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लड़कियां तो रात को बाहर निकलेंगी, तुम अपनी निर्लज्जता समेट लो

हर बलात्कार, अपहरण और हत्या के बाद यह लाइन अक्सर सुनी जाती है, “लड़कियों को देर रात बाहर नहीं निकलना चाहिए।” कुछ लोग मासूम होते हैं जिन्हें सच मे लगता है कि ऐसा करने से लड़कियां सुरक्षित रहेंगी। इसी बीच कुछ धूर्त लोग भी ये कहकर इस मानसिकता को बढ़ावा देते मिलेंगे या अपराधी के समर्थन में चतुराई से बैठे मिलेंगे।

मान लीजिए कि लड़की ट्रेन से अपने घर आ रही है। ट्रेन के स्टेशन पहुंचने का समय है शाम 5 बजे। ट्रेन 6 घंटे लेट हो जाती है। लड़की अपने स्टेशन पहुंचती है रात के 11 बजे। ऐसे में वो लड़की क्या करे? ऐसे ही एक लड़की नौकरी करती है, उसकी एक मीटिंग 8:30 तक खिंच जाती है, फिर ट्रैफिक की वजह से लड़की रात 11 बजे तक भी घर नहीं पहुंच पाती। इसमें फिर लड़की क्या करे?

किसी की पढ़ाई है, किसी की नौकरी है, किसी को घर का सामान ही खरीदना है, कोई अपने सहेली के जन्मदिन पर उसके घर से लौट रही है या हो सकता है कोई मूवी देखकर ही लौट रही हो। तो क्या इन सब लड़कियों का बलात्कार हो जाना चाहिए?

अगर कोई लड़की अपनी गाड़ी से, गाड़ी के दरवाजे शीशे लॉक कर कहीं जा रही हो तो क्या उसकी गाड़ी रोककर, उसको बाहर निकालकर, अपनी गाड़ी में डालकर उसको सबक सिखाना चाहिए कि तुम लड़की हो और तुम्हे रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए!

मुझे तो लगता है कि रात में लड़कों को बाहर नहीं निकलना चाहिए। मैंने ऐसी कोई भी घटना नहीं सुनी है जिसमे किसी लड़की ने रात को शराब के नशे में कभी किसी लड़के को छेड़ा हो। या फिर किसी लड़के की गाड़ी रोककर उसका अपहरण करने की कोशिश की हो और मौका मिलने पर उसका चलती गाड़ी में बलात्कार किया हो। लेकिन हर दूसरे दिन लड़के ऐसा करते ज़रूर अखबार में मिल जाते हैं।

तो क्यूं ना लड़कों को ही रात में नहीं निकलने दिया जाए। क्यूंकि पुलिस से तो कुछ होने से रहा, उनका CCTV कभी भी बंद पड़ जाता है और उनका ईमान तो ना जाने कब से बंद पड़ा है। रहे हमारे नेता, वो “लड़के हैं, लड़कों से ग़लती (बलात्कार) हो जाती है” टाइप के हैं। इनसे भी कुछ होगा नहीं।

इसलिए अगर अपनी बेटियों को बचाना है, तो अपने बेटों को सिखाना होगा कि “लड़कों को देर रात बाहर नहीं निकलना चाहिए।”

फोटो आभार: getty images 

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