करते, वो काम बाबा जी के एक फोन से हो जाते हैं। ‘बिगड़े काम बना दे बाबा, हम सबका सहारा’ यह भाव यहीं से पैदा होता है। असल में जो काम सरकारी मशीनरी को करने चाहिए वो बाबा लोग कर रहे हैं।

बाबा रामदेव, आसाराम बापू, रविशंकर, दिवंगत सांई बाबा, रामपाल, जयगुरूदेव इन सबने अच्छी खासी तादाद में लोगों को रोज़गार दिया है। कई सेलिब्रेटी इन बाबाओं की शरण में जाकर इनकी बाबागिरी को ऊर्जा देने का काम करते हैं। टीवी पूरी ताक़त से इनके अंधविश्वास को बढ़ावा दे ही रहा है पैसे के चक्कर में। यंत्र-तंत्र, समागम, प्रवचन हर घर में टी.वी. के ज़रिये घुस गए हैं। सरकार वैज्ञानिक सोच को विकसित करने के साधनों पर पर्याप्त निवेश ही नहीं कर रही, बल्कि एक तरह से अंधविश्वास को पाल-पोस रही है। कुल मिलाकर बाबाओं को ताकत भुखमरी, गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा और सिस्टम की असफलता के कॉकटेल से मिलती है।

 

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