आज के समय में शहरयार का सवाल कितना सटीक लगता है।
सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यों है, इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढे, पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यों है।
हर शख्स परेशान है। हर किसी की भृकुटी (आईब्रो) तनी या सिकुड़ी हुई रहती है, माथे पर एक बल रहता है। सबकी अपनी-अपनी परेशानियां हैं। किसी के मां-बाप बीमार हैं तो कोई खुद बीमार है। कोई नौकरी से परेशान है, तो कोई नौकरी के लिए परेशान है। कोई रिश्ता टूटने से, तो कोई नए रिश्ते से परेशान है। कोई विश्वविद्यालय में एडमिशन के लिए परेशान है, तो कोई एडमिशन मिलने के बाद परेशान है। हर शख्स परेशान है, हर किसी की अपनी परेशानी है।
इस परेशानी को झेलने का, उसका सामना करने का हर किसी का अपना तरीका है। कुछ लोग दोस्तों से शेयर करते हैं। कुछ लोग घर में बैठकर चर्चा करते हैं और समाधान ढूंढते हैं। कुछ लोग कम ही शेयर करते हैं। न दोस्तों से बोलेंगे, न घरवालों से बोलेंगे, अपनी बातें वो अपने भीतर ही रखते हैं। कुछ लोगों की ऐसी ही आदत होती है और वो इसी में सहज महसूस करते हैं। लेकिन कुछ की यह आदत नहीं होती, वो ऐसे होने लगते हैं और अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं।
गुरूवार देर रात बिहार के बक्सर ज़िले के ज़िलाधिकारी मुकेश पांडेय की लाश पुलिस को गाज़ियाबाद रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर कोटगांव के पास रेलवे ट्रैक पर मिली। मुकेश पांडेय 2012 बैच के आइएएस अधिकारी थे, जिन्हें यूपीएससी की परीक्षा में 14वां रैंक मिला था।
उनके पिता सुदेश्वर पांडे हाल ही में सेवानिवृत्ति हुए हैं। एक भाई भारतीय विदेश सेवा के अंतर्गत मास्को में पोस्टेड है। मुकेश शादी-शुदा थे और उनकी तीन महीने की बच्ची है।
मुकेश के एक रिश्तेदार ने दिल्ली पुलिस को फोन पर बताया कि उनका WhatsApp मैसेज आया था कि जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट की दसवीं मंजिल से कूदकर वो आत्महत्या करने वाले हैं। पुलिस वहां पहुंची लेकिन मुकेश वहां नहीं मिले और उनकी लाश रेलवे ट्रैक पर मिली।
अपने मैसेज में मुकेश ने यह भी लिखा था, “मैं अपने जीवन से तंग आ चुका हूं। मुझे नहीं लगता कि कहीं इंसानियत बची है।” रेलवे पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला है उसमें भी जीवन से तंग आने की बात लिखी हैं।
लेकिन मुकेश जैसे कितने ही लोग हमारे आस-पास होते हैं, जो निजी जिदंगी की परेशानी से हारकर आत्महत्या चुनते हैं, कई बार ऐसे लोग बाहर से सफल भी नज़र आते हैं। आत्महत्या के लिए हिम्मत चाहिए, लेकिन ऐसी हिम्मत का क्या करना जिससे हम खुद को खत्म कर लें?
जीवन और मृत्यु तो तय है। मृत्यु हर जीवन का अंतिम सत्य है, हर किसी को मरना है फिर हम क्यूं खुद को मारते हैं?
किसी ने ओशो से कहा कि वह जिंदगी से तंग आकर आत्महत्या करना चाहता है, इस पर ओशो बोले- “तुम सुसाइड क्यों करना चाहते हो? शायद तुम जैसा चाहते थे, लाइफ वैसी नहीं चल रही है। लेकिन तुम ज़िन्दगी पर अपना तरीका, अपनी इच्छा थोपने वाले होते कौन हो? हो सकता है कि तुम्हारी इच्छाएं पूरी न हुई हों। तो खुद को क्यों खत्म करते हो? अपनी इच्छाओं को खत्म करो। हो सकता है तुम्हारी उम्मीदें पूरी न हुई हों और तुम परेशान महसूस कर रहे हो।
जब इंसान परेशानी में होता है तो वह सबकुछ बर्बाद करना चाहता है। ऐसे में सिर्फ दो संभावनाएं होती हैं, या तो किसी और को मारो या खुद को। किसी और को मारना खतरनाक है और कानून का डर भी है। इसलिए, लोग खुद को मारने का सोचने लगते हैं। लेकिन यह भी तो एक मर्डर है। तो क्यों ना ज़िन्दगी को खत्म करने के बजाए उसे बदल दें। मौत तो खुद-ब-खुद आ रही है, तुम इतनी जल्दी में क्यों हो?”
ओशो से आपकी असहमतियां हो सकती है लेकिन जब मृत्यु आनी ही है तो उसे खुद से खत्म क्यूं करें? ज़िदंगी तो एक सफ़र है जहां जैसे ले जा रही है इसके साथ चला जाए।