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जब बलात्कार के आरोपी बाबा के पीछे लोग बौराने लगे तो समझिये सब ठीक नहीं है

दो राज्यों में हाईअलर्ट… भारी-भरकम सुरक्षा के इंतजाम… ज़िला प्रशासन की निगरानी तेज़…इंटरनेट सेवाएं बंद… स्कूल-कॉलेज बंद… ट्रेनें रद्द! लेकिन ये सब किसलिए? क्या कोई पड़ोसी देश हमले की तैयारी में है? या फिर खुफिया विभाग को किसी आतंकी हमले की संभावना है? नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। बलात्कार के एक केस में CBI की स्पेशल कोर्ट का फैसला आना था और आरोपी थे गुरमीत राम रहीम नाम के एक धर्मगुरु। कोर्ट का फैसला आ चुका है जिसमे इन ‘बाबा’ को दोषी करार दिया गया है। ओह, धर्मगुरु पर बलात्कार का आरोप! ये कैसा अधर्म हो रहा है? तो इनके भक्तों ने हज़ारों की संख्या में अदालत के बाहर इकट्ठा होना शुरु कर दिया है। और सीनाजोरी ऐसी कि धमकी दी जा रही थी कि फैसला इनके गुरु जी (जो एक गायक और अभिनेता भी हैं) के खिलाफ हुआ तो सब-कुछ तहस-नहस कर दिया जाएगा। उफ, ये बाबाक्रेज़ी जनता!

पंचकुला में जमा हुई डेरा सच्चा सौदा समर्थकों की भीड़।

कैसी विडंबना है ना, बलात्कार के आरोपी एक बाबा के समर्थन में हज़ारों-लाखों लोग सड़क पर उतर आते हैं, पर सड़क किनारे औंधे पड़े दुर्घटना के शिकार एक युवक को बचाने या अस्पताल पहुंचाने कोई आगे नहीं आता। हां, बेहोश पड़े उस युवक का मोबाइल और पैसे चुराने में लोगों को कोई शर्म या हिचक महसूस नहीं होती। मानवता हर पल शर्मशार होती है; हिपोक्रेसी की एक नई मिसाल हर रोज़ कायम होती है। कैसे भला होगा इस देश का?

“बेटी बचाओ” का नारा गूंज रहा है, पर एक बेटी के बलात्कार के आरोपी को बचाने के लिए एक नहीं, दो नहीं, हज़ारों लोग– जिसमें कई और महिलाएं भी शामिल हैं– लड़ने, मरने और मारने को तैयार हैं। कितना भी इनके कानों में लोकतंत्र और न्याय का मंत्र फूंको, ये बाबाओं का तंत्र ही समझते हैं। अंधविश्वास, अंधभक्ती, और हिपोक्रेसी – ये हैं हमारी सामाजिक संरचना के तत्व। दोहरे मापदंडों की ऑक्सीजन से हमारी सांसे चल रहीं है और दोगलापन तो शायद हमारे DNA में है, जिसके उदाहरण कई हैं।

पिछले कुछ दिनों से एक छोटी बच्ची का वीडियो काफी चर्चा में है जिसमें उसकी मां उससे डांट-डपट कर रही है। मां बेहद सख्ती से पढ़ा रही है; बच्ची रो रही है और गुस्से में है। बस, फिर क्या! सोशल मीडीया के सभी कर्मठ कार्यकर्ता कूद पड़ते हैं मैदान में, उस बच्ची को ऐसी दरिंदगी भरी जिंदगी से बचाने। लेकिन इन्हें अपने आस-पास की दुकानों पर काम करते छोटे बच्चों का शोषण नज़र नहीं आता, सड़क पर भीख मांगते हुए बच्चे शोषित नहीं लगते।

चाय की दुकान पर काम करने वाला “छोटू” तो पैदा ही हुआ है, इन्हें कटिंग चाय पिलाने के लिए। उस बच्चे का शोषण, उसके बचपन का शोषण इन्हें चाइल्ड एब्यूज़ नहीं लगता। बाबा के भक्त और बच्ची का वायरल विडियो दो अलग घटनाएं हैं; किरदार भी अलग हैं। पर इनमें एक समानता है।  दोनों में हमारे समाज का दोगलापन और पाखंड नज़र आता है। एक ओर हैं बाबा के अंधे अनुयायी जो अपने फिल्मस्टार बाबा को अदालत और संविधान से ऊपर मानते हैं और दूसरी तरफ हैं नैतिकता के मंच पर बढ़-चढ़कर बोलने वाले वो लोग जो पहले दिन उस बच्ची का ‘क्यूट’ वीडियो मनोरंजन के लिए शेयर करते हैं, पर दूसरे दिन वही क्यूटनेस ‘चाइल्ड एब्यूज़’ में बदल जाती है, जब दो मशहूर क्रिकेटर उस विडियो पर अपनी राय ज़ाहिर करते हैं।

हां, उस बच्ची से कुछ बड़ी उम्र के “छोटुओं” का कहीं कोई बाल शोषण नहीं हो रहा। ये आपको कहीं भी, किसी छोटी-बड़ी दुकान या ढाबे पर काम करते हुए मिल जाएंगे। और इनका शोषण हो भी तो नज़र कैसे आएगा; कोई इनका वीडियो ही वायरल नहीं करता।

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