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कुछ इस तरह कचरा में फेंका हुआ प्लास्टिक ज़हर बनकर पहुंचाता है आपको नुकसान

अपशिष्ट का मतलब है कूड़ा-कचरा। अपशिष्ट प्रबंधन से तात्पर्य है कूड़े का इस तरह से निपटारा करना जो हमें और हमारे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचाए। बल्कि इसका ऐसा समुचित निपटान हो जो लाभ कि स्थिति निर्मित करे। थोड़ा और समझने की कोशिश करें तो कचरा निपटान, रीसायक्लिंग, कूड़े से ऊर्जा पैदा करना, इन सभी को कचरा प्रबंधन या वेस्ट मैनेजमेंट भी कहते हैं। रीसायक्लिंग से कई उपभोक्ता वस्तुएं बाज़ार में फिर से उपलब्ध हो जाती है जो कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में कमी लाती है।

कागज़ की रीसायक्लिंग से जहां वृक्षों की कटाई में कमी आती है वहीं जो कचरा घरों से निकला है उसे बायो कम्पोस्ट और मीथेन गैस में बदला जाता है जो की जैविक खाद के रूप में उपयोग होते हैं। इसके अलावा पर्यावरण के अनावश्यक दोहन से भी मुक्ति मिलती है। मीथेन गैस जहां ऊर्जा का बेहतरीन स्रोत है वहीं जैविक खाद मिट्टी की ऊर्वरता को स्वाभाविक रूप से बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। यह किसानों की कृत्रिम खाद पर निर्भरता को भी कम करती है। जैविक खाद से बने उत्पादों की बाज़ार में अच्छी खासी कीमत मिलती है। गोबर गैस प्रणाली और रेल में बॉयो टॉयलेट की पहल सफल रही है।

कचरा प्रबंधन की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए। परम्परागत तौर पर भारतीय जीवनशैली उपभोक्तावादी नहीं रही। हम सामग्री के पुन: प्रयोग के पक्षधर रहे हैं। घरों में मवेशियों से प्राप्त गोबर का खेती -बाड़ी में प्रयोग इसका अच्छा उदाहरण है। उसके बाद चाय बनाने के बाद बची पत्ती को भी पौधों की क्यारी में डालने ता चलन रहा है। मरम्मत और सुधार के बाद फिर से प्रयोग करना हमारी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। लेकिन कई संस्कृतियों के आगमन के बाद इसमें व्यापक परिवर्तन आए। पैक्ड फूड संस्कृति पश्चिम से भारत आई। यह जितनी सुरक्षित है उतनी ही परिवेश के लिए घातक।

हम दैनिक जीवन में उपभोग के बाद जिस सामग्री को छोड़ते हैं वह अपशिष्ट है। मूलत: दो तरह के अपशिष्ट हैं। एक तरल है तो दूसरा ठोस।

विस्तार में जाने से पहले हम एक उदाहरण के माध्यम से कचरा प्रबंधन को समझेंगे। जब हम बाज़ार जाते हैं तो तमाम नियमों के बाद भी प्लास्टिक की थैलियों में हमें सामान पकड़ा दिया जाता है। सब जानते हैं कि यह थैलियां पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हैं। कई वर्षों तक यह सड़ती नहीं हैं। जानवरों के पेट में चली जाती हैं। पानी को रास्तों को जाम कर देती हैं। जलाने पर ज़हरीले रसायन छोड़ती हैं।

लेकिन थोड़ी सी समझदारी से हम उपरोक्त बुरी चीज़ों को नियंत्रित कर सकते हैं। सूती कपड़े का या काग़ज से बना झोला इस्तेमाल करना फौरी उपाय भले हो। लेकिन महंगा होने के कारण लोकप्रिय नहीं है। सब्ज़ी वाला कागज़ के झोले में सामान नहीं देगा। लेकिन अगर प्लास्टिक पन्नी दी है तो एक काम किया जा सकता है।

वो है, सारी पन्नियों को सहेजकर रखना। और किसी दिन इनको सब्जी वाले को फिर से दे देना। इससे फायदा यह होगा कि बाज़ार में प्लास्टिक की थैलियों की आवक कम होगी। यह सारी पहल भी अपशिष्ट प्रबंधन है।

कूड़े- कचरे का समुचित निपटान न होने से पर्यावरण को कई तरह से नुकसान होता है। यह नुकसान जल, थल और नभ तीनों को होता है। कूड़े को जलाने से प्लास्टिक और अन्य सामान से निकला धुआं वायुमंडल में खतरनाक रासायनिक गैसों को मिला देता है जिससे तमाम बीमारियां होती हैं। घरों से निकला अपशिष्ट हमारे जल स्त्रोतों में घुलकर नुकसान पहुंचाता हैं। आस-पास कचरे के सड़ने से घातक बीमारियां हो सकती हैं।

कूड़ा, कूड़ेदान में ही जाए तो सड़कें साफ रह सकती हैं

अगर हम कचरे का समुचित प्रबंधन करते हैं तो यह कचरा नुकसान की जगह फायदे की स्थिति पैदा करता है। कर भी रहा है। कचरे प्रबंधन के प्रयासों से दुनियाभर में सकारात्मक परिणाम आए हैं। भारत में भी कचरा प्रबंधन ने लाभ की स्थिति निर्मित की है। अपशिष्ट प्रबंधन ने लाखों की संख्या में रोज़गार के अवसर सृजित किए हैं। ऐसा नहीं है कि कचरे का प्रबंधन पहले नहीं होता था। होता था, लेकिन तकनीक के प्रयोग से कूड़े को अब ज़्यादा उपयोगी बनाया जा सकता है या कहें बेहतर दोहन संभव है।

मूलत: कचरा दो तरह का होता है। एक ठोस और दूसरा तरल। हम दिनभर में कई तरह का कचरा छोड़ते हैं। इसमें ठोस और तरल दोनों तरह का कचरा शामिल है। बचा हुआ भोजन, मल, गंदा पानी, प्लास्टिक से बना सामान, लोहा, टिन, काग़ज इसमें शामिल है। साथ ही आज ई-कचरा भी तेज़ी से बढ़ रहा है। जोकि एक ठोस रूप है। बायो-डाइजेस्टर, कम्पोस्टिंग प्रणाली के माध्यम से हम कचरे को जैविक खाद में बदलते हैं।

कचरा प्रबंधन की शुरूआत घर से हो तो बेहतर परिणाम सामने आएगें। प्लास्टिक, काँच, धातु और कागज जैसे फिर से उपयोग में लाए जा सकने वाले पदार्थों को शुरू में ही कूड़े से अलग कर लेना चाहिए। हमें इन वस्तुओं को अलग-अलग पात्रों या थैलियों में एकत्र कराने के हर सम्भव प्रयास किए जाने चाहिए।

कचरे को जलाने की बजाय रीसायकल किया जाए। लैंडफिल साइट के आस-पास बेहद सावधानी बरती जाए। खुले में कचरा फैलाने वालों पर उचित कार्रवाई हो। कचरा प्रबंधन विषय पर शोध कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए

कम लागत वाली ज़रूरी तकनीक के लिए धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। शहरी ठोस कचरे को ठिकाने लगाने के कार्य में नागरिकों, उद्योगों, अस्पतालों और गैर-सरकारी संगठनों को नगरपालिका अधिकारियों से पूरा सहयोग करना चाहिए। इसके लिए जागरुकता फैलाना बेहद आवश्यक है।

विभिन्न क्षेत्रों के बीच तालमेल और तकनीक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बेहद आवश्यक है। कुल मिलाकर अंत में यही कहना उचित होगा कचरा प्रबंधन को सिर्फ सरकारी एजेंसिया अकेले अंजाम नहीं दे सकतीं। बल्कि हम सबको मिलकर यह काम करना होगा। जगह-जगह कूड़ेदान सरकारी निकाय रखवाएं तो नागरिकों का कर्तव्य है कि वो इसका उपयोग करें। अपशिष्ट प्रबंधन वातावरण और पूरी मानव सभ्यता के हित में है। 

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